राज्यपाल के फैसले को लेकर लालू अगर सुप्रीम कोर्ट गए तो क्या होगा असर?
लालू प्रसाद यादव ने कहा कि जिस तरह से राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी ने नीतीश कुमार को बिहार के सीएम पद की शपथ दिलाई है, वो इसके खिलाफ खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगे।
नई दिल्ली। बिहार में जिस तरह से नीतीश कुमार ने महागठबंधन का साथ छोड़ा और बीजेपी के समर्थन से फिर सीएम बन गए, उससे आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव काफी नाराज हैं। उन्होंने नीतीश कुमार न केवल अवसरवादी और लालची करार दिया। साथ ही राज्यपाल के फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कही है।
लालू यादव बोले- गवर्नर के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में देंगे चुनौती
आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने कहा कि जिस तरह से राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी ने नीतीश कुमार को बिहार के सीएम पद की शपथ दिलाई है, वो इसके खिलाफ खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगे। लालू यादव ने ये बातें रांची में एक प्रेस वार्ता के दौरान कही। लालू प्रसाद यादव तर्क दिया कि बिहार विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी आरजेडी है, ऐसे में राज्यपाल को सबसे पहले सबसे बड़ी पार्टी को बहुमत साबित करने का अधिकार देना चाहिए था, लेकिन राज्यपाल की ओर से ऐसा नहीं किया गया और नीतीश कुमार को शपथ दिलाई गई। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगे।
लालू यादव की दो टूक
आरजेडी प्रमुख लालू यादव बिहार के ताजा घटनाक्रम को लेकर अगर सुप्रीम कोर्ट जाते हैं तो देखना दिलचस्प होगा कि कोर्ट इस पूरे मामले में क्या फैसला लेगा? हालांकि ये कोई पहली बार नहीं जब ऐसे मामले कोर्ट में पहुंचे हों। इससे पहले उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश में ऐसी ही मामले सामने आए थे जिसमें कोर्ट की ओर से चौंकाने वाला फैसला आया था।
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उत्तराखंड को लेकर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
मई 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड विधानसभा में जारी सियासी संकट को लेकर केंद्र की मोदी सरकार को झटका दिया। उस समय कोर्ट ने नए सिरे से बहुमत परीक्षण कराने का आदेश दिया था। जिससे हरीश रावत की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार की सत्ता में वापसी हो सकी थी और 27 मार्च को राज्य में लागू किया गया राष्ट्रपति शासन हटाना पड़ा था।
अरूणाचल प्रदेश को लेकर ये था कोर्ट का फैसला
ऐसा ही एक और मामला जुलाई 2016 में सामने आया था जब केंद्र सरकार को करारा झटका देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अरूणाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बहाल करने का आदेश दिया था। उस समय कोर्ट ने अरूणाचल प्रदेश के राज्यपाल के जनवरी के सभी फैसलों को रद्द कर दिया जिसके चलते नबाम तुकी सरकार गिर गई थी। कोर्ट ने उस समय टिप्पणी की थी कि ये फैसले संविधान का उल्लंघन करने वाला था।
गोवा मामले पर ये थी कोर्ट की टिप्पणी
हालांकि मार्च 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने गोवा में मनोहर पर्रिकर के सीएम पद की शपथ पर रोक लगाने की कांग्रेस की मांग को खारिज कर दिया था। कोर्ट ने मनोहर पर्रिकर को विधानसभा में बहुमत साबित करने का आदेश दिया, जिसे बाद में पर्रिकर सरकार ने साबित कर दिया था। कांग्रेस की ओर से कहा गया था कि कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी है ऐसे में गवर्नर को सबसे कांग्रेस को बहुमत साबित करने का मौका दिया जाना चाहिए था। इस मामले में देश की सबसे बड़ी अदालत ने स्पष्ट किया कि सरकार बनाने के लिए न्योता देना गवर्नर का विशेषाधिकार है। साथ ही कोर्ट ने ये भी कहा कि जब पर्रिकर ने सरकार बनाने का दावा किया तो आप लोग कहां थे?
नीतीश के महागठबंधन से अलग होने पर बिगड़े सियासी समीकरण
बता दें कि बिहार में सियासी समीकरण उस समय बदल गए जब नीतीश कुमार ने बुधवार को महागठबंधन से खुद को अलग करते हुए राजभवन पहुंच कर सीएम पद से इस्तीफा दिया। इसके तुरंत बाद ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नीतीश कुमार को इस फैसले के लिए ट्वीट के जरिए बधाई दी। कुछ देर बाद ही ये भी साफ हो गया कि नीतीश कुमार बीजेपी के साथ गठबंधन करके नई सरकार बनाएंगे। इन सबके बीच आरजेडी की ओर से तेजस्वी यादव ने भी सरकार बनाने का दावा पेश किया। राज्यपाल ने उनसे 11 बजे मिलने के समय दिया, लेकिन इस मुलाकात से पहले ही नीतीश कुमार बिहार के सीएम पद की शपथ दिलाई गई। इतना ही नहीं फ्लोर टेस्ट के लिए शुक्रवार का दिन तय किया गया। इस पूरे सियासी घटनाक्रम पर लालू प्रसाद यादव ने नाराजगी जाहिर की। रांची में लालू यादव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की जहां उन्होंने नीतीश कुमार पर तो हमले किए ही, राज्यपाल के फैसले का भी विरोध किया।
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