कोर्ट का बड़ा फैसला, शैक्षणिक संस्थान में राजनीति की कोई जगह नहीं, छात्रों का होगा निष्कासन
कोची। केरल हाई कोर्ट ने शैक्षणिक संस्थानों में राजनीति को लेकर बड़ा फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा कि किसी भी शैक्षणिक संस्थान में राजनीतिक की कोई जगह नहीं है और कोई भी छात्र अगर इसमे लिप्त पाया गया तो उसके खिलाफ कार्रवाई करते हुए उसे कॉलेज से बाहर निकाल देना चाहिए। चीफ जस्टिस के सामने एमईएस कॉलेज के प्रिंसिपल के मुकदमे पर सुनवाई करते हुए जज ने स्टुडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया के सचिव देबाशीष कुमार बेहरा के मामले में यह फैसला सुनाया है। प्रिंसिपल ने कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट मामले में यह फैसला दिया है।
संस्थान को राजनीति का अखाड़ा नहीं बना सकते
अपने आदेश में कोर्ट ने कहा कि संस्थान में राजनीतिक धरना, भूख हड़ताल, सत्याग्रह जैसी चीजों के लिए कोई जगह नहीं है। जो भी इसमे लिप्त पाया जाएगा वह खुद को संस्थान से निष्कासित करवाने का जिम्मेदार होगा। शैक्षणिक संस्थानों का निर्माण शिक्षा देने के लिए हुआ है नाकि राजनीतिक गतिविधि के लिए। अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा के लिए राजनीