मेहनत को मिला मान ! कभी बेटी के जूते के लिए पैसे नहीं थे, अब दुबई-जापान में तक जाते हैं हाथ से बुने ऊनी जूते
Padma Shri मां के पास कभी बेटी के जूते के पैसे नहीं थे, हाथ से बुने ऊन के जूतों को मिला आसमां, दुबई और जापान में भी ग्राहक मिले। padma shri knitted shoe maker Mukutmoni Moirangthem Mukta Shoes Industry Kakching Manipur
Padma Shri देश का चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। अगर हुनर को हौसले के साथ इस्तेमाल किया जाए तो सर्वोच्च नागरिक सम्मान के साथ प्रतिष्ठा और पहचान भी मिलती हैं। इसी की मिसाल हैं पूर्वोत्तर भारत की एक मां जो हाथ से जूते बुनती हैं। बेटी के लिए हाथ से जूते बुनने वाली मां Mukutmoni Moirangthem. मोइरंगथेम मुक्ता शूज़ इंडस्ट्री चलाती हैं। (सभी तस्वीरें- साभार फेसबुक @MuktaShoesIndustry)
मोइरंगथेम के हाथों से बने जूते
Padma Shri Mukutmoni Moirangthem किसी पहचान की मोहताज नहीं। उन्होंने हाथ से जूते बुनने में महारत हासिल करने के बाद देश-विदेश में अपनी खास पहचान बनाई। मुक्ता शूज़ इंडस्ट्री की मुकुटमोनी मोइरंगथेम के हाथों से बने जूते इतने खास हैं कि इनकी इस विलक्षण प्रतिभा और विशेषज्ञता के लिए मोइरंगथेम पद्मश्री पुरस्कार से नवाजी गईं।
विदेश में भी डिमांड में है मुक्ता शूज़ इंडस्ट्री
गरीबी के कारण मणिपुर के काकचिंग में रहने वाली मुकुटमोनी मोइरंगथेम को मजबूरी में अपनी बेटी के लिए जूते बुनने की शुरुआत करनी पड़ी थी, लेकिन ये मजबूरी उनके लिए मजबूती और मान भी लेकर आएगी, शायद ये किसी को अंदाजा भी नहीं रहा होगा। उन्होंने लगातार अपना काम जारी रखा। अब तीन दशकों के बाद उनकी विशेषज्ञता को पहचान के साथ सम्मान भी मिल रहा है। आलम ये कि भारत के साथ विदेश में भी मुक्ता शूज़ इंडस्ट्री की मुकुटमोनी मोइरंगथेम के हाथों से बने जूते का अच्छा बाजार बन गया है।
30 साल बाद मिली पहचान
मुकुटमोनी की उद्यमशीलता और गरीब महिलाओं को सशक्त बनाने के प्रयास उन्हें 135 करोड़ से अधिक आबादी वाले देश में खास पहचान दिलाते हैं। उन्हें उनकी कला के लिए 2022 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में मोइरंगथेम बताती हैं कि उन्होंने तीन दशक पहले जूते के ऊपरी हिस्से की बुनाई शुरू की थी। इस शुरुआत का बैकग्राउंड गरीबी रहा, क्योंकि उनके पास अपनी स्कूल जाने वाली बेटी के लिए नए जूते खरीदने के पैसे नहीं थे।
बेटी के जूते खरीदने के पैसे नहीं थे, ऊन से बनाए जूते
64 वर्षीय महिला मुकुटमोनी बताती हैं कि काकचिंग में रहने वाली अन्य महिलाओं की तरह वे भी अपने तीन बच्चों के लिए घर पर ऊनी मोजे और मफलर बुनती थी। उन्होंने बताया, "मैं अपनी स्कूल जाने वाली बेटी के लिए जूते खरीद पाने में असमर्थ थी क्योंकि मेरे पास उस समय पैसे नहीं थे। लगातार जूतों की मरम्मत करनी पड़ती थी। इसलिए जूते की ऊपरी लेयर हटाने के बाद इसे हाथ से बुने हुए जूतों की डिजाइन में बदलना शुरू कर दिया। इसे मोज़े और मफलर बुनाई के बाद छोड़े गए ऊन से बनाया गया।
स्कूली शिक्षक को पसंद आया डिजाइन
मोइरंगथेम ने संघर्ष और नए आइडिया के बाजार के बारे में कहा, विधवा माँ ने महज 16 साल की एज में उनकी शादी उसकी करा दी। हालांकि, वे खुशकिस्मत रहीं कि उनके इनोवेशन को स्कूल में एक शिक्षक ने परखा। उन्हें डिजाइन बहुत अच्छा लगा और स्कूल में ही उन्होंने अपनी बेटी के लिए एक जोड़ी हाथ से बुने गए जूतों का ऑर्डर दिया। मोइरंगथेम ने कहा, यहां से उनका सफर शुरू हुआ।
ग्राहक सेना के जवान !
