बसपा सुप्रीमो मायावती की बीजेपी से बढ़ रहीं नजदीकियों के क्या है मायने?
बंगलुरू। इन दिनों बसपा प्रमुख मायावती रसातल में डूबी पार्टी को उबारने में लगी है। लोकसभा चुनाव 2014 में जीरो लाने वाली बसपा को लोकसभा चुनाव 2019 में सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव का साथ मिला और बसपा 10 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज कर वापसी के संकेत दिए, लेकिन गोरखपुर और कैराना उपचुनाव में मिली जीत को पैमाना मानकर गठबंधन करके एक साथ चुनाव लड़ी सपा को महज 5 सीटों पर संतोष करना पड़ा।
मतलब खिवैया बनकर बसपा को मझधार से निकालने आई सपा डूब गई। मायावती ने सपा से किनारा करने में देर नहीं लगाई। लगे हाथ गठबंधन फेल होने का आरोप भी सपा के ऊपर मढ़ दिया। अब बसपा प्रमुख बीजेपी से नजदीकियां बढ़ा रही है। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के प्रस्ताव पर बीजेपी का साथ दे चुकी मायावती के निशाने पर अब पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के अलावा गांधी परिवार का कुनबा है।
1. जैसाकि विदित है कि बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर हमेशा ही देश की समानता, एकता व अखण्डता के पक्षधर रहे हैं इसलिए वे जम्मू-कश्मीर राज्य में अलग से धारा 370 का प्रावधान करने के कतई भी पक्ष में नहीं थे। इसी खास वजह से बीएसपी ने संसद में इस धारा को हटाये जाने का समर्थन किया।
— Mayawati (@Mayawati) August 26, 2019
जम्मू-कश्मीर मुद्दे पर बीजेपी के साथ खड़ी मायावती ने राहुल गांधी को उनके श्रीनगर दौरे के लिए लताड़ते हुए कहा कि उन्हें प्रतिनिधिमंडल के साथ दौरे पर नहीं जाना चाहिए था और उन्हें कुछ दिन और इंतजार करना चाहिए। इतना ही नहीं, मायावती ने गांधी परिवार के पूरे कुनबे को जम्मू-कश्मीर की समस्या के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि इस समस्या के जनक पं. जवाहर लाल नेहरू और पूरी कांग्रेस पार्टी है।
मायावती ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने के समर्थन पर पार्टी के फैसले को सही ठहराते हुए कि कहा कि संविधान निर्माता डा. बाबा साहब आंबेडकर भी अनुच्छेद 370 को जम्मू-कश्मीर से हटाना चाहते थे। मायावती की इस मायावी चाल से राजनीतिक पंडित अभी भी हैरान हैं कि राजनीतिक पंड़ित मायावती का अब अगला कदम क्या होगा।
3 जून, 1995 में बीजेपी के सहयोग से सत्ता के शिखर पर पहुंची मायावती ने अपने राजनीतिक करियर में राजनीतीकि पार्टियों से अपनी सुविधानुसार समझौते किए, जिसकी पहली शिकार बीजपी भी रही। कहते हैं राजनीति में कोई लंबे समय तक दुश्मन नहीं रहता है। बीजेपी-बसपा गठबंधन, फिर सपा-बसपा गठबंधन और फिर बुआ-बबुआ गठबंधन इसके प्रमुख साक्ष्य हैं।
लोकसभा चुनाव के बाद बुआ-बबुआ यानी सपा और बसपा के गठबंधन की परिणित से इसे समझा जा सकता है। बीजेपी के साथ मायावती की बढ़ रही नजदीकियों को इसी नजरिए से समझा जा सकता है। कहते हैं समय बलवान होता है और मायावती से भला इस बात को कौन बेहतर समझ सकता है, जिन्होंने गेस्टहाउस कांड तक को भुलाकर सपा के साथ गठबंधन भी किया और फिर जीरो से हीरो बनकर उभरीं।
