न इधर के रहे, न उधर के रहे, ऑटो पायलट मोड में जा चुका है सचिन पायलट का जहाज?
बेंगलुरू। कहते हैं जल्दबाजी में लिया गया कोई भी निर्णय आत्मघाती होता है, लेकिन अगर राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत की मानें तो पिछले 7-8 महीने से दोनों नेताओं के बीच बात नहीं हुई, जिसका मतलब है कि वर्ष 2018 चुनाव में सत्ता हस्तांतरण के बाद मुख्यमंत्री चुने गए अशोक गहलोत के खिलाफ नाराजगी दिसंबर 2019 तक सचिन पायलट के नासुर बन चुकी थी, जिसके इलाज के लिए सचिन पायलट दिल्ली रवाना हुए थे, लेकिन दांव उल्टा पड़ गया लगता है।
अब बड़ा सवाल यह है कि पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट क्या करेंगे, क्योंकि यह मानना कि सचिन पायलट ने यह कदम जल्दबाजी में औरअपरिपक्वता उठाया है, तो उनके जैसे व्यक्तित्व के लिए नाइंसाफी होगी। हां इतना जरूर कहा जा सकता है कि सचिन पायलट की गणित थोड़ी कमजोर हो और उनके साथ दूसरे कांग्रेसी नेताओं की तुलना में पार्टी थोड़ी ज्यादा कठोरता से पेश आई है।
सचिन पायलटः जानिए, कैडर से गांधी परिवार तक सिमट चुकी कांग्रेस की असली कहानी?
कांग्रेस को ज्योतिरादित्य सिंधिया के कारण MP की सरकार गंवानी पड़ी
कारण साफ है, क्योंकि अभी मार्च में कांग्रेस को ज्योतिरादित्य सिंधिया के कारण मध्य प्रदेश की सरकार गंवानी पड़ी। तो दूध का जला, मट्ठा भी फूंक-फूंककर पीता है वाली कहावत को चरित्रार्थ करते हुए कांग्रेस ने राजस्थान की सरकार बचाने के लिए कठोर फैसले लिए और सचिन पायलट को डिप्टी सीएम और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष से छुट्टी करके पूरी तरह से कमजोर कर दिया है।
वर्तमान में सचिन पायलट की हालत त्रिशंकु की तरह हो गई है
वर्तमान में सचिन पायलट की हालत त्रिशंकु की तरह हो गई है, जो बीच में अटका हुआ है, क्योंकि सचिन पायलट कह चुके हैं कि वो बीजेपी में कभी नहीं जाएंगे, जबकि उनके प्रतिद्वंदी अशोक गहलोत मय सबूत दावा कर रहे हैं कि पिछले 6-7 महीने से सचिन पायलट लगातार बीजेपी के संपर्क में थे और उनकी सरकार गिराने का षडयंत्र रच रहे थे।
कांग्रेस से बर्खास्तगी के बाद सचिन पायलट के पास बस एक ही चारा है
फिलहाल, पार्टी अध्यक्ष पद और डिप्टी सीएम पद से बर्खास्तगी के बाद सचिन पायलट के पास बस एक ही चारा है कि वह एक नई पार्टी का गठन करके राजस्थान में अपनी किस्मत आजमाने के लिए जमीन से जुड़कर राजस्थान के मतदाताओं को अपनी दारूण कथा सुनाकर अपने पक्ष में खड़ा करे, क्योंकि बीजेपी वो जाना नहीं चाहते हैं और कांग्रेस में अब उन्हें वो इज्जत नहीं मिलने वाली है, जिसकी आस में सचिन पायलट विधायकों के साथ दिल्ली कूच कर गए थे।
बीजेपी में पहले से एक से लेकर 4 नंबर तक शीर्ष नेताओं का जमावड़ा है
बीजेपी में पहले से एक से लेकर 4 नंबर तक शीर्ष नेताओं का जमावड़ा है और अगर उन्हें राजस्थान में रहकर राजनीतिक करनी है और मुख्यमंत्री पद का सपना सचिन पायलट ने पाला हुआ है तो बीजेपी ज्वाइन करने के बाद भी उन्हें सिवाय संघर्ष के कुछ नहीं मिलने वाला है। हालांकि उनके लिए केंद्रीय नेतृत्व में पूरी संभावना है। बीजेपी ज्योतिरादित्य की तरह उन्हें राज्यसभा के लिए चुन सकती है।
राजस्थान में अशोक गहलोत की ताकत अब काफी मजबूत हो गई है
