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गर्दन की उस हड्डी के बारे में जानिए, जिसके टूटते ही निर्भया के दोषी तोड़ देंगे दम

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नई दिल्ली- निर्भया के दोषियों की मौत अब निश्चित है। देश के कानून ने सात साल और तीन महीने तक उन्हें खुद को बेगुनाह साबित करने का बहुत मौका दिया। लेकिन, आखिरकार कानून की नजरों में वे हार गए और पीड़ित निर्भया को न्याय मिलने की उम्मीद जग गई। इन चारों दरिंदों ने अपने दो और साथियों के साथ पारामेडिकल की छात्रा के साथ जो घिनौनी और जघन्य हरकत की थी, उसकी सजा मिलने की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। शुक्रवार तड़के तिहाड़ जेल के अधिकारियों के एक इशारे पर उनकी सांसे हमेशा-हमेशा के लिए रुक जाएंगी। उनकी गर्दन में एक जोरदार झटका लगेगा और उनके जिंदगी का सबकुछ खत्म हो जाएगा। आइए एक्सपर्ट से मिली जानकारियों के आधार पर जानते हैं कि फांसी के दौरान आखिर गर्दन की ऐसी कौन सी हड्डी टूटती है, जिसके चलते चंद मिनटों में ही कैदी की सांसे उखड़ जाती हैं और नब्ज थम जाती है।

फांसी देने और फंदा लगाकर खुदकुशी में अलग-अलग तरीके से मौत

फांसी देने और फंदा लगाकर खुदकुशी में अलग-अलग तरीके से मौत

एक्सपर्ट का कहना है कि फांसी पर लटकाने से कैदियों की होने वाली मौत और फंदा लगाकर आत्महत्या करने और गला घोंटकर हुई हत्या में मौत अलग-अलग तरीके से होती है। मसलन खुदकुशी के लिए अगर कोई गले में फंदा डालकर झूलता है तो उसकी गर्दन और सांस की नली दब जाती है या दोनों में ही अचानक एक साथ दबाव पैदा होता है, जिससे दिमाग में खून जाना बंद हो जाता है और 2 से 4 मिनटों में उस शख्स की जान चली जाती है और उसका शरीर शून्य पड़ जाता है। इस तरह से आत्महत्या के इरादे से जब कोई फंदा लगाता है तो इसको मेडिकल-लीगल टर्म में होमीसाइडल हैंगिंग कहते हैं। लेकिन, निर्भया के चारों दोषियों को जब जज के आदेश के मुताबिक 'हैंग टिल डेथ' की सजा की तामील होगी, तब उन चारों की मौत इससे अलग तरीके से होगी।

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रीढ़ की हड्डी में धंस जाती है गर्दन की एक हड्डी

रीढ़ की हड्डी में धंस जाती है गर्दन की एक हड्डी

फॉरेंसिक एक्सपर्ट कहते हैं कि फांसी के समय मनुष्य का शरीर कई तरह से प्रतिक्रिया करता है। जानकार बतातें हैं कि जल्लाद जैसे ही दोषी को फांसी पर लटकाने के लिए जेलर के इशारे पर लीवर खींचता है, उसकी गर्दन की 7 हड्डियों में अचानक बहुत जोर का झटका लगता है। इस झटके साथ ही सरवाइकल वर्टिब्रा पर भी जोर का आघात लगता है। इसका असर ये होता है कि ओंडात वाइट्स प्रोसेस वाली हड्डी छिटक कर रीढ़ की हड्डी में धंस जाती है। इसके कारण कैदी का शरीर न्यूरोलॉजिकल शॉक की स्थिति में चला जाता है और कुछ मिनटों में ही उसकी मौत हो जाती है। हालांकि, प्राण जाने के बाद भी जेल के अधिकारी एक निश्चित समय तक डॉक्टर के द्वारा उसे मृत घोषित किए जाने का इंतजार करते हैं।

