नरेंद्र मोदी क्या गुरदासपुर से चुनाव अभियान की शुरुआत कर रहे हैं?
प्रमोद कहते हैं कि खालिस्तान के समर्थकों की उठती आवाज़ों और 20:20 के जनमतसंग्रह के करीब आने से हिंदूओं और दलितों के बीच डर भी है. इसी डर को आधार बनाकर वो समर्थकों को चेतावनी देंगे, जिससे वो हिंदू और दलितों को आश्वासन दे सकें कि डरने की कोई बात नहीं है.
यही वजह है कि चुनाव प्रचार के आगाज़ के लिए गुरदासपुर कूटनीतिक दृष्टि से अहम है. हालांकि ये समय ही बताएगा कि इससे वोटों के मामले में कितना फ़ायदा होता है.
लोकसभा चुनाव में कुछ महीने बाकी हैं, लेकिन उससे पहले ही पंजाब का गुरदासपुर राजनीतिक गहमा-गहमी के बीच चर्चा में है.
यहां से भारत-पाकिस्तान की सीमा करीब आधे घंटे की दूरी पर है और यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रैली करने जा रहे हैं.
ऐसा समझा जा रहा है कि वो आगामी चुनावों के मद्देनज़र यहीं से एनडीए के चुनावी अभियान का शंखनाद करेंगे और ये उनका लॉन्च पैड होगा.
मुख्य शहर से करीब दो किलोमीटर दूर होने वाली इस रैली की तैयारियां जोरों पर हैं. जगह-जगह होर्डिंग लगाए गए हैं. कई इसे मोदी की महा'रैली' बता रहे हैं तो कई धन्यवाद रैली कह रहे हैं.
अचानक एक रिक्शे से होने वाली घोषणा की ओर लोगों का ध्यान जाता हैः "आपके लिए बड़ी ख़बर है. पिछले 30 सालों में पहली बार कोई प्रधानमंत्री अपने शहर आ रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार को यहां आएंगे, आप उन्हें सुनने ज़रूर आएं."
ज़िले के लोग भी प्रधानमंत्री की रैली को लेकर उत्सुक दिख रहे हैं. कई अपनी मांगों की सूची लेकर तैयार हैं तो कई को उम्मीद है कि वो वहां की स्थानीय समस्याओं पर बात करेंगे.
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यहाँ कई लोगों का मानना है कि उनका ज़िला पिछड़ा है और उसे विकास की सख्त ज़रूरत है.
जोगिंदर सिंह नाम के एक दुकानदार ने कहा, "गुरदारपुर ज़िला मुख्यालय भले ही है पर उसके पास के दूसरे शहर बटाला और पठानकोट ज़्यादा बेहतर हैं."
वो कहते हैं कि ज़िले में उद्योग धंधों की कमी है और युवाओं को बेरोजगारी का सामना करना पड़ रहा है. लोगों को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री क्षेत्र की बेहतरी और विकास के लिए कुछ घोषणा करेंगे.
ज़िले के एक किसान गुरनाम सिंह का कहना है कि यहां की सरकारों ने किसानों के लिए कुछ नहीं किया, इसलिए वो भुखमरी से लड़ने के लिए मजबूर हैं.
वो कहते हैं, "हम चाहते हैं कि प्रधानमंत्री किसानों के कर्ज़माफी की घोषणा करें ताकि पंजाब के किसान राहत की सांस ले सके."
गुरनाम सिंह ड्रग्स की समस्या का भी जिक्र करते हैं. वो कहते हैं कि यहां के युवाओं के पास रोजगार नहीं है, इसलिए उन्हें ड्रग्स की लत से दूर रखना मुश्किल है.
विशेषज्ञों का कहना है कि गुरदासपुर से चुनावी अभियान की शुरुआत एनडीए गठबंधन के लिए राष्ट्रीय और स्थानीय, दोनों नज़रिये से कई मायनों में महत्वपूर्ण है.
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करतारपुर कॉरिडोर
सिख समुदाय यह मानता है कि करतारपुर कॉरिडोर उनके लिए किसी बड़े गिफ्ट से कम नहीं है.
हाल ही में भारत और पाकिस्तान ने इस कॉरिडोर के निर्माण पर सहमति जताई थी और इसका निर्माण भी दोनों तरफ से शुरू हो चुका है.
भारत के लोग अब आसानी से पाकिस्तान के करतारपुर साहिब पहुंच सकेंगे. इस कॉरिडोर की मांग सिख कई दशकों से कर रहे थे. करतारपुर साहिब से समुदाय का भावनात्मक जुड़ाव है.
