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बेरोजगारी के आंकड़ों की बगावत ने चुनाव से पहले बढ़ाई मोदी सरकार की मुश्किल

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नई दिल्ली। नरेंद्र मोदी सरकार 5 साल पूरे करने जा रही है। उम्मीदों और जनाकांक्षाओं की सरकार रोजगार के मुद्दे पर जवाब देने से बच रही है। सरकार पर रोजगार से जुड़े आंकड़े दबाने के आरोप भी लग रहे हैं। ये आरोप अब राजनीतिक न होकर आधिकारिक हो गये हैं। राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के कार्यवाहक अध्यक्ष पीसी मोहनन और सदस्य जेवी मीनाक्षी ने ये कहते हुए इस्तीफ़ा दिया है कि सरकार रोजगार के आंकड़े दबा रही है। इस परिप्रेक्ष्य में यह मुद्दा आम चुनाव में जोर पकड़ सकता है।

29.6 लाख सरकारी पद खाली

29.6 लाख सरकारी पद खाली

एक आंकड़े के मुताबिक केंद्र और राज्य के स्तर पर 29 लाख 60 हज़ार सरकारी रिक्तियां हैं। अगर इन रिक्तियों को भरा जाता है तो उस पर 1 लाख करोड़ रुपये का ख़र्च आएगा। उस स्थिति में केंद्र सरकार के वेतन का बजट 76 फीसदी बढ़ जाने के आसार हैं। अब मोदी सरकार के पास इतना वक्त नहीं है कि इतने बड़े पैमाने पर इन नियुक्तियों को वह भरे। दूसरी ओर रोजगार के सवाल पर सरकार की छवि लगातार ख़राब हो रही है।

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छवि सुधारने के लिए मोदी सरकार के पास वक्त कम

छवि सुधारने के लिए मोदी सरकार के पास वक्त कम

ऐसे में मोदी सरकार के पास एक ही चारा है कि वह कुछेक क्षेत्रों में बम्पर वैकेन्सी निकालकर माहौल पैदा करे। एक ऐसा माहौल कि अगर कुछ और वक्त होता तो जैसे बेरोजगारी का नामोनिशान मिटा दिया जाता। रेलवे में सवा लाख भर्तियां निकालने का मकसद यही है। सम्भव है इस दिशा में कुछ और ख़बरें मिलें। मध्यमवर्ग को अपने साथ बनाए रखने के लिए मोदी सरकार के लिए यह मजबूरी बन गयी है। ऐसा करके ही वह अपने लिए आम धारणा को बदल सकती है जो इन दिनों नकारात्मक है।

ऐसा नहीं है कि नौकरियों का सृजन नहीं हो रहा है, मगर इसकी रफ्तार कम हो गयी है। ईपीएफओ के अनुसार भारत के फॉर्मल सेक्टर में रोजगार सृजन 13 प्रतिशत गिर गया है। सितम्बर 2017 के बाद से 6 लाख नौकरियां कम हुई हैं। पहले 5 लाख 65 हज़ार नौकरियां हर महीने पैदा होती थीं। अब 4.9 लाख नौकरियां हर महीने पैदा हो रही हैं।

14 महीने में 73.5 लाख नौकरियां पैदा हुईं

14 महीने में 73.5 लाख नौकरियां पैदा हुईं

जनवरी 2019 को ईपीएफओ ने जो ताजा आंकड़ा जारी किया है उसके मुताबिक सितम्बर 2017 से नवंबर 2018 बीच 73.5 लाख नयी नौकरियां पैदा हुईं। सार्वजनिक बैंकों की बात करें तो 2012-13 में कुल कर्मचारियों की संख्या थी 8 लाख 77 हज़ार। यह 2016-17 में घटकर 8.67 लाख हो गयी। यानी विगत पांच साल में नौकरियां बढ़ी नहीं, घट गयी हैं।

2006-07 और 2016-17 के बीच केन्द्रीय सार्वजनिक उपक्रमों में 5 लाख नौकरियां घटी हैं। दस साल में 5 लाख नौकरियां घटने का मतलब है हर साल 50 हज़ार नौकरियां पब्लिक सेक्टर में घट गयीं। इसका क्या मतलब है? इसका मतलब साफ है कि केंद्र सरकार नौकरियां पैदा नहीं कर रही हैं, बल्कि घटा रही हैं। रोज़गार के दफ्तर में बेरोजगारों की बढ़ती संख्या में स्थिति की भयावहता को बयां कर रही है। मोदी सरकार में नौकरी के लिए इम्पलॉयमेंट एक्सचेंज में 69.39 लाख युवाओं ने पंजीकरण कराया। 38.9 लाख युवा नेशनल करियर सर्विसेज पोर्टल के जरिए रजिस्टर्ड हुए।

 रोजगार को लेकर सरकार के दावे

रोजगार को लेकर सरकार के दावे

रोजगार को लेकर सरकार की ओर से जो दावे किए जा रहे हैं उन पर अगर गौर करें तो मुद्रा लोने के तहत 2015 के बाद से 13 करोड़ लोग लाभान्वित हुए हैं। चूकि इनमें से 3 करोड़ लोगों ने पहली बार लोन लिया है और लोन से वे अपने पैरों पर खड़े हुए हैं, इसलिए उन्हें भी रोजगार कहा जाना चाहिए। मगर, इस दावे को मान लेने में दिक्कत ये है कि कितने लोगों का लोन डूबा, कितनों ने ईएमआई नहीं दी और कितने अपने पैरों पर खड़े हो पाए, इस बारे में कोई आंकड़ा नहीं है।

डेवपमेंट योजना 2015 में शुरू हुई। इस बारे में भी सरकार का दावा कुछ ऐसा ही है कि 2.5 करोड़ युवाओं को इसमें प्रशिक्ष मिला है। इनमें भी सिर्फ 2017 में एक करोड़ लोगों ने प्रशिक्षण लिया है। लिहाजा वे सभी लोग बेरोजगार नहीं हैं। मगर, इस दावे को भी नहीं माना जा सकता कि कौशल विकास का प्रशिक्षण लेने मात्र से बेरोजगारी दूर हो जाती है।

वास्तविकता से परे हैं सरकारी दावे

वास्तविकता से परे हैं सरकारी दावे

सरकारी दावे और वास्तविकता में जमीन आसमान का फर्क है। फिर भी एक बात ठोक बजाकर कही जा सकती है कि मोदी सरकार में नौकरियां घटी हैं। रोजगार के अवसर कम हुए हैं और बेरोजगारों की चिन्ता बढ़ी है। 1983 में भारत में बेरोजगारी की दर अधिकतम 4.05 फीसदी थी, जबकि 2014 में यह सबसे कम 3.41 प्रतिशत रही। यानी जब मोदी सरकार ने चार्ज सम्भाला था तब स्थिति बेहतरीन थी। उसके आगे क्या हुआ? उसके बाद 2015 में 3.49%, 2016 में 3.51% और 2017 में 3.52% के हिसाब से बेरोजगारी बढ़ी है। ये आंकड़े मोदी सरकार के लिए चिन्ताजनक हैं। मगर, इससे अधिक चिन्ताजनक बात देश के लिए है कि यह सरकार आंकड़े दबाने की कोशिश कर रही है जिस वजह से सरकारी कर्मचारी अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं होता देख इस्तीफे दे रहे हैं। चुनाव वर्ष में ये लक्षण ठीक नहीं हैं।

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English summary
Modi govt does not clear report on jobs data Two Statistic Commission members quit
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