महात्मा गांधी की हत्या पर दाखिल हुई याचिका, केस को दोबारा खोलने की मांग
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के 148वें जन्मदिन से ठीक पहले उनकी मौत पर सवाल खड़े हो गए हैं।
नई दिल्ली। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के 148वें जन्मदिन से ठीक पहले उनकी मौत पर सवाल खड़े हो गए हैं। सवाल उठ रहे हैं कि उनके जीवन की रक्षा के लिए अमेरिका की खुफिया एजेंसी ने क्या भूमिका निभाई थी।
ये सवाल अभिनव भारत, मुंबई के शोधकर्ता और ट्रस्टी पंकज फड़निस ने उठाए हैं। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में गांधी की मौत को इतिहास का सबसे बड़ा कवर-अप बताते हुए केस को दोबारा से खोलने की मांग की गई है।
इस याचिका में सवाल उठाया गया है कि क्या द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिका की खुफिया एंजेसी ऑफिस ऑफ स्ट्रेटेजित सर्विसेज ने महात्मा गांधी को बचाने की कोशिश की थी? फड़निस का कहना है कि अमेरिकी दूतावास से 30 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी की मृत्यु के बाद वॉशिंगटन टेलीग्राम भेजे गए थे जिसमें से एक अभी भी गोपनीय है।
मई में अमेरिका की यात्रा के दौरान फड़निस ने इन टेलीग्राम्स को रिकॉर्ड में रखा है जो उन्होंने मैरीलैंड के नेशनल अर्काइव्स एडं रिसर्च एडमिनिस्ट्रेशन से आधिकारिक रूप से प्राप्त किया था।
फड़निस ने कहा कि 20 जनवरी, 1948 को अमेरिकी दूतावास से रात 8 बजे भेदे गए 'प्रतिबंधित टेलीग्राम' के अनुसार, जब महात्मा गांधी को गोली लगी, उस वक्त डिस्ट्रीब्यूटिंग ऑफिसर हरबर्ट टॉम रीनर उनसे केवल 5 फीट की दूरी पर थे। भारतीय गार्ड्स की सहायता से उन्होंने हत्यारों को पकड़ भी लिया था।
फड़निस ने याचिका के समर्थन में लिखे सबमिशन में कहा, 'इसके बाद रीनर ने शाम को दूतावास पहुंचते ही रिपोर्ट दर्ज कराई थी। हालांकि 70 सालों बाद भी ये रिपोर्ट गोपनीय है। याचिकाकर्ता ने रिपोर्ट को सार्वजनिक करने के लिए अमेरिका के सूचना की स्वतंत्रता सूचना अधिनियम (यूएसएफओ) के तहत उक्त रिपोर्ट की घोषणा के लिए आवेदन किया है।' उच्चतम न्यायालय में 6 अक्टूबर को इस याचिका पर सुनवाई होगी।
फड़निस ने कोर्ट को बताया कि ये टेलीग्राम उसी शाम रीनवर की डीब्रिफिंग के बाद भेजा गया था जिसे 'गोपनीय' चिह्नित किया गया था। फड़निस इस मुद्दे पर 1996 से शोध कर रहे हैं और बापू की 148वीं जयंती पर वो व्हाइट हाउस के साथ मिलकर रीनर द्वारा भेजे गए तीसरे टेलीग्राम को सार्वजनिक करने के लिए ऑनलाइन याचिका भी लॉन्च करेंगे।
याचिका में 'तीन बुलेट थियोरी' पर भी सवाल खड़े किए गए हैं। इसके अनुसार महात्मा गांधी को तीन नहीं चार गोलियां लगीं थीं और हत्या के अगले दिन कई अखबारों में उन्हं चार गोलियां लगने का जिक्र है। उन्होंने दावा किया है कि 1996 में महात्मा गांधी की हत्या की जांच के लिए गठित जस्टिस जेएल कापुर कमिशन हत्या के पीछे की साजिश पता लगाने में नाकाम रही थी।
फड़निस ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए 6 जून, 2016 को याचिका दायर की थी जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था।