निर्भया केस: जानें अब तक किस राष्ट्रपति ने फांसी की दया याचिका पर सबसे ज्यादा दिखाई थी दया
Nirbhaya Case: Know Which President Had Shown the Most Mercy on Hanging Mercy Petition Till Now,निर्भया केस में राष्ट्रपति कोविंद ने दोषी मुकेश गुप्ता की दयायाचिका खारिज कर दी है। जानिए अब तक किस राष्ट्रपति ने सबसे कम खारिज की दया याचिका और किस राष्ट्रपति ने सख्ती बरतते हुए फांसी की दयायाचिका
बेंगलुरु। निर्भया सामूहिक दुष्कर्म मामले में फांसी की तारीख आने के बाद भी दोषियों के वकीलों के दांव और नियम-कानून के चलते दोषियों की फांसी एक बार फिर टल गयी हैं। इस बार ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि निर्भया गैंगरेप और हत्या मामले के चार दोषियों में से एक मुकेश हत्यारें ने राष्ट्रपति के पास दया याचिका दाखिल की थी। जिसे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शुक्रवार को महज 12 घंटे के अंदर खारिज कर दिया। जिसके बाद पटियाला हाउस कोर्ट ने नया डेथ वारंट जारी कर दिया जिसके मुताबिक अब चारों दोषियों को 22 जनवरी के बजाय 1 फरवरी की सुबह छह बजे एक साथ फांसी दी जाएगी। राष्ट्रपति ने जिस गति से दोषी मुकेश की दया याचिका खारिज की है, वह अपने आप में एक रिकॉर्ड है।
बता दें चार दिन पहले ही दोषी मुकेश ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के समक्ष दया याचिका दायर की थी। मुकेश सिंह ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा मौत की सजा के फैसले के खिलाफ उसकी क्यूरेटिव याचिका को खारिज करने के कुछ घंटों बाद मंगलवार को दया याचिका में भेज दिया था। माना जा रहा है कि राष्ट्रपति के दयायाचिका रद्द किए जाने के बाद निर्भया केस के दोषियों को फांसी देने का रास्ता अब साफ हो चुका है।
बता दें दोषी अक्षय की पुर्नविचार याचिका को पहले ही सुप्रीम कोर्ट खारिज कर चुका है। फांसी पर डेथ वारंट जारी होने के बाद फांसी की तारीख को आगे सरकाए जाने के लिए मुकेश के वकील ने यह चाल चली थी। लेकिन राष्ट्रपति ने उनके कुकर्म पर रहम न खाते हुए बिलकुल दया नहीं दिखायी। लेकिन इसका मतलत ये बिलकुल नहीं हैं कि राष्ट्रपति फांसी माफ करने के लिए किसी की दया याचिका नहीं मानते। आपको बता दें वर्तमान राष्ट्रपति कोविंद से पहले कुछ राष्ट्रपति हो चुके हैं जिन्होंने काफी दया दिखाई। तो आइए जानते है अब तक किस राष्ट्रपति ने फांसी की सजा के लिए भेजी गयी दया याचिका पर दयावान रहे और कौन से राष्ट्रपति ने सबसे ज्यादा सख्ती दिखायी।
पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल रहीं दयावान
भारत की आजादी के बाद रहे राष्ट्रपतियों में फांसी के मामले में भेजी गयी दया याचिका में सबसे अधिक दयावान राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल रहीं। उनके कार्यकाल में दौरान कुल 39 फांसी के मामले में दोषियों ने दया याचिका भेजी थी। जिसमें उन्होंने 34 याचिकाओं को स्वीकार कर लिया था, जबकि सिर्फ 5 को ही खारिज किया था। आपको बता दें ऐसे गुनहगार जिन्हें अपराध की गंभीरता की वजह से कोर्ट ने उनके फांसी की सजा सुनाई थी लेकिन उन पर राष्ट्रपति की दया दिखाने के कारण खूब आलोचना भी हुई थी। पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने तो 2012 में एक ऐसे केस के दोषी की फांसी की सजा को भी उम्रकैद में बदल दिया था, जो 5 साल पहले ही 2007 में मर चुका था। उस अपराधी पर नाबालिग लड़की का बलात्कार करने के बाद उसकी हत्या कर दी थी। इस मामले को लेकर पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल की जमकर आलोचना भी हुई। यहां तक राष्ट्रपति कार्यालय को इसके लिए स्पष्ठीकरण भी देना पड़ा था। इस स्पष्ठीकरण में कार्यालय ने लिखा था कि पाटिल ने हर दया याचिका पर फैसला सिर्फ गृह मंत्रालय की संतुति के आधार पर ही लिया था।
