उमर अब्दुल्ला बोले- मैं भारतीय हूं और हमेशा भारत का साथ देता रहूंगा
ऐसे बिगड़ते माहौल में सभी बातचीत की प्रक्रिया शुरू करने के पक्ष में नज़र आते हैं. नॉर्वे के पूर्व प्रधानमंत्री के दौरे से यहाँ के लोगों में एक नई उम्मीद की किरण जागी है.
उमर अब्दुल्ला कहते हैं, ''मैं चाहूंगा कि नॉर्वे के पूर्व प्रधानमंत्री आगे भी घाटी में आएँ और उनकी मदद से बातचीत का सिलसिला एक बार फिर से शुरू हो सके.''
नेशनल कॉन्फ्रेंस नेता और जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला कश्मीर मसले के हल में नाकामी को स्वीकार करते हैं.
बीबीसी हिंदी से ख़ास बातचीत में उमर ने कहा, ''कश्मीर की हालत के लिए ज़िम्मेदार केवल हमारी पार्टी ही नहीं बल्कि सब हैं. इनमें 'नई दिल्ली और इस्लामाबाद' भी शामिल हैं.''
पिछले दिनों पीडीपी और कांग्रेस के साथ सरकार बनाने के दावे में नाकामी और विधानसभा के भंग होने के बाद उमर अब्दुल्ला कश्मीर के मसले को सुलझाने में सियासी पार्टियों की भूमिका पर गहराई से रौशनी डालने के मूड में थे.
उमर अब्दुल्ला ने कहा, "हम सब ज़िम्मेदार हैं. कहीं ना कहीं हम सब से ग़लती हुई होगी. सभी नाकाम रहे हैं.''
दक्षिण कश्मीर में सुरक्षाबलों और चरमपंथियों के बीच रोज़ की झड़पों का हवाला देते हुए उमर कहते हैं कि कश्मीर में हालात बिगड़ते जा रहे हैं.
'हालात साज़गार नहीं...'
उमर अब्दुल्ला कहते हैं, "कश्मीर में हालात साज़गार (अनुकूल) नहीं हैं. अगर मैं ये कहूँ कि हालात साज़गार हैं तो ग़लत होगा."
उमर अब्दुल्ला की तरह उनके दादा शेख़ अब्दुल्ला राज्य के मुख्यमंत्री रहे. पिता फ़ारूक़ अब्दुल्ला भी पाँच बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे.
नेशनल कॉन्फ्रेंस बीते 70 सालों में सबसे ज़्यादा वक़्त तक सत्ता में रही.
तो क्या इस नाकामी में नेशनल कॉन्फ्रेंस सब से बड़ी भागीदार नहीं है?
उमर अब्दुल्ला ने बीबीसी ने कहा, "अलग-अलग लोग इसको अलग-अलग अन्दाज़ में लेंगे. मैं सारी ज़िम्मेदारी अपने सिर पर नहीं लूँगा. हम क़सूरवार हैं लेकिन सब से ज़्यादा क़सूर तो नई दिल्ली और इस्लामाबाद का है."
भारत और पाकिस्तान के बँटवारे के साथ कश्मीर का मुद्दा विवादों में है.
तब से कश्मीर के एक हिस्से पर प्रशासन भारत का है और एक पर पाकिस्तान का. इस मुद्दे को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच तीन युद्ध भी हो चुके हैं.
हर बार बातचीत फ़ेल
इस मसले के हल के लिए दोनों देशों के बीच कई राउंड की बातें हुई हैं, लेकिन पिछले कई सालों से बातचीत खटाई में पड़ी है.
उधर भारत प्रशासित कश्मीर में अलगाववादी हुर्रियत कॉन्फ़्रेन्स भी बातचीत में हिस्सा लेने की दावेदार है.
अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह के दौर में भारत सरकार ने हुर्रियत के नेताओं से बातचीत का सिलसिला शुरू किया था लेकिन इसका कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकल सका.
सियासी विशेषज्ञों के मुताबिक़, निर्वाचित सरकार की ग़ैर हाज़िरी में एक राजनीतिक अनिश्चतता पैदा हो गई है जिससे चरमपंथियों को और भी हवा मिलेगी.