राजस्थान में अशोक गहलोत की ताकत अब काफी मजबूत हो गई है और अगर सचिन पायलट पार्टी में किसी भी हालात में लौटते हैं, तो उन्हें अशोक गहलोत के रहमो-ंकरम पर पार्टी में रहना होगा, क्योंकि कथित विद्रोह के चलते कांग्रेस आलाकमान में सचिन पायलट का कद घटा है और गांधी परिवार वैसे भी निष्ठावान नेताओं को ही ज्यादा तवज्जो देती है, जिसके खांचे में फिलहाल सचिन पायलट की एंट्री होनी अब लगभग मुश्किल हो गई है।
पिता राजेश पायलट के पद चिन्हों पर चलते हुए कांग्रेस में लौट सकते हैं सचिन
हालांकि पार्टी द्वारा कड़ी कार्रवाई के बावजूद सचिन पायलट के तेवर को देखते हुए माना जा रहा है कि वो पिता राजेश पायलट के पद चिन्हों पर चलते हुए कांग्रेस में दोबार लौट सकते हैं। गत बुधवार को सचिन पायलट दिए बयान में यह साफ-साफ झलक रहा था, जब उन्होंने कहा कि वो अब भी कांग्रेस के सदस्य हैं और बीजेपी में नहीं जाएंगे। उन्होंने कहा कि कुछ लोग उनका नाम बीजेपी से जोड़कर उनकी छवि खराब कर रहे हैं।
कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए राजेश पायलट ने सीताराम केसरी के खिलाफ उतरे थे
वर्ष 1997 में सचिन पायलट के पिता राजेश पायलट ने सीताराम केसरी के खिलाफ कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़े और हार गए, लेकिन कांग्रेस में बन रहे। नवंबर 2000 में बागी नेता जितेंद्र प्रसाद ने कांग्रेस अध्यक्ष पद पर सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव में खड़े हुए राजेश पायलट जितेंद्र प्रसाद के साथ खड़े नजर आए थे, लेकिन पार्टी छोड़कर नहीं गए।
क्या अशोक गहलोत के साथ पॉवर टशल में नेतृत्व से बारगेन चाहते थे सचिन
संभव है कि सचिन पायलट भी अशोक गहलोत के साथ राजस्थान में चल रहे पॉवर टशल में केंद्रीय नेतृत्व से कुछ पॉवर बारेगन करना चाहते थे, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व ज्योतिरादित्य के हाथों मध्य प्रदेश गंवाने के बाद खार खाया हुआ था और एक और प्रदेश से सरकार गिरने की आशंका में सचिन पायलट के खिलाफ सख्ती से पेश आने को मजबूर हो गई होगी। ऐसा कांग्रेस में आमतौर नहीं होता है, लेकिन पहली बार हुआ है जब कांग्रेस ने बेहद कड़ा फैसला लिया है।
इसमें दो राय नहीं है कि सचिन पायलट अभी कांग्रेस में ही बने रहेंगे
इसमें दो राय नहीं है कि सचिन पायलट अभी कांग्रेस में ही बने रहेंगे, लेकिन यह तय है कि सचिन पायलट के लिए अब कांग्रेस में रहकर काम करना बहुत मुश्किल होगा। सचिन पायलट के लिए मुश्किल सिर्फ यही नहीं है अगर वो अड़ते हैं कि समर्थित विधायकों की कुर्सी भी गंवा बैठेंगे। पार्टी व्हिप के जारी नोटिस का अगर विधायकों ने जवाब नहीं दिए तो उन्हें अयोग्य घोषित किया जा सकता है।
अब सचिन पायलट और समर्थक विधायकों ने मिमियाना शुरू कर दिया है
शायद यही कारण है कि अब सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों ने मिमियाना शुरू कर दिया है। खुद सचिन पायलट सफाई देने में जुट गए हैं। सचिन पायलट की रणनीति तो फेल हुई ही है, उनकी साख की भी मिट्टी पलीद हुई है। पार्टी शायद ही उनके वापस लौटने पर उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी देना पसंद करेगी और 2023 राजस्थान विधानसभा चुनाव तक उन्हें राजनीतिक निर्वासन के रूप में बिताना पड़ सकता है।
अशोक गहलोत की सरकार गिराने की स्थिति में नहीं दिख रहे हैं