इन राष्ट्रपतियों ने भी खूब दिखायी दया
राजेंद्र प्रसाद ने सिर्फ एक दया याचिका खारिज की, जबकि 180 स्वीकार कीं। सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने 57 दया याचिकाओं को स्वीकार कर लिया था। उन्होंने एक भी याचिका को खारिज नहीं किया था। जाकिर हुसैन ने 22 दया याचिकाओं को स्वीकार किया था। उनके कार्यकाल में किसी को भी फांसी के फंदे तक नहीं पहुंचाया गया। वीवी गिरि के पास कुल 3 याचिकाएं आई थीं, जिनमें से उन्होंने कोई भी दया याचिका अस्वीकार नहीं की थी और सभी को स्वीकार कर लिया था। फकरूद्दीन अली अहमद और एन संजीव रेड्डी के सामने एक भी दया याचिका नहीं आई थी।
प्रणब मुखर्जी ने सबसे अधिक दिखाई सख्ती
देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी इस मामले में अब तक के सभी राष्ट्रपतियों में सबसे सख्त रहे। उन्होंने कोर्ट से फांसी की सजा पाने वालों के प्रति कोई मुरव्वत नहीं की। उनके कार्यकाल में फांसी की सजा को उम्र कैद में तब्दील करने संबंधी कुल 34 दया याचिका पहुंची। जिनमें से 4 को स्वीकार किया और उनकी मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदला और बाकी 30 की दया याचिकाएं को सख्ती के साथ खारिज कर दिया। उन्हीं के कार्यकाल में आतंकी याकूब मेमन ने दो बार याचिका डाली थी तो अगर दोनों याचिकाओं को खारिज कर दिया था। अगर याकूब मेनन की दोनों दया याचिका को अलग-अलग गिनती करें तो 30 नहीं 31 दया याचिका प्रणव मुखर्जी ने खारिज करते हुए फांसी बरकरार रखी थी। इतना ही नहीं प्रणव मुखर्जी ने बहुत से फैसले गृह मंत्रालय के विरुद्ध जाकर भी लिए, जो प्रतिभा पाटिल के राष्ट्रपति के कार्यकाल के दौरान नहीं हुआ। याकूब मेनन को राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के ही कार्यकाल में फांसी के तख्तें पर लटकाया गया था।
इन राष्ट्रपतियों ने भी दया याचिकाओं पर अपनाया कड़ा रुख
आपको बता दें ज्ञानी जैल सिंह ने 30 दया याचिकाओं को अस्वीकार कर दिया था और केवल दो को ही स्वीकार किया था। आर वेंकटरामन ने 45 दया याचिकाओं को खारिज किया था, जबकि 5 याचिकाओं को स्वीकार किया था। एसडी शर्मा के पास कुल 18 दया याचिकाएं आई थीं और उन्होंने सभी 18 याचिकाओं को खारिज कर दिया था। के. आर. नारायणन के पास कोई भी दया याचिका नहीं आई थी। एपीजे कलाम ने सिर्फ दो याचिकाओं पर ही निर्णय दिया था, एक को खारिज कर दिया और दूसरे को स्वीकार किया। प्रतिभा पाटिल ने 34 दया याचिकाओं को स्वीकार किया था और पांच को खारिज कर दिया था। प्रणब मुखर्जी ने 31 दया याचिकाओं को अस्वीकार कर दिया था, जबकि चार को स्वीकार किया था।
राष्ट्रपति पर नहीं होती समय की बाध्यता
बता दें वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अब तक के कार्यकाल में निर्भया गैंगरेप केस और एक पुराने केस में ही दो बार दया याचिका दाखिल हुई। निर्भया केस के दोषियों की अब तक पहुंची दया याचिका खारिज कर दी हैं। निर्भया मामले में माना जा रहा हैं बाकी बचे दो दोषियों की भी दया याचिका राष्ट्रपति द्वारा खारिज कर दी जाएगी। आपको बता दें दया याचिका को खारिज करना और पूरी तौर पर राष्ट्रपति पर ही निर्भर करता है। राष्ट्रपति कितने समय में इसे स्वीकार करें या खारिज करें इसके लिए कुल निर्धारित समय नहीं है। अगर राष्ट्रपति चाहे तो उसे पर जल्दी फैसला सुना दें या फिर उस पर फैसला लटकाए रखे। राष्ट्रपति कोंविंद ने निर्भया केस में चंद घंटों में दया याचिका को खारिज कर दिया उसने नयी मिशाल कायम कर दी हैं।
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