प्रधानमंत्री मोदी जहां रैली करने जा रहे हैं, वो इलाक़ा कॉरिडोर से महज आधे घंटे की दूरी पर है. ऐसे में नरेंद्र मोदी के लिए यह एक बेहतर मौका साबित हो सकता है कि वो इसका क्रेडिट ले सकें और यह बता सकें कि केंद्र सरकार का इसमें क्या योगदान रहा है.
भाजपा का सहयोगी अकाली दल यह चाहेगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस पर बात करें ताकि कांग्रेस के नेता नवजोत सिंह सिद्धू इसका सारा क्रेडिट अपनी झोली में न डाल ले.
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पाकिस्तान को संदेश
पाकिस्तान की सीमा के नजदीक होने वाली इस रैली से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पाकिस्तान को कड़ा संदेश दे सकते हैं कि वो शांति चाहते हैं लेकिन सीमा पार से कोई चरमपंथी गतिविधि हुई तो भारत उसका मुंहतोड़ जवाब देगा.
वो यहां सर्जिकल स्ट्राइक का भी जिक्र कर सकते हैं और इसे अपनी सरकार की उपलब्धि गिना सकते हैं. हालांकि कुछ विशेषज्ञ उन पर सेना के पराक्रम को अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल करने के आरोप भी लगाते रहे हैं.
मज़बूत पकड़
2014 में हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा ने गुरदासपुर सहित दो लोकसभी सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं उनके सहयोगी अकाली दल ने राज्य के 13 लोकसभा सीटों में से चार पर जीत दर्ज की थी.
भाजपा और मोदी यह समझते हैं कि गुरदासपुर के इलाक़े में उनकी पकड़ अच्छी है और अन्य जगहों पर उनके सहयोगी दल बेहतर स्थिति में हैं. ऐसे में गुरदासपुर का चयन एक बेहतर चुनावी शर्त की तरह है.
यहां से विनोद खन्ना चार पर सांसद रह चुके हैं और उनकी मौत के बाद साल 2017 में हुए उपचुनाव में यह सीट कांग्रेस के खाते में चली गई थी.
स्थानीय लोग विनोद खन्ना का कामकाज को अलग-अलग तरह से देखते हैं. युवा उद्यमी तजिंदर सिंह कहते हैं कि वो इसलिए जीतते थे क्योंकि लोग सेलिब्रिटी को पसंद करते हैं.
वहीं दूसरे इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते. एक अन्य दुकानदार केवल शर्मा कहते हैं, "विनोद खन्ना ने इलाक़े में कई पुल बनवाए, जिससे लोगों के समय और पैसे बचे. इसलिए उन्हें 'पुलों का बादशाह' कहा जाता है."
स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार विपिन पब्बी कहते हैं कि पिछली बार पार्टी का प्रदर्शन राज्य में बेहतर नहीं रहा था और कांग्रेस सत्ता में आने में कामयाब रही थी. गुरदासपुर के वोटरों पर भाजपा की पकड़ है और वो इसे और मजबूत करना चाहती है, यही कारण कि पार्टी यहां से चुनावी अभियान की शुरुआत कर रही है.
1984 मामला
मोदी 1984 के सिख-विरोधी दंगा मामले में आए दिल्ली कोर्ट के फैसले के तुरंत बाद गुरदासपुर आ रहे हैं. इस मामले में कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को उम्र कैद की सज़ा सुनाई गई है.
सिख समुदाय लंबे समय से इस फैसले का इंतज़ार कर रहा था और ये फैसला ठीक आम चुनाव के पहले आया है. चंडीगढ़ स्थित विकास और संचार संस्थान के प्रमुख प्रमोद कुमार का कहना है कि मोदी इस अवसर को कांग्रेस के खिलाफ इस्तेमाल करने से नहीं चूकेंगे.
हिंदूओं को आश्वासन
प्रमोद कुमार कहते हैं, "ठीक उसी वक्त वो धर्म-निरपेक्षता का संदेश भी देना चाहेंगे और ये आश्वासन भी देना चाहेंगे कि बीजेपी अल्पसंख्यकों और दलितों के साथ खड़ी है."
प्रमोद कहते हैं कि खालिस्तान के समर्थकों की उठती आवाज़ों और 20:20 के जनमतसंग्रह के करीब आने से हिंदूओं और दलितों के बीच डर भी है. इसी डर को आधार बनाकर वो समर्थकों को चेतावनी देंगे, जिससे वो हिंदू और दलितों को आश्वासन दे सकें कि डरने की कोई बात नहीं है.
यही वजह है कि चुनाव प्रचार के आगाज़ के लिए गुरदासपुर कूटनीतिक दृष्टि से अहम है. हालांकि ये समय ही बताएगा कि इससे वोटों के मामले में कितना फ़ायदा होता है.