लोकसभा चुनाव 2019: वडोदरा लोकसभा सीट के बारे में जानिए
नई दिल्ली: गुजरात की वडोदरा लोकसभा सीट से साल 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव जीतकर इतिहास रचा था। पीएम मोदी ने इस सीट पर 5,70,128 मतों से रिकॉर्ड जीत दर्ज की थी। उनके खिलाफ खड़े हुए कांग्रेस के कद्दावर नेता मधुसूदन शास्त्री को इस चुनाव में मात्र 2,75,336 वोटों पर संतोष करना पड़ा था। वहीं पीएम मोदी, जो कि उस वक्त पीएम पद के उम्मीदवार थे, उन्हें 8,45,464 वोट मिले थे। वड़ोदरा सीट पर यह सबसे अधिक अंतर वाली जीत थी। जबकि इस चुनाव में आम आदमी पार्टी के सुनील कुलकर्णी सहित छह अन्य उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। इस सीट पर 18,000 लोगों ने नोटा का इस्तेमाल किया था तो वहीं 2009 के चुनाव में बीजेपी के बालू शुक्ला यहां से 1.36 लाख वोट से जीते थे।
हालांकि मोदी ने इतिहास रचने के बावजूद इस सीट से इस्तीफा दे दिया था क्योंकि वो लोकसभा चुनाव में वो वडोदरा और वाराणसी से दोनों जगहों से चुनाव मैदान में उतरे थे। दोनों ही संसदीय क्षेत्र से उन्होंने शानदार जीत भी हासिल की थी लेकिन पीएम बनने के बाद उन्होंने गृह राज्य गुजरात के वडोदरा लोकसभा सीट से अपना इस्तीफा दे दिया और वाराणसी सीट अपने पास रख ली थी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस्तीफे के बाद खाली हुई वडोदरा लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुआ जिसे कि भाजपा की रंजनबेन भट्ट ने जीता। उपचुनाव में रंजनबेन भट्ट को 5,26,763 वोट हासिल हुए थे, जबकि उनके खिलाफ खड़े हुए कांग्रेस प्रत्याशी नरेंद्र रावत को मात्र 1,97,256 वोट मिले थे, रंजनबेन शहर के उप महापौर भी रह चुकी हैं।
वडोदरा में आज से करीब सवा सौ साल पहले गायकवाड़ राज हुआ करता था। तब से लेकर अब तक वडोदरा की पहचान संस्कार नगरी के तौर पर रही है। यहां पढ़ाई लिखाई के साथ गीत, नृत्य और कला से जुड़ी कई संस्थाएं हैं लेकिन नरेंद्र मोदी ने जब सेफ सीट के तौर पर वड़ोदरा को चुना तो यहां का माहौल धीरे धीरे गरम होने लगा। पहले कांग्रेस ने यहां से नरेंद्र रावत को उतारा था लेकिन नरेंद्र मोदी ने यहां से दावेदारी पेश की तो चुनौती देने के लिए कांग्रेस ने मधुसूदन मिस्त्री को यहां की रणभूमि में उतार दिया लेकिन वडोदरा की जनता ने रिकार्ड मतों से नरेंद्र दामोदर दास मोदी को यहां जीता दिया।
वडोदरा संसदीय क्षेत्र के तहत 7 विधानसभा सीटें आती हैं , यहां पर गायकवाड़ राज होने के कारण गुजराती के अलावा मराठी और हिंदीभाषी भी अच्छी तादाद में है। 22,98,052 आबादी वाले इस शहर में 19 प्रतिशत लोग गांवों मे रहते हैं तो वहीं 80 प्रतिशत लोग शहरी हैं, यहां 6 प्रतिशत लोग एससी और 6.17 प्रतिशत लोग एसटी वर्ग के हैं। वड़ोदरा इंडस्ट्री का भी गढ़ है। इस शहर का मुख्य कारोबार फार्मेसी का है। लेकिन यहां एलएंडटी, एबीबी, सीमेंस, अल्स्टॉम जैसी बड़ी कंपनियां भी हैं। इतना ही नहीं देश की एक मात्र मेट्रो कोच बनाने वाली जर्मन कंपनी बॉम्बार्डियर का भी प्लांट वडोदरा के सवाली में है। नरेंद्र मोदी यहां कई सालों तक संघ के प्रचारक के रूप में भी काम कर चुके हैं।
नरेंद्र मोदी का राजनीतिक सफर किसी करिश्मा से कम नहीं है। 2001 में गुजरात में मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने से पहले उन्होंने सक्रिय राजनीति में हिस्सा नहीं लिया था। लेकिन 1995 और 1998 के विधानसभा चुनाव में सेक्रेटरी के तौर पर उनकी रणनीति की बदौलत ही बीजेपी को पहली बार गुजरात में सरकार बनाने में कामयाबी हासिल हुई और उसके बाद गुजरात भाजपा का गढ़ बन गया और इस राज्य के विकास मॉडल ने मोदी के पीएम बनने का रास्ता खोल दिया।
बीजेपी का गढ़ माने जाने वाली इस सीट पर साल 1989 से भगवा पताका फहरा रही है और सन् 1996 के बाद से यहां पर कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला है।
मोदी की लहर ने साल 2014 के चुनाव में ऐसा जादू किया कि गुजरात की सभी 26 सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की और कांग्रेस हाशिए पर चली आई लेकिन क्या इस बार भी बीजेपी ये जादू यहां बरकरार रहेगा, यही सवाल हर किसी के जेहन में घूम रहा है, जिसका जवाब हमें जल्द ही चुनावी नतीजे देंगे, देखते हैं कि गुजरात की जनता का फैसला इस बार क्या होता है।