मुक्ता शूज़ इंडस्ट्री से पहले वाले दिनों को याद कर मुकुटमोनी बताती हैं कि शुरुआत में वह जूतों के तलवों को काटने के लिए साधारण हाथ से चलने वाले औजारों से काम करती थीं। शहर में एक गैर-मणिपुरी व्यक्ति से मदद लेती थीं। इसी बीच गश्त के दौरान वहां तैनात सेना के जवानों ने उसके हाथ से बुने हुए जूते देखे। मुकुटमोनी ने बताया कि सेना के जवानों को मेरे उत्पाद देखने पर काफी आश्चर्य हुआ और उनमें से कुछ लोगों ने कुछ जोड़ी जूते भी खरीदे।
32 साल पहले बनाई खुद की कंपनी
उन्होंने बताया कि उनके हाथों से बने जूते लोगों को पसंद आए और बाद में और अधिक जूतों का ऑर्डर करने के लिए कई सैनिक वापस आए। इस तरह उनके हाथ से बुने हुए जूतों को पहली बार मणिपुर के बाहर भी ग्राहक मिले। मुकुटमोनी ने इस कामयाबी से उत्साहित होकर बड़े स्तर पर काम की शुरुआत की। करीब 32 साल पहले 1990 में खुद की कंपनी मुक्ता शूज़ इंडस्ट्री की स्थापना के बाद मुकुटमोनी हाथ से बुने हुए उत्पादों का प्रदर्शन करने राजधानी इम्फाल के व्यापार मेले में पहुंचीं।
पांच दिनों में 1500 जोड़े जूते बेचे
Mukutmoni Moirangthem बताती हैं कि इंफाल में हाथ से बने जूतों को लोकप्रियता मिली। ये बड़ी हिट साबित हुए। इन जूतों को लेकर 1997 में मुकुटमोनी ने राष्ट्रीय राजधानी में दस्तक दी। नई दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित मेले में केवल पांच दिनों में 1500 जोड़ी जूते बेचने के बाद मुकुटमोनी अब एक सफल उद्यमी बन चुकी हैं।
इन शहरों से मंगाती हैं मैटेरियल
जूतों के मैटेरियल पर उन्होंने बताया कि वे अपने हाथ से बुने हुए जूतों के तलवों का ऑर्डर कोलकाता से मंगाती हैं। ऊन स्थानीय बाजार (मणिपुर) से खरीदा जाता है। जूतों को सिलने के लिए सूत ज्यादातर पंजाब के दूर-दराज वाले इलाकों और लुधियान से मंगाती हैं। अब मुकुटमोनी के जूते देश के शहरों में लगने वाले बड़े-बड़े मेलों में बेचे जाते हैं।
जापान, दुबई, रूस और सिंगापुर से भी ऑर्डर
दिल्ली के कारोबारियों की मदद से Mukutmoni Moirangthem को अब जापान, रूस, सिंगापुर और दुबई जैसे देशों से भी ऑर्डर मिलते हैं। बात भारत की करें तो पूर्वोत्तर भारत में बने जूतों को दिल्ली, राजस्थान और बंगाल में भी काफी पसंद किया दाता है। इन राज्यों में बड़ी संख्या में ग्राहक मुकुटमोनी के जूतों का इस्तेमाल करते हैं। उन्होंने कहा, "वर्तमान में लगभग 20 लोग मुक्ता शूज़ इंडस्ट्री में काम करती हैं। ज्यादातर महिलाएं हैं। कई बार ऐसा भी होता है कि संसाधनों की कमी के कारण वे डिमांड पूरी करने में असमर्थ होती हैं।
ऑनलाइन कारोबार में क्या परेशानी है
बच्चों, पुरुषों और महिलाओं के जूतों का ऊपरी भाग महिलाएं हाथ से बुनकर तैयार करती हैं। वयस्क आकार के जूतों की एक जोड़ी पूरा होने में लगभग चार दिन लगते हैं। बच्चे के जूतों की कीमत 500 रुपये से शुरू होती है। वयस्कों के लिए 2000 रुपये तक के जूते मिलते हैं। Mukta Shoes Industry के श्रमिकों को लगभग 5000 रुपये प्रति माह का भुगतान किया जाता है। उन्होंने कहा, "ऑनलाइन स्टोर से किसी भी ऑर्डर को पूरा करने के लिए बड़ी संख्या में जूतों की जरूरत होती है। अगर हम अपना कारोबार बढ़ाना चाहें तो हमें अलग-अलग डिजाइन, साइज और रंगों के साथ तैयार रहना होगा। पैसों और संसाधनों की कमी के कारण उनके प्रयास सफल नहीं हो रहे।
सफलता मिलने के बाद भी डर किस बात का
Mukta Shoes Industry की सफलता के साथ डर भी है। इसका कारण बताते हुए मुकुटमोनी बताती हैं, "मेरा सबसे बड़ा डर यह है कि बेहतर संसाधनों वाली बड़ी कंपनियां एक दिन इन ऊनी जूतों की नकल करके उन्हें बड़े पैमाने पर तैयार करेंगी और उन्हें सस्ते दरों पर बेच देंगी। इस प्रक्रिया में मेरी रचना खो जाएगी।" उन्होंने कहा कि वह उनके शिल्प का पेटेंट कराना चाहती हैं, लेकिन वह इस प्रक्रिया से अनजान हैं।
मौत के बाद भी कला आबाद रखने का ख्वाब
बकौल मुकुटमोनी "अगर मेरे शिल्प का पेटेंट कराया जाता है तो कम से कम मणिपुर राज्य और मेरे गृहनगर Kakching का नाम हमेशा हाथ से बुने हुए ऊनी जूतों से जुड़ जाएगा।" उन्होंने भावी प्लान के बारे में कहा कि वह एक प्रशिक्षण केंद्र स्थापित करना चाहती हैं जहां युवाओं को हाथ से ऊन के जूते बुनने का शिल्प सिखाया जाएगा और इससे स्वरोजगार का साधन विकसित होगा। उन्होंने कहा, "एक दिन ऐसा आएगा जब वे जूते नहीं बना पाएंगी। ऐसे में जब तक एक उचित तंत्र नहीं होने पर ये शिल्प अंततः खो जाएगा। ऐसे विचार दिल तोड़ देते हैं।" Mukutmoni Moirangthem हाथ से बने ऊन के जूतों की कला को आबाद रखना चाहती हैं।