पीएम मोदी ने 24 जून को बुलाई कश्मीरी नेताओं की सर्वदलीय बैठक, महबूबा-अब्दुल्ला समेत 14 नेताओं को मिला निमंत्रण
नई दिल्ली, जून 19: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगले हफ्ते यानी 24 जून को जम्मू-कश्मीर की सभी राजनीतिक पार्टियों की एक सर्वदलीय बैठक बुलाई है। केंद्र सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दल को इस संबंध में संदेश भेजे गए हैं। सूत्रों ने बताया कि संदेश भेजे जाने के एक दिन बाद आज , तत्कालीन राज्य के चार पूर्व मुख्यमंत्रियों सहित 14 नेताओं को प्रधानमंत्री कार्यालय से फोन आया है। माना जा रहा है कि, सरकार यह कदम केंद्रशासित प्रदेश में विधानसभा चुनाव कराने सहित राजनीतिक प्रक्रियाओं को बढ़ावा देने की पहल के तहत उठा रही है।
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अधिकारियों ने बताया कि केंद्रीय नेतृत्व इस बातचीत के लिए नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रमुख फारूक अब्दुल्ला, पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती, जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी के अल्ताफ बुखारी, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के मुखिया सज्जाद लोन को भी बुला सकता है। फारूक और महबूबा जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। सूत्रों ने बताया कि, केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला ने इन नेताओं से संपर्क किया है। उन्होंने इन नेताओं को अमंत्रित किया।
सूत्रों के मुताबिक, नेशनल कांफ्रेंस के फारूक अब्दुल्ला और बेटे उमर अब्दुल्ला, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद और पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती को पीएमओ की ओर से कॉल आया है। तत्कालीन राज्य के चार पूर्व उपमुख्यमंत्रियों कांग्रेस नेता तारा चंद, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के नेता मुजफ्फर हुसैन बेग, और भाजपा नेताओं निर्मल सिंह और कविंदर गुप्ता को भी बैठक में आमंत्रित किया गया है।
इसके अलावा बैठक के लिए माकपा नेता मोहम्मद युसूफ तारिगामी, जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी (जेकेएपी) के प्रमुख अल्ताफ बुखारी, पीपुल्स कांफ्रेंस के सज्जाद लोन, जेके कांग्रेस के प्रमुख जीए मीर, भाजपा के रविंदर रैना और पैंथर्स पार्टी के नेता भीम सिंह को आमंत्रित किया गया है। बताया जा रहा है कि यह बैठक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में होगी, जिसमें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और अन्य केंद्रीय नेता रहेंगे।
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माना जा रहा है कि पीएम के साथ मीटिंग में जम्मू-कश्मीर को फिर से पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने और दूसरे जरूरी मुद्दों पर चर्चा हो सकती है। ये बैठक, केंद्र द्वारा जम्मू और कश्मीर के विशेष दर्जे को निरस्त करने और अगस्त 2019 में केंद्र शासित प्रदेशों में इसके विभाजन की घोषणा के बाद से इस तरह की पहली कवायद है।