Jammu Kashmir: फारूक अब्दुल्ला से बातचीत के लिए मोदी सरकार ने वाजपेयी के भरोसेमंद 'जासूस' को भेजा श्रीनगर
नई दिल्ली। इंटेलीजेंस एजेंसी रॉ के पूर्व चीफ एएस दुलात को सरकार की तरफ से एक सीक्रेट मिशन पर जम्मू कश्मीर भेजा गया था। इंग्लिश डेली हिन्दुस्तान टाइम्स की ओर से दी गई खास जानकारी में कहा गया है कि दुलात फरवरी माह की शुरुआत में श्रीनगर गए थे। सरकार की ओर से उन्हें नजरबंद करके रखे गए नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला से मिलकर उनका मूड भांपने के मकसद से भेजा गया था। इस बात की पुष्टि कई सीनियर ऑफिसर्स ने अखबार से की है। सरकार ने पिछले वर्ष पांच अगस्त को घाटी से आर्टिकल 370 को हटा दिया था। उसके बाद से फारूक के अलावा उनके बेटे पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला को नजरबंद करके रखा गया है।
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सीक्रेट मिशन पर घाटी पहुंचे दुलात
दुलात को जिस सीक्रेट मिशन पर कश्मीर भेजा गया था, उसके तहत आर्टिकल 370 हटने के बाद जम्मू कश्मीर की नई वास्तविकता को स्वीकारे जाने को लेकर फारूक अब्दुल्ला के मूड को भांपना था। परिवार के एक सदस्य के हवाले से अखबार ने लिखा है, 'दुलात पिछले कई समय से अब्दुल्ला से मिलना चाहते थे।' इसके बाद फरवरी माह में उन्हें सरकार की तरफ से उनसे मुलाकात की मंजूरी दी गई थी। इस बारे में जब दुलात से संपर्क किया गया था तो उन्होंने कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा, 'अगर अधिकारियों और परिवार ने आपको यह जानकारी दी है तो मेरे पास इस बारे में कहने को कुछ भी नही है।'अक्टूबर माह में सरकार ने 82 साल के फारूक अब्दुल्ला को पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) के तहत घर में ही कैद करके रखा गया है। उमर और महबूबा मुफ्ती पर भी यह कानून लगा दिया गया है।
उमर से बॉन्ड साइन कराने की कोशिश
पीएसए के तहत किसी को भी बिना ट्रायल के दो साल तक हिरासत में रखा जा सकता है। एक और ऑफिसर की तरफ से बताया गया है कि दुलात और अब्दुल्ला की जो मीटिंग हुई उसमें पूर्व सीएम खासे नाराज थे और उनके रुख में किसी तरह की नरमी नही थीं। वहीं यह जानकारी भी दी गई है कि जम्मू कश्मीर प्रशासन की तरफ से उमर अब्दुल्ला से एक प्रकार का बॉन्ड भी साइन करवाने की कोशिश की गई थी। इस बॉन्ड के जरिए अब्दुल्ला को आर्टिकल 370 हटने की आलोचना करने से रोकने की कोशिश करना था। मगर उमर ने इस बॉन्ड को साइन करने से इनकार कर दिया।
केंद्र सरकार पर भड़के फारूक अब्दुल्ला
फारूक अब्दुल्ला, केंद्र सरकार से काफी नाराज हैं। उन्हें इस बात की तकलीफ है कि उन्हें देश-विरोधी समझा जाता है और जबकि उन्होंने सार्वजनिक तौर पर 'भारत माता की जय' जैसे नारे लगाए हैं। अब्दुल्ला ने एक बार फिर से याद दिलाया कि वह देश के सैनिक हैं न कि दुश्मन। केंद्र सरकार की तरफ से नए केंद्र शासित प्रदेश में राजनीतिक गतिविधियों को फिर से शुरू करने की कोशिशें की जा रही हैं। सूत्रों की मानें तो केंद्र सरकार इस बात को लेकर खासी कनफ्यूज है कि घाटी में आगे कैसे बढ़ा जाए और सरकार इसके लिए कई तरह के विकल्प भी अपनाने की कोशिशें कर रही हैं। दुलात को कश्मीर भेजना, इन्हीं प्रयोगों का एक हिस्सा था। सरकार मानती है कि नेताओं को पीएसए के तहत कैद रखना संभव नहीं है।
1989 से जानते हैं अब्दुल्ला-दुलात के रिश्ते
दुलात और अब्दुल्ला के बीच रिश्ते कई वर्ष पुराने हैं। यह तीसरा मौका था जब पूर्व इंटेलीजेंस ऑफिसर दुलात को अब्दुल्ला से मिलकर उन्हें शांत कराने की कोशिश के लिए घाटी भेजा गया था। सन् 1989 में जब रुबैया सईद का अपहरण हुआ था उस समय दुलात, श्रीनगर में तैनात थे। उस समय रूबैया के बदले सरकार को पांच आतंकियों को रिहा करना पड़ा था। दुलात को तब सरकार ने गुस्साए अब्दुल्ला के पास बातचीत के लिए भेजा था। फारूक अब्दुल्ला तब राज्य के मुख्यमंत्री थे, आतंकियों की रिहाई के सख्त खिलाफ थे।
वाजपेयी के इस फैसले पर इस्तीफा देने को थे रेडी
इसके बाद साल 1999 में जब इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट आईसी814 को हाइजैक कर कंधार ले जाया गया था, उस समय भी दुलात ही फारूक अब्दुल्ला के पास गए थे। केंद्र में तब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी और तीन आतंकियों को फ्लाइट के बदले रिहा किया गया था, जिसमें जैश का सरगना मौलाना मसूद अजहर भी शामिल था। अब्दुल्ला ने यह कहते हुए आतंकियों की रिहाई से इनकार कर दिया कि यह कदम भारत के ताबूत में आखिरी कील साबित होगा। अब्दुल्ला यहां तक नाराज थे कि उन्होंने इस्तीफा देने की पेशकश कर डाली थी। तब वह दुलात को तत्कालीन राज्यपाल जीसी सक्सेना के पास राजभवन लेकर गए थे। राज्यपाल ने तब अब्दुल्ला को इस्तीफा ने देने के लिए मनाया था।