Nurses Day: मिलिए ऐसे अद्भुत हेल्थकेयर हीरो से जो मरीज के लिए अपनी जान जोखिम में डालने से पीछे नहीं हटते
मिलिए ऐसे अद्भुत हेल्थकेयर हीरो से जो मरीज के लिए अपनी जान जोखिम में डालने से पीछे नहीं हटते
नई दिल्ली, 12 मई: दुनियाभर में नर्सों और हेल्थकेयर वर्कर्स के सम्मान और समाज में उनके योगदान के लिए 12 मई को अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस मनाया जा रहा है। नर्स डे हर साल 12 मई को फ्लोरेंस नाइटिंगेल की जयंती पर मनाया जाता है। ब्रिटिश नर्स और समाज सुधारक फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा में लगा दी थी। आइए इस नर्स डे पर हम आपको ऐसे, हेल्थकेयर हीरो के बारे में बताते हैं, जिन्होंने कोरोना महामारी के दौरान अपने मरीजों के इलाज के लिए अपनी जान की भी परवाह नहीं थी।
रातों-रात अपने मरीज के लिए स्वाति ने सीखा साइन लैंग्वेज
आनंद राय नाम का एक बहरा और गूंगा कोरोना वायरस रोगी बिलासपुर रेलवे अस्पताल छत्तीसगढ़ में भर्ती हुआ थे। इस मरीज के इलाज के लिए उस अस्पताल की एक नर्स स्वाति भीमगज ने कुछ ऐसा किया, जो वहां के लोग याद करते हैं। असल में अस्पताल में नर्सों और डॉक्टरों को रोगी के साथ संवाद करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा था क्योंकि लोग मरीज की बात नहीं समझ पा रहे थे। डॉक्टर कह रहे थे उसे पूरी तरह से समझने में असमर्थ थे। नर्स स्वाति भीमगज ने मरीज के संघर्ष को देखा, तो वह व्याकुल हो उठी। स्वाति भीमगज घर गई और यू-ट्यूब पर सांकेतिक भाषा ( साइन लैंग्वेज ) सीखने में रात बिताई ताकि वह मरीज की पीड़ा को बेहतर ढंग से समझ सके। तब से, वह अस्पताल के अन्य कर्मचारियों को रोगी के साथ संवाद करने में मदद करने लगीं।
कोरोना के दौरान ये नर्स प्रग्नेंट महिलाओं की करवाती थी डिलीवरी
श्रीनगर के जेएलएमएम अस्पताल में, शुगुफ्ता आरा कोविड-19 पॉजिटिव माताओं के बच्चों को जन्म देने में मदद करती थी। शुगुफ्ता, जो पिछले सात सालों से काम कर रही थीं, पिछले दो साल वो कोरोना ड्यूटी पर तैनात थीं। उन्होंने 100 से अधिक कोरोनापॉजिटिव गर्भवती महिलाओं और उनके नवजात शिशुओं की देखभाल की थी। कई बार उन्हें उचित पीपीई किट पहनने का भी समय नहीं मिलता था और बच्चों को सुरक्षित रूप से देने के लिए उन्हें संक्रमित होने का जोखिम उठाना पड़ता था। अपने परिवार के कोरोना से संक्रमित होने के बावजूद, शुगुफ्ता ने महीनों में काम से एक दिन की छुट्टी नहीं ली थी। खुद दो छोटे बच्चों की मां होने के नाते, वह चिंतित माताओं को आराम देने के लिए समय निकालती थीं ताकि वे अपने बच्चों को बिना किसी तनाव के दुनिया में ला सकें।
मणिकंदन बन गए 'एम्बुलेंस मणि'
कोरोना महामारी के वक्त अधिकांश लोग महामारी से खुद को बचाने के लिए घर में रहते थे लेकिन पुडुचेरी के रामनाथपुरम के निवासी मणिकंदन ने कोविड-19 रोगियों को अस्पताल ले जाने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल रहे थे। एक दुखद सड़क दुर्घटना में अपने भाई को खोने के बाद, उन्होंने एक मुफ्त एम्बुलेंस सेवा शुरू करने का फैसला किया। स्थानीय लोगों के बीच 'एम्बुलेंस मणि' के नाम से मशहूर, वह 24/7 मुफ्त एम्बुलेंस सेवा के लिए एक कार सेल्समैन के रूप में काम करते थे और कोई पैसे नहीं लेते थे।
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महामारी की शुरुआत के बाद से, 35 वर्षीय मणिकंदन अपने परिवार को संक्रमित करने के डर से घर नहीं जाते थे और भोजन के लिए स्थानीय पुलिस पर निर्भर रहते हुए अपनी एम्बुलेंस में सोते थे। उन्होंने 65 से अधिक कोरोना रोगियों को पास के अस्पतालों में पहुंचाया है, जिनमें 24 गर्भवती महिलाएं भी शामिल थीं, जिनकी डिलीवरी होने वाली थी। मणि इसके अलावा कोरोना पीड़ितों के शवों को दफनाने भी ले जाते थे।