मोदी सरकार के दो दलित मंत्रियों ने सवर्णों के लिए आरक्षण की मांग कर बढ़ाईं मुश्किलें
नई दिल्ली। देश भर में एससी/एसटी एक्ट के विरोध और आरक्षण को लकेर नाराज अगड़ी जातियों के लोगों को मनाने के लिए क्या केंद्र की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार कोई बड़ा दांव चलने वाली है? क्या सरकार अगड़ी जातियों को किसी तरह का आरक्षण देने पर विचार कर रही है? या फिर एनडीए सरकार के दो दलित मंत्री जो दो अलग-अलग राजनीतिक दलों से आते हैं उन्होंने मोदी सरकार के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है। केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री राम विलास पासवान और केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्यमंत्री रामदास अठावले ने सवर्णों को आरक्षण देने की मांग की है। देश में आरक्षण के विरोध में आवाज उठती रही हैं और कई अगड़ी जातियां खुद को आरक्षण देने की मांग को लेकर उग्र प्रदर्शन भी करती रही हैं। ऐसे में जब दो दलित नेता खुद सवर्णों को आरक्षण देने की मांग कर रहे हैं तो क्या ये सवर्णों की मांग को बल देता है और क्या ये संवैधानिक और कानूनी रुप से संभव भी है?
पिछले दिनों जिस तरह से सवर्णों ने भारत बंद किया था उसके बाद केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान ने सवर्णों को आरक्षण दिए जाने की बात कही। पासवान से जब पूछा गया कि क्या सवर्णों को कुछ आरक्षण दिया जाना चाहिए तो उन्होंने जवाब में कहा कि कुछ क्यों, उन्हें 15 फीसदी आरक्षण दिया जाना चाहिए। पासवान ने कहा कि तमिलनाडु में कुल 69 फीसदी आरक्षण है, ऐसे में अगर सभी राजनीतिक दल फैसला लेते हैं तो कोई दिक्कत नहीं होगी।
अठावले एक कदम आगे
लोक
जनशक्ति
पार्टी
के
वरिष्ठ
नेता
अजय
कुमार
ने
वन
इंडिया
से
कहा
कि
सवर्णों
को
आरक्षण
देने
की
मांग
हमारी
पार्टी
की
कोई
नई
मांग
नहीं
है।
ये
पार्टी
के
घोषणापत्र
में
रहा
है
और
ये
बिहार
में
पार्टी
का
आधार
भी
है।
पार्टी
के
कई
राज्यों
में
अध्यक्ष
सहित
कई
ऊपरी
जाति
के
पदाधिकारी
हैं
इसलिए
इस
मुद्दे
पर
पार्टी
का
स्टैंड
स्पष्ट
है।
इस
बीच
केंद्रीय
सामाजिक
न्याय
एवं
अधिकारिता
राज्यमंत्री
रामदास
अठावले
ने
भी
आर्थिक
रूप
से
कमजोर
सवर्णों
को
25
प्रतिशत
आरक्षण
देने
की
मांग
कर
डाली
है।
अठावले
ने
कहा
है
कि
चूंकि
आरक्षण
खत्म
करना
संभव
नहीं
है
लेकिन
अगड़ी
जातियों
को
मदद
करने
के
लिए
25
प्रतिशत
आरक्षण
दिया
जा
सकता
है।
वो
पासवान
की
मांग
से
10
प्रतिशत
ज्यादा
आरक्षण
की
बात
कह
रहे
हैं।
रामदास
कहते
हैं
कि
आरक्षण
के
दायरे
को
50
से
बढ़ाकर
75
प्रतिशत
करना
होगा
और
इसके
लिए
सभी
दलों
को
सरकार
का
साथ
देना
चाहिए।
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संसद में बने कानून
रामदास अठावले का कहना है कि कई राज्यों में ऊंची जाति के लोग आरक्षण की मांग कर रहे हैं। महाराष्ट्र में मराठा, गुजरात में पटेल, हरियाणा में जाट, राजस्थान में राजपूत, ठाकुर और उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण हैं। उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और ओबीसी के आरक्षण कोटे में बिना किसी छेड़छाड़ के ऊपरी जातियों को 25 प्रतिशत आरक्षण दिया जाना चाहिए। अठावले ने कहा कि इस संबंध में संसद में कानून पारित करके समस्या हल हो सकती है। हालांकि उन्होंने क्रिकेट और अन्य खेलों के साथ-साथ सेना में भी आरक्षण की मांग कर डाली। अठावले कहते हैं कि एससी/एसटी अधिनियम में संशोधन के खिलाफ 6 सितंबर को राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश में जिन अगड़ी जातियों ने विरोध किया था उन्हें इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए दिल्ली आने को कहा जाएगा। यह अधिनियम दलितों की सुरक्षा के लिए है लेकिन अगर इसका दुरुपयोग किया जाता है तो उसे भी देखा जाएगा।
क्या कहता है संविधान?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है। इसके लिए ये सिद्ध किया जाना जरूरी है कि वो दूसरों के मुकाबले सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हैं। क्योंकि अतीत में उनके साथ अन्याय हुआ है, ये मानते हुए उसकी क्षतिपूर्ति के तौर पर उन्हें आरक्षण दिया जा सकता है। संविधान में धर्म या आर्थिक आधार पर आरक्षण की बात नहीं की गई है।
50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं
1993
के
मंडल
कमीशन
केस
में
सुप्रीम
कोर्ट
की
नौ
जजों
की
पीठ
ने
कहा
था
कि
किस-किस
आधार
पर
भारतीय
संविधान
के
तहत
आरक्षण
दिया
जा
सकता
है।
1963
के
बाला
जी
मामले
का
जिक्र
करते
हुए
सुप्रीम
कोर्ट
ने
कहा
था
कि
जाति
अपने
आप
में
आरक्षण
का
कोई
आधार
नहीं
बन
सकती।
उसमें
दिखाना
होगा
कि
पूरी
जाति
ही
शैक्षणिक
और
सामाजिक
रूप
से
अन्यों
से
पिछड़ी
हुई
है।
मंडल
कमीशन
केस
में
सुप्रीम
कोर्ट
ने
साफ
कर
दिया
था
कि
अलग
अलग
राज्यों
में
स्थिति
भिन्न
हो
सकती
है
और
किसी
समुदाय
को
किसी
एक
राज्य
में
आरक्षण
है
तो
उसे
किसी
अन्य
राज्य
या
केंद्र
में
नहीं
हो
सकता।
सुप्रीम
कोर्ट
ने
1992
के
इंदिरा
साहनी
केस
में
अपने
फैसले
में
कहा
कि
सामान्यता
50
फीसदी
से
ज्यादा
आरक्षण
नहीं
हो
सकता
क्योंकि
एक
तरफ
हमें
मेरिट
को
ध्यान
में
रखना
होगा
तो
दूसरी
तरफ
हमें
सामाजिक
न्याय
का
भी
ख्याल
रखना
होगा।
ऐसे
में
अब
सवाल
ये
उठता
है
कि
जब
मामले
में
कानून
साफ
है
तो
मोदी
सरकार
के
दो
मंत्रियों
की
ये
मांग
क्या
सरकार
मान
सकती
है?
कहीं
ऐसा
तो
नहीं
कि
फिलहाल
सवर्णों
को
शांत
करने
के
लिए
इस
तरह
के
बयान
दिए
गए
हैं।
लेकिन
आने
वाले
वक्त
में
ये
बयान
मोदी
सरकार
के
लिए
गले
की
फांस
भी
बन
सकते
हैं।
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