कई बार काफी देर तक पल्स चलती रहती है

कई बार काफी देर तक पल्स चलती रहती है

हालांकि, जानकार बतातें है कि कई बार ऐसे मामले में भी सामने आ चुके हैं, जब फांसी के फंदे पर लटकने के बाद भी कई घंटों तक कैदी के पल्स चलती रही है। इसका सबसे चर्चित उदाहरण रंगा और बिल्ला की फांसी के दौरान की है। तिहाड़ जेल रंगा-बिल्ला से लेकर अफजल गुरु तक 8 फांसियों के गवाह रह चुके पूर्व जेलर सुनील गुप्ता ने इसके बारे में अपनी किताब में काफी विस्तार से बताया है। उन्होंने दावा किया है कि जब 1982 में रंगा-बिल्ला को फांसी दी गई तो फांसी देने के कुछ मिनटों बाद ही बिल्ला ने तो दम तोड़ दिया था। लेकिन, रंगा की पल्स चलती ही रही थी।

ऐसे हुई थी रंगा की मौत

ऐसे हुई थी रंगा की मौत

तिहाड़ जेल के पूर्व लॉ ऑफिसर सुनील गुप्ता ने अपनी किताब 'ब्लैक वारंट' में रंगा की फांसी के बारे में विस्तार से बताया है। जब, नियमों के तहत फांसी दिए जाने के निर्धारित दो घंटे के बाद जेल के डॉक्टर रंगा की नब्ज देखने पहुंच तो वह तब भी चल रही थी। इसके बारे में वे बोले कि 'कई बार कैदी जब डर के मारे सांसें थाम लेते हैं तो हवा शरीर में ही फंस जाती है। इस केस में यही हुआ होगा।........' फिर उन्होंने याद करते हुए बताया कि एक गार्ड से कहा गया कि उस 15 फीट कुएं में कूदे जिसमें रंगा लटका हुआ था और उसकी टांगे खींचे। तब जाकर निंदा की मौत हुई। उनके मुताबिक, 'इससे फंसी हुई हवा निकल गई और उसकी नब्ज रुक गई।'

फांसी के तख्ते के पास बोलने की होती है मनाही

फांसी के तख्ते के पास बोलने की होती है मनाही

मुंबई धमाकों के गुनहगार याकूब मेमन के बाद देश में किसी को फांसी की सजा नहीं दी गई है। इसलिए निर्भया के दोषियों को होने वाली फांसी की सजा को लेकर बहुत तरह की चर्चाए हो रही हैं। मेमन को नागरपुर सेंट्रल जेल में फांसी के तख्ते पर लटकाया गया था। निर्भया गैंगरेप और उसकी हत्या के गुनहगार दिल्ली के तिहाड़ जेल में कैद हैं, जहां जेल प्रशासन ने अपनी ओर से उनकी सजा की तामील के लिए सारी तैयारियां कर ली हैं। ऐसे में यह जानना बेहद रोचक है कि आखिर दोषियों को फांसी दिए जाते वक्त वहां मौजूद लोग आपस में कोई बात क्यों नहीं करते?

इस वजह से होती है इशारों में बात

इस वजह से होती है इशारों में बात

फांसी के तख्ते के पास दोषी के अलावा उसे फांसी पर लटकाने वाला जल्लाद मौजूद होता है। इन दोनों के अलावा वहां पर पास ही में 4-5 पुलिसकर्मी भी मौजूद होते हैं और थोड़ी ही दूर पर जेल अधीक्षक, जेलर,डॉक्टर और संबंधित अधिकारी भी मौजूद होते हैं। लेकिन, इतने लोगों की मौजूदगी के बावजूद वहां आपस में किसी की कोई बात नहीं होती और सिर्फ इशारों में ही एक-दूसरे तक अपनी बात पहुंचायी जाती है। चारों को फांसी की प्रक्रिया को अंजाम देने वाले पवन जल्लाद ने बताया था कि 'ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि, दोषी परेशान न हो जाए या वह घबराकर कोई अजीब हालात न पैदा कर दे। यही वजह है कि वहां पर लोग सिर्फ इशारों में ही काम चलाते और सभी चुप्पी साधे रहते हैं।' इसकी वजह से वहां क्या हो रहा होता है, इससे कैदी पूरी तरह से अनजान होता है।

इसे भी पढ़ें- निर्भया के दोषी विनय को फांसी से पहले उसकी मां ने बताई खुद की अंतिम इच्छाइसे भी पढ़ें- निर्भया के दोषी विनय को फांसी से पहले उसकी मां ने बताई खुद की अंतिम इच्छा

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English summary
Know about that neck bone,the breakdown of which will kill the guilty of Nirbhaya
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