कुल मिलाकर सचिन पायलट के पास बहुत कम राजनीतिक विकल्प हैं। वो अशोक गहलोत की सरकार गिराने की स्थिति में नहीं दिख रहे हैं। ऐसी स्थिति में बीजेपी आलाकमान उन्हें क्या करके पार्टी में शामिल करेगी। सचिन के लिए अपनी एक पार्टी का गठन भी आसान नही है, क्योंकि राजस्थान में कांग्रेस और बीजेपी के सामने कोई तीसरा मोर्चा अभी तक तो सफल नहीं रहा है। किरोड़ी लाल मीणा इसके बड़े उदाहरण है, जो आजकल बीजेपी में हैं।
अब सचिन पायलट के पास यही विकल्प है कि वो कांग्रेस में लौट जाएं
अब सचिन पायलट के पास यही विकल्प है कि वो कांग्रेस में लौट जाएं और चुपचाप सब बर्दाश्त करें। क्योंकि अब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को कांग्रेस आलाकमान का वरदहस्त हासिल है और सचिन पायलट को उनकी छाया में ही काम करना नियति हो जाएगी। अशोक गहलोत का हालिया बयान इसे अच्छे से रेखांकित करता है, जब गहलोत ताना मारते हुए कहते है, सिर्फ अच्छा दिखने से ही कुछ नहीं होता, सबसे जरूरी होती है- मेहनत और नीयत।
राजस्थान भेजे गए रणदीप सुरजेवाला ने सचिन पायलट को गिनाए एहसान
यही बात कांग्रेस की ओर राजस्थान भेजे गए कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने पायलट की बर्खास्तगी के बाद कही थी। सुरजेवाला ने कहा कि छोटी उम्र में पार्टी ने उन्हें जो राजनीतिक ताकत दी, वह किसी और को नहीं दी गई थी। वर्ष 2003 में पायलट ने राजनीति में कदम रखा था। 2004 में उन्हें महज 26 साल की उम्र में सचिन पायलट कांग्रेस सांसद चुन लिए गए। 32 साल की उम्र में केंद्रीय मंत्री बनाया और 40 साल की उम्र में डिप्टी सीएम बनाया गया।
सचिन पायलट कांग्रेस में लौटते हैं तो उनका पद कद उन्हें मिल सकता है
हालांकि ऐसा सुनने में आ रहा है कि अगर सचिन पायलट कांग्रेस में वापस लौटते हैं तो उन्हें उनका पद कद वापस मिल सकता है। यही कारण है कि सचिन पायलट समर्थित कांग्रेस विधायक भी मौजूदा से निपटने के लिए उन्हें कांग्रेस में बने रहने की सलाह दे रहे हैं, क्योंकि बारगेन करने की स्थिति में सचिन पायलट नहीं दिख रहे हैं। हां, अगर दलबदल कानून से बचने के लिए उनके पास जरूरी विधायकों की संख्या है, तो कुछ बेहतर हो सकता है।
पायलट युवा नेताओं को साथ जोड़कर कांग्रेस में जंग जारी रख सकते हैं
पायलट के पास पहला विकल्प है कि वे कांग्रेस में रहें और पार्टी के भीतर अपने सम्मान की लड़ाई लड़ें। वे युवा नेताओं को साथ जोड़कर रखते हुए भी अपनी जंग जारी रख सकते हैं। दूसरा विकल्प और विधायकों को अपने पाले में करने का है ताकि पायलट की ताकत बढ़े।
कांग्रेस पर दवाब के लिए पायलट बीजेपी में जाने का रास्ता खुला रख सकते हैं
पायलट कांग्रेस का दामन छोड़कर अपनी अलग पार्टी भी खड़ी कर सकते हैं। तीसरा विकल्प यह भी है कि पायलट बीजेपी में जाने का रास्ता खुला रखें ताकि कांग्रेस आलाकमान पर दबाव बना रहे। चौथा विकल्प है कि वो जोड़-तोड़ से अशोक गहलोत की सरकार गिरा दें और विधानसभा चुनाव की तैयारी करें।
अलग पार्टी बनाने से आगे राजनीतिक सफर मुश्किल होने वाला है
सचिन पायलट विधायकों के मौजूदा गणित के हिसाब अशोक गहलोत सरकार का कुछ बिगाड़ने की स्थिति में नहीं दिख रहे हैं। अगर सचिन कांग्रेस और बीजेपी दोनों से रास्ते अलग करके नई पार्टी का गठन करते हैं, तो उनके लिए राजनीतिक जमीन तैयार करने में काफी वक्त लग सकता है। संभव है कि वो दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की तरह पहली बार में सफल भी हो जाएं और अकेले सरकार नहीं, तो किंग मेकर बनकर उभर जाए, लेकिन यह तय है कि यह फैसला सचिन पायलट के लिए काफी संघर्षो वाला होगा।