श्रीनगर की सड़कों पर आम लोगों ने कहा कि निर्वाचित सरकार के ना होने से उनकी रोज़ की समस्याएँ और भी बढ़ेंगी.
ऐसे में पिछले हफ़्ते नॉर्वे के पूर्व प्रधानमंत्री केजेल मैग्ने बोन्डेविक का घाटी में आना और हुर्रियत के नेताओं से मुलाक़ात करना काफ़ी अहम माना जा रहा है.
उमर अब्दुल्ला इसे एक महत्वपूर्ण घटना मानते हैं.
नॉर्वे के पूर्व प्रधानमंत्री केजेल मैग्ने बोन्डेविक पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर भी गए और हालात का जायज़ा लिया. इस दौरे का उमर अब्दुल्ला स्वागत तो करते हैं लेकिन हैरानी भी जताते हैं.
उन्होंने कहा, "केंद्रीय सरकार हुर्रियत कॉन्फ्रेंस से बात नहीं कर रही, उसे अलग-थलग कर रखा है. अगर इससे हुर्रियत कॉन्फ्रेंस को मेज़ पर लाने में क़ामयाबी मिलती है तो सभी को इसका स्वागत करना चाहिए."
उमर अब्दुल्ला के मुताबिक़, केंद्र की मर्ज़ी के बग़ैर ये दौरा मुमकिन नहीं.
'मैं भारतीय हूं और...'
उमर कहते हैं, ''हमें मानकर चलना चाहिए कि केंद्र सरकार की इजाज़त के बग़ैर नॉर्वे के पूर्व प्रधानमंत्री यहाँ नहीं आ सकते. हुर्रियत वाले एक ख़ास सियासी सोच का नेतृत्व करते हैं. इस सियासी सोच को बातचीत की मेज़ पर कभी ना कभी तो लाना ही पड़ेगा. भले ही लोगों में उनकी लोकप्रियता घटी है लेकिन वो एक सियासी सोच की नुमाइंदगी करते हैं. उन्हें बातचीत में शामिल तो करना ही चाहिए.''
भाजपा के नेता राम माधव ने हाल में उन पर पाकिस्तान से आदेश लेने का इल्ज़ाम लगाया था, जिस पर उमर अब्दुल्ला काफ़ी भड़के थे.
उमर अब्दुल्ला ने कहा कि उस बयान से वो निजी तौर पर नाराज़ नहीं हैं लेकिन उन्हें अफ़सोस इस बात का है कि देश के लिए उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं की क़ुर्बानियों को इससे धक्का लगता है.
उमर कहते हैं, ''मैं भारतीय हूं और भारत का हमेशा साथ देता रहूंगा.''
पीडीपी और कांग्रेस की सरकार बनाने की कोशिशों को बाहर से समर्थन देने में नाकामी के बाद उमर अब्दुल्ला ने आने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने का फ़ैसला किया है.
इसका मतलब पीडीपी की नेता महबूबा मुफ़्ती से नेशनल कॉन्फ्ऱेंस के रिश्ते का अंत हो गया है?
उमर कहते हैं, "मिलकर चुनाव लड़ने का सवाल ही पैदा नहीं होता. अगर उनकी पार्टी पीडीपी से मिलकर चुनाव लड़े तो उसका कोई फ़ायदा नहीं क्योंकि भाजपा का घाटी में कोई ज़्यादा असर नहीं.''
2016 में बुरहान वानी के मुठभेड़ में मारे जाने के बाद घाटी में चरमपंथी घटनाएं बढ़ी हैं.
ऐसे बिगड़ते माहौल में सभी बातचीत की प्रक्रिया शुरू करने के पक्ष में नज़र आते हैं. नॉर्वे के पूर्व प्रधानमंत्री के दौरे से यहाँ के लोगों में एक नई उम्मीद की किरण जागी है.
उमर अब्दुल्ला कहते हैं, ''मैं चाहूंगा कि नॉर्वे के पूर्व प्रधानमंत्री आगे भी घाटी में आएँ और उनकी मदद से बातचीत का सिलसिला एक बार फिर से शुरू हो सके.''
उमर का पूरा इंटरव्यू यहां देखिए:-
https://www.youtube.com/watch?v=2YyRbLMDAU8