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Root Bridges: स्टील सीमेंट नहीं भारत में यहां पेड़ की जड़ों से बने हैं पुल, UNESCO की हेरिटेज लिस्ट में जगह

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शिलांग, 30 मार्च। दुनिया में इंसान ने अपनी इंजीनियरिंग से एक से एक अनोखे कारनामे किए हैं। पुल भी इंसानी कारीगरी का एक नायाब नमूना है। दुनिया भर में ऐसे-ऐसे पुल बनाए गए हैं जिन्हें देखकर आप आश्चर्य से भर जाएंगे। लेकिन आज हम आपको एक खास इलाके के पुल के बारे में बताने जा रहे हैं जिसकी इंजीनियरिंग कुदरत ने की है और इसके सामने दुनिया के सभी पुल हल्के नजर आएंगे।

कुदरत की इंजीनियरिंग का नायाब नमूना

कुदरत की इंजीनियरिंग का नायाब नमूना

कहते हैं ना कि इंसान भले ही कितनी इंजीनियरिंग कर ले कुदरत की इंजीनियरिंग के आगे उसके काम बहुत हल्के पड़ते हैं। मेघालय के ये अनोखे पुल ऐसे ही हैं। इनकी खासियत के चलते ही इन्हें यूनेस्को ने अपनी हेरिटेज सूची में जगह दी है।

लिविंग रूट ब्रिज के नाम से मशहूर ये पुल पेड़ों की जड़ों से बनते हैं और इनमें किसी भी तरह के स्टील या सीमेंट का इस्तेमाल नहीं होता है। इन पुलों पर एक साथ 50 लोग तक पार कर सकते हैं। इनकी खासियत है कि ये 500 सालों तक चल सकते हैं। मेघालय में ये पुल आम हैं और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। स्थानीय भाषा में इन्हें जिंगकिएंग जरी कहा जाता है।

यूनेस्को की लिस्ट में हुए शामिल

यूनेस्को की लिस्ट में हुए शामिल

मेघालय के सीएम कोनराड संगमा ने इन पुलों को यूनेस्को की लिस्ट में शामिल होने के बारे में जानकारी दी है। सीएम संगमा ने अपने ट्वीट में लिखा ""मैं यह घोषणा करते हुए रोमांचित हूं कि हमारे 'जिंगकिएंग जरी: लिविंग रूट ब्रिज कल्चरल लैंडस्केप्स ऑफ मेघालय' को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल की अस्थायी सूची में शामिल किया गया है।"

संगमा ने आगे लिखा "जीवित जड़ों के पुल न केवल अपने अनुकरणीय मानव-पर्यावरण सहजीवी संबंधों के लिए खड़े हैं, बल्कि कनेक्टिविटी के लिए उनके अग्रणी उपयोग और अर्थव्यवस्था व पारिस्थितिकी को संतुलित करने के लिए स्थायी उपायों को अपनाने की आवश्यकता पर भी ध्यान केंद्रित करते हैं।"

कैसे तैयार होता है अनोखा पुल?

कैसे तैयार होता है अनोखा पुल?

मेघालय में भारी बारिश होती है जिसके चलते पहाड़ी नदियों का जलस्तर तेजी से बढ़ता है। इस दौरान इन नदियों को पार करने के लिए ये पुल बहुत काम आते हैं। मेघालय के दो इलाकों खासी और जयंती पहाड़ियों के 70 गांवों में ये पुल बड़ी मात्रा में पाए जाते हैं। अब तक 100 ज्ञात लिविंग रूट ब्रिज मौजूद हैं। इस इलाके के लोग 180 सालों से इन पुलों का इस्तेमाल कर रहे हैं। हालांकि इस बात का कोई विश्वसनीय प्रमाण है कि इनका विकास कब हुआ।

न बनाने में पैसा, न मेंटेनेंस का खर्च

न बनाने में पैसा, न मेंटेनेंस का खर्च

इन पुलों को बनाने में किसी तरह के स्टील या सीमेंट का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। इन पुलों को बनाने में न कोई पैसा लगता है और न ही मेंटनेंस करना होता है। नदी के किनारे लगे बरगद की जड़ों को किसी सहारे से दूसरे किनारे से बांध दिया जाता है और ये धीरे-धीरे बढ़कर उस जगह पर फैल जाते हैं। इन जड़ों को इसी तरह से बांधकर पुल का आकार दिया जाता है। जब ये बनकर तैयार होते हैं तो इस पर चलने की सुविधा के लिए पत्थर डाल दिए जाते हैं।

500 साल तक चलते हैं ये रूट ब्रिज

500 साल तक चलते हैं ये रूट ब्रिज

ये पुल सिंगल डेकर और डबल डेकर दोनों तरह से पाए जाते हैं। डबल डेकर पुल में एक पुल के ऊपर दूसरा पुल होता है। इन पुलों को बनने में 10 से 15 साल तक का समय लगता है लेकिन एक बार तैयार होने के बाद ये पुल 500 साल तक चलते हैं। साथ ही इसमें किसी तरह के मेंटनेंस की जरूरत नहीं होती बल्कि समय के साथ जैसे जड़ें बढ़ती रहती हैं ये पुल भी और मजबूत होते जाते हैं।

लिविंग रूट ब्रिज 15 फीट से 250 फीट तक फैले हुए हैं। ये तूफान और अचानक आई बाढ़ से भी बच सकते हैं। ये रूट ब्रिज एक गांव को दूसरे गांव से जोड़ने वाली नदियों में फैले हुए हैं।

ये है 'दुनिया की सबसे साफ नदी', भारत में ही है मौजूद, क्या इसके बारे में जानते हैं आप?ये है 'दुनिया की सबसे साफ नदी', भारत में ही है मौजूद, क्या इसके बारे में जानते हैं आप?

English summary
meghalayas Living Root Bridges in unesco heritage list
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