
द्रौपदी मुर्मू के समाज की वो महिलाएं, जिन्हें देख कांप जाते ब्रिटिश और मुगल, कुल्हाड़ी से काटे 21 अंग्रेज
नई दिल्ली, 22 जुलाई। भारत की महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू उस समाज से नाता रखती हैं जहां की महिलाएं पर्वत से टकराने की हिम्मत रखती हैं। आदिवासी सामाज की नारियां उस वक्त से अपने हक के लड़ती रहीं जब अन्य समाज में महिलाओं को बराबरी का दर्ज तक प्राप्त नहीं हुआ था। सिदो-कान्हू की बहन फूलो-झानो और सिनगी दई इसी आदिवासी समाज की बेटियां हैं जो आज लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गई।

लरका विद्रोह और हूल विद्रोह से अंग्रेजों के दांत खट्टे
पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति हैं। मुर्मू के समाज ने उन वीरांगनाओं को जन्म दिया जिन्होंने कभी अग्रेंजों और मुगलों के दांत खट्टे कर दिए थे। इतिहास गवाह है कि इस समाज अन्याय और अत्याचार के खिलाफ विद्रोह किया और कभी भी दासता स्वीकार नहीं की। 1857 की क्रांति से पहले लरका विद्रोह और हूल विद्रोह को भले ही इतिहास में उचित स्थान नहीं मिल सका लेकिन इस आग ने अंग्रेजों को चेता दिया था कि जल, जंगल, जमीन से उन्हें नहीं हटा सकते। आदिवासी समाज की ऐसी ही महिलाओं के लिए जाना जाता है जिन्होंने अंग्रेजों को नाकों चने चबाने पर मजबूर कर दिया था।
अन्याय का दमन करने वाला विरोध
एक दौरा था जब भारत की संप्रभुता पूरी तर छिन चुकी थी। भारत के हर वर्ग और क्षेत्र के लोगों को कुचला जा रहा था। ऐसे में साहूकारों की मिलीभगत से अंग्रेजों ने आदिवासियों के कृषि भूमि को हथियाना शुरू कर दिया। कर के बकाएदारों की भूमि को नीलाम कर दिया जाता था। उस वक्त भागलपुर में कोर्ट होता था जो आदिवासी इलाके से काफी दूर था। ऐसे में अन्याय से लड़ने सामने आईं आदिवासी समाज की दो महिलाएं फूलो और झानो।
फूलो- झानो ने 21 अंग्रेजों को कुल्हाड़ी से काटा
संताली भाषा का एक गीत इनकी कहानी आज भी कहता है। जिसकी पंक्तियां हैं- 'फूलो झानो आम दो तीर रे तलरार रेम साअकिदा'। इसका मतलब फूलो झानो तुमने हाथों में तलवार उठा लिया। फूलो और झानो मजबूत इरादों वाली वो साहसी बहनें थीं जिन्होंने आदिवासी क्षेत्र पाकुड़ के निकट संग्रामपुर में अंधेरे का फायदा उठाकरअंग्रेजों के शिविर में ही दाखिल हो गई।
दोनों से बहनों से डरकर अंग्रेजों ने दिखाई कायरता
इतिहासकारों का कहना है कि फूलो और झानो जब दुश्मनों के शिविर में घुसी तो उन्होंने अंधेरे की आड़ में और अपनी कुल्हाड़ी चलाते हुए 21 ब्रिटिश सैनिकों को खत्म कर दिया। कई महाजन और सूदखोर सूतखोरों को भी मौत के घाट उतार दिया गया था। उस वक्त फूलो-झानो ने कई इलाकों में नेतृत्व संभाला। बाद अंग्रेजों ने फूलो-झानो के विद्रोह से डरकर और उन्हें एक आम के पेड़ से लटकाकर फांसी दे दी।
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सिनगी देई तीन बार दुश्मनों को खदेड़ा
उरांव जनजाति की आदिवासी युवती व रोहतासगढ़ की राजकुमारी ने मुगलों का डटकर सामना किया था। उन्होंने पुरुषों का वेश बनाया सिर पर पगड़ी बांधी और हाथों में तलवार लेकर घोड़े पर सवार हुईं। एक ही रात में तीन बार हमला और तीनों बार दुश्मनों को सोन नदी के पार खदेड़ दिया।