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पूर्वोत्तर की बेटियां ओलंपिक में भारत को दिला रहीं पदक, फिर सात बहनों में किस बात का झगड़ा ?

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नई दिल्ली, 29 जुलाई। ओलंपिक में पदक दिलाने वाली मणिपुर की मैरी कॉम और मीरा बाई चानू अगर भारत की बेटियां हैं तो फिर पूर्वोत्तर में सीमा को लेकर आपसी लड़ाई कैसी ? पूर्वोत्तर के सात राज्य, सात बहनों की तरह हैं। असम बड़ी बहन है। फिर उसका छह छोटी बहनों से झगड़ा कैसा ? मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, नगालैंड, सिक्किम के प्रतिभाशाली लोग भारत का गौरव बढ़ाते रहे हैं।

Northeasts daughters are winning medals for India then what reason behind the border dispute

सिक्किम के डैनी डैंगजोंगपा के अभिनय को कोई भुला सकता है ? क्या कमाल की हिंदी बोलते हैं। आज भी लाखों लोग उनके अभिनय के दीवाने हैं। सिक्किम के ही रहने वाले भाईचुंग भुटिया ने भारतीय फुटबॉल को नयी उंचाई पर पहुंचाया। उन्हें भारतीय फुटबॉल के लिए भगवान का दिया हुआ उपहार कहा जाता था। मणिपुर के थोइबा सिंह कभी भारतीय हॉकी के स्तंभ हुआ करते थे। नॉर्थईस्ट के ऐसे अनगिनत नाम हैं जिन्होंने भारतीय तिरंगे की शान को बढ़ाया। तब भी इन सात राज्यों में अलगाववादी हिंसा का खौफ था। इसके बावजूद यहां के अधिकांश नागरिकों ने एक सच्चे भारतीय की तरह अपना योगदान दिया। लेकिन राजनीति, भौगोलिक और सांस्कृतिक विषमता के कारण शेष भारत और पूर्वोत्तर के बीच एक खाई बनी रही। पूर्वोत्तर को लेकर दिवंगत सुषमा स्वराज ने लोकसभा (2012) में एक बहुत ही सारगर्भित भाषण दिया था। आज के संदर्भ में भी यह भाषण प्रासंगिक है।

सुषमा स्वराज का वो भाषण

सुषमा स्वराज का वो भाषण

2012 में मनमोहन सिंह की सरकार थी। बेंगलुरु, पुणे, हैदराबाद और कुछ अन्य शहरों में पूर्वोत्तर के लोगों के साथ हिंसा हुई थी। इसकी वजह से वे पलायन करने लगे थे। जब इस मामले ने तूल पकड़ा तो संसद में भी ये मामला उठा। तब सुषमा स्वराज विदिशा की सांसद थीं। उन्होंने 17 अगस्त 2012 को लोकसभा में कहा था, अध्यक्ष जी सबसे पहली घटना 8 अगस्त को पुणे में हुई थी। मणिपुर के दो लोग हिंसा के शिकार हुए थे। एक छात्र था और दूसरा इनफोसिस का कर्मचारी। फिर इसके बाद हैदराबाद में एक बोडो सिक्यूरिटी गार्ड पर हमला हुआ। इसके बाद पुणे, बेंगुलुरु, हैदाराबाद में अफवाह उड़ने लगी कि पूर्वोत्तर के लोग सुरक्षित नहीं है। कई जगह धमकियां दी जानी लगी। इस की वजह पूर्वोत्तर के लोग इन शहरों से पलायन करने लगे। उन्होंने कहा, अभी ऐसा लग रहा है कि सारी रेलगाड़ियों का मुंह गुवाहाटी की तरफ मुड़ गया है।

