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छपरा में दो बार लालू यादव और एक बार राबड़ी देवी को मिल चुकी है हार

By अशोक कुमार शर्मा
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पटना। हाल के दिनों में लालू यादव के बड़े पुत्र तेज प्रताप यादव बार-बार कहते रहे हैं कि सारण (छपरा) उनकी पुश्तैनी सीट है। लेकिन ऐसा है नहीं। तेज प्रताप भावनाओं में बह कर ऐसा बोल रहे हैं। छपरा में लालू प्रसाद दो बार चुनाव हार चुके हैं। एक बार राबड़ी देवी भी हार चुकी हैं। हां ये सही है कि लालू यादव की संसदीय राजनीति छपरा से ही शुरू हुई थी। लेकिन ये सीट हमेशा उनके मुफीद नहीं रही है। लालू यादव ने सोच समझ कर चंद्रिका राय को यहां से मैदान में उतारा है।

पहली बार 1980 में हारे लालू यादव

पहली बार 1980 में हारे लालू यादव

जेपी आंदोलन की पैदाइश लालू यादव ने 1977 में छपरा लोकसभा सीट जीत कर तहलका मचा दिया था। तब उनकी उम्र केवल 29 साल थी। लालू यादव एक छात्र नेता थे। उनका अपना कोई जनाधार नहीं था। कांग्रेस विरोधी लहर ने उनका बेड़ा पार कर दिया। इस जीत से लालू यादव की चर्चा तो हुई लेकिन उनकी कोई जमीन नहीं बन पायी। 1980 में जनता पार्टी खंड- खंड हो कर बिखर गयी। जनता पार्टी में ही कई धड़े हो गये। इसकी वजह से लालू यादव का दलीय आधार भी कमजोर हो गया। जनता पार्टी के पतन के बाद 1980 में लोकसभा का मध्यावधि चुनाव हुआ। इंदिरा गांधी ने जबर्दस्त वापसी की। लेकिन छपरा में समाजवादी धारा मजबूत थी। 1980 में छपरा सीट पर जनता पार्टी से सत्यदेव सिंह चुनाव लड़ रहे थे। उनके मुकाबले में लालू यादव जनता पार्टी सेक्यूलर के टिकट पर मैदान में थे। 1977 में रिकॉर्डतोड़ जीत हासिल करने वाले लालू, सत्यदेव सिंह से हार गये।

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1984 में तीसरे स्थान पर रहे लालू

1984 में तीसरे स्थान पर रहे लालू

1984 में कांग्रेस सहानुभूति वोट की लहर पर सवार थी। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस को प्रंचड बहुमत मिला था। लेकिन इसके बाद भी छपरा में कांग्रेस को जीत नहीं मिली थी। 1984 में छपरा सीट पर जनता पार्टी के रामबहादुर सिंह, कांग्रेस के भीष्म नारायण यादव और लोकदल के लालू यादव के बीच तीनतरफा मुकाबला था। इस मुकाबले में जनता पार्टी के रामबहादुर सिंह ने कांग्रेस के भीष्म नाराण यादव को हरा दिया। लालू यादव तीसरे स्थान पर फिसल गये। इस तरह छपरा सीट पर लालू यादव लगातार दो चुनाव हारे। लालू यादव की राजनीति तब चमकी जब देश मे मंडलवाद का दौर शुरू हुआ। वे यहां से चार बार 1977, 1989, 2004 और 2009 में सांसद चुने गये हैं।

2014 में हार गयीं थी राबड़ी देवी

2014 में हार गयीं थी राबड़ी देवी

लालू यादव के बाद राजद में सबसे अधिक रुतबा राबड़ी देवी को हासिल है। 2013 में जब सजायाफ्ता होने से लालू यादव चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य हो गये तो 2014 में राबड़ी देवी को सारण (छपरा) सीट पर मुकाबले में उतारा गया। लालू यादव ने इस चुनाव को जीतने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। लालू यादव जेल से जमानत पर बाहर आये थे और अपने वोटरों को गोलबंद करने के लिए जम कर चुनाव प्रचार किया था। राबड़ी देवी का मुकाबला भाजपा के राजीव प्रताप रूड़ी से था। लालू यादव के जोर लगाने के बाद भी राबड़ी देवी चुनाव नहीं जीत सकीं। राजीव प्रताप रूड़ी ने उन्हें हरा दिया था। राजीव रूड़ी को 3 लाख 55 हजार वोट मिले थे तो राबड़ी देवी को 3 लाख 14 हजार। राजद ने 2019 में कोई जोखिम लेना ठीक नहीं समझा। राबड़ी देवी स्वास्थ्य संबंधी कारणों से भी चुनाव नहीं लड़ना चाहती थीं। अगर राबड़ी देवी चुनाव लड़ती और हार जाती तो राजद के भावी राजनीति के लिए ठीक नहीं होता। इस लिए छपरा के ही रहने वाले चंद्रिका राय को यहां से टिकट दिया गया। अगर तेज प्रताप का मसला सामने नहीं आया होता तो उनकी उम्मीदवारी भी दमदार ही थी।

पढ़ें, सारण लोकसभा सीट का पूरा प्रोफाइल

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English summary
Lok Sabha Elections 2019: In Chapra Lalu Prasad Yadav twice and Rabri Devi one time lost elections.
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