लोकसभा चुनाव: राहुल बाबा! कठिन बहुत है डगर अमेठी की
सोनिया ने रैली में अमेठीवासियों से राहुल के लिए भावुक अपील की। उन्होंने कहा, "मैंने अमेठी को अपना बेटा दिया है, ख्याल रखना।" अमेठी लोकसभा सीट पारंपरिक रूप से कांग्रेस का गढ़ रही है। 1980 में संजय गांधी ने वहां से चुनाव लड़ा और अमेठी में गांधी परिवार की दस्तक हुई। 1998-99 के लोकसभा चुनाव को छोड़ दिया जाए, तो ये सीट कांग्रेस के खाते में ही रही। इन दोनों चुनावों में यहां गांधी-नेहरू परिवार से कोई मैदान में नहीं था।
राहुल यहां तीसरी बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। लेकिन पिछले दो चुनावों की तुलना में इस बार आम आदमी पार्टी (आप) नेता कुमार विश्वास और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की नेता स्मृति ईरानी की मौजूदगी के कारण यह चुनाव राहुल के लिए कठिन माना जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषक संजय कुमार पांडे कहते हैं कि सोनिया की अमेठी में रैली के बाद से इस आशंका को अधिक बल मिला है कि राहुल इस बार एक कठिन चुनाव लड़ रहे हैं।
माना जा रहा है कि अमेठी में खुद सोनिया ही राहुल के लिए चुनौती बन गई हैं। राजनीतिक विश्लेषक विजय उपाध्याय का मानना है कि अमेठी की तुलना में सोनिया की सीट रायबरेली में पिछले 10 सालों में काफी विकास कार्य हुए हैं।
रायबरेली में पिछले 10 वर्षों में रेल कोच कारखाना, रेल पहिया कारखाना, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) और राष्ट्रीय स्तर के कई शिक्षण संस्थान खुले हैं, जिसके बाद रोजगार के पर्याप्त अवसर वहां पैदा हुए है। जबकि अमेठी अब भी पिछड़ा है। सोनिया की तुलना में राहुल अपने क्षेत्र में विकास कार्य कराने के कमतर साबित हुए हैं। कुमार विश्वास के सघन चुनाव प्रचार ने इस मान्यता को और मजबूत किया है। ऐसे में अमेठी फतह राहुल के लिए इस बार आसान नहीं मानी जा रही है।
विश्वास कहते हैं कि वीवीआईपी क्षेत्र होने के बावजूद अमेठी में बिजली, पानी, सड़क और शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं की भारी कमी है। कांग्रेस के युवराज यहां समय-समय पर पिकनिक मनाकर चले जाते हैं। युवराज को जिताकर अमेठीवासियों को बीते 10 सालों में क्या मिला। वहीं कांग्रेस के जिलाध्यक्ष योगेंद्र मिश्रा कहते हैं, "राहुल से अमेठी की जनता का गहरा लगाव है। ये बाहरी लोग चाहे जितना गुमराह करें अमेठी के लोग उनके झांसे में नहीं आएंगे। ये लोग चुनाव में राहुल के सामने अपनी जमानत नहीं बचा पाएंगे।' अमेठी में 7 मई को मतदान होना है।