बीजेपी के साथ मायावती की नजदीकियों के पीछे ताज कॉरीडोर केस और भाई आनंद कुमार के खिलाफ आयकर विभाग की कार्रवाई भी मानी जा रही है। आयकर विभाग ने मायावती के भाई की 400 करोड़ रुपए की बेनामी प्लॉट को अटैच कर लिया है। वर्ष 2002 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने ताज की खूबसूरती बढ़ाने के नाम पर 175 करोड़ रुपए की परियोजनाएं लॉन्च की थी।
मायावती पर आरोप था कि उन्होंने बिना पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी के ही सरकारी खज़ाने से 17 करोड़ रुपए जारी भी कर दिए गए थे। वर्ष 2003 में सीबीआई ने मामले की जांच शुरू की और वर्ष 2007 में सीबीआई ने मायावती और उनके सहयोगी नसीमुद्दीन सिद्दीकी के खिलाफ चार्जसीट दाखिल किया। सीबीआई चार्जशीट में मायावती और नसीमुद्दीन सिद्दीकी के खिलाफ फर्जीवाड़े के गंभीर आरोप लगाए गए थे।
विशेषज्ञों की मानें तो मायावती ने जम्मू-कश्मीर मसले पर बीजेपी का समर्थन करके एक तीर से दो शिकार किए हैं। राजनीति की माहिर खिलाड़ी मानी जाने वाली मायावती ने यह चाल उनकी सोची-समझी रणनीति का एक हिस्सा है। मायावती जानती हैं कि बीजेपी के साथ कोर हिंदू वोटर हैं और बहुसंख्यकों के खिलाफ नहीं दिखना चाहती हैं। शायद यही कारण हैं कि मायावती बीजेपी के साथ नजदीकियां बढ़ाने को मजबूर है।
पहला कारण ताज कॉरीडोर मामला और भाई आनंद कुमार की बेनामी संपत्ति का मामला है। दूसरा कारण बीजेपी की ओर तेजी से बढ़ रहा हॉर्डकोर हिंदुत्व वोट माना जा रहा है। मायावती ने जम्मू-कश्मीर मुद्दे पर बीजेपी का साथ देकर हिंदू वोटरों को अपने साथ जोड़े रखा है जबकि कांग्रेस और सपा ने विरोध करके हिंदुओं की नाराजगी मोल लिया है।
बीजेपी से मायावती की नजदीकियों का एक कारण यह भी है कि लोकसभा चुनाव 2014 से लेकर 2019 और यूपी विधानसभा में बसपा की हार का कारण मोदी लहर थी। बीजेपी की जीत में राष्ट्रवाद और देशभक्ति की लहरों मुख्य भूमिका निभाईं थी, जिससे बीजेपी यूपी विधानसभा में न केवल प्रचंड बहुमत से सरकार बनाने में कामयाब रही थी, बल्कि केंद्र की सत्ता में मोदी सरकार दो बार काबिज होने में सफल रही। यही कारण है कि मायावती मोदी लहर और राष्ट्रवाद की लहर में पार्टी का वजूद बचाने के लिए भी बीजेपी के सुर में सुर मिलाने को मजबूर हुई हैं।
हालांकि मायावती की मायावी मायाजाल अभी भी कायम है। बीजेपी को अनुच्छेद 370 पर समर्थन करने और कांग्रेस को आड़ों हाथ लेने वाली मायावती बेरोजगारी, अपराध और भ्रष्टाचार जैसे मसलों पर बीजेपी को घेरने से नहीं चूक रही हैं, लेकिन सांप्रदायिक मामलों पर मायावती चुप्पी साध लेती है। इनमें तीन तलाक का मामला बानगी हैं।
मायावती जहां तीन तलाक मामले में चुप रहती है, लेकिन जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के मसले पर बीजेपी के साथ खड़ी ही नजर नहीं आती हैं बल्कि विरोध में खड़ी कांग्रेस को नसीहत देते हुए लगातार ट्विट कर रही है। ध्यान दीजिए, मायावती ने सदन में पास हुए तीन तलाक बिल को लेकर अभी तक एक भी ट्वीट नहीं किया है।
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