भरोसा जीतना जरूरी

भरोसा जीतना जरूरी

अध्यक्ष जी, कल मुझसे 20 बच्चे मिलने आये थे जो अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों से थे। इनमें एक छात्र बोडो स्टूडेंट यूनियन का महासचिव भी था। उन्होंने बताया कि उन्हें धमकी मिली है कि अगर 20 दिनों के अंदर रुम खाली नहीं किया तो बुरे नतीजे भुगतने पड़ेंगे। मैने उन्हें भरोसा दिया कि चिंता मत करो, सरकार तुम्हारे साथ है। तो उन्होंने बिना डरे हुए कहा कि जब पुलिस उन्हें सुरक्षा नहीं दे पा रही है तो कैसे समझे कि सरकार उनके साथ है ? मैं उनकी बात से निरुत्तर हो गयी। इस लिए मैं कहना चाहती हूं कि हम सभी लोग दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर पूर्वोत्तर के लोगों को सुरक्षा देनी चाहिए। केवल मौखिक आश्वासन से कुछ नहीं होगा। सरकार को सीधे जुड़ना होगा। जब बेंगलुरू रेलवे स्टेशन पर नॉर्थईस्ट के हजारों लोग घर जाने के लिए पहुंच गये तो कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री और गृहमंत्री ने सीधी पहल की। (उस समय कर्नाटक में भाजपा की सरकार थी) डिप्टी सीएम और ग़ृहमंत्री रेलवे स्टेशन पहुंचे और लाउडस्पीकर से कई घंटों तक एलान करते रहे कि वे घर नहीं जाएं, सरकार उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी लेती है। इसके लिए बकायदा हेल्प लाइन नम्बर जारी किया गया। उनकी सुरक्षा के लिए सरकार ने गंभीर पहल की। मेरा कहना है कि सरकार इनका हरमुमकिन भरोसा जीतने की कोशिश करे।

क्यों हुई थी घटना ?

क्यों हुई थी घटना ?

बताया जाता है कि अगस्त 2012 में बेंगलुरु से करीब चार हजार लोगों (पूर्वोत्तर) ने पलायन किया था। उस समय अफवाहों की वजह से माहौल खराब हो रहा था। कहा जाता है कि शेष भारत में यह हिंसा असम के कोकराझार की घटना का जवाब था। बोडो उग्रवादियों ने जुलाई- अगस्त 2012 में असम के कोकराझार जिले भयंकर रक्तपात किया था जिसमें 71 लोग मारे गये थे। इस घटना की शेष भारत में तीखी प्रतिक्रिया हुई। इसका सबसे अधिक असर बेंगलुरू पर पड़ा था। पूर्वोततर के हजारों बेहतर पढ़ाई और आइटी क्षेत्र में रोजगार के लिए बेंगलुरु, पुणे और हैदराबाद आते रहते हैं। तब बेंगलुरु शहर में इनकी आबादी करीब ढाई लाख थी। बहुत कोशिशों के बाद धीरे-धीरे स्थिति सामान्य हुई।

आग इधर भी, उधर भी

आग इधर भी, उधर भी

नॉर्थईस्ट में भी उत्तर भारतीय लोगों के खिलाफ अक्सर हिंसा होती रहती है। भारत विरोधी भावना इस नफरत को और हवा देती है। 2014 में मणिपुर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेकनोलॉजी (NIT) में बिहार और उत्तर भारत के छात्रों की बर्बर पिटाई की गयी थी। यह एक तरह से नस्लीय हिंसा थी। इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्र कैंपस से बाहर बाजार में कुछ खरीदने गये थे। पहले स्थानीय लोगों ने रॉड और डंडोंं से उनकी बुरी तरह पिटाई कर दी। इस घटना में बिहार के करीब 35 छात्र बुरी तरह घायल हो गये थे। बिहार के छात्रों ने इस हिंसक घटना का वीडियो बना कर मीडिया को जारी किये थे। यह देख कर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मणिपुर के तत्कालीन मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह से बात कर बिहारी छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कहा था। दरअसल मणिपुर के स्थानीय युवक इस बात से नाराज थे कि उन्हें एनआइटी कैंपस में खेलने से क्यों रोक दिया गया था। कैंपस में बाहरी लोगों के खेलने पर रोक लगा दी गयी थी। इस बात के गुस्से में ही बिहारी छात्रों की पिटाई की गयी थी। मतलब आग इधर भी है और आग उधर भी है। नफरत की इस दीवार को अब खेल के सितारे ही गिरा सकते हैं।

English summary
Northeast's daughters are winning medals for India then what reason behind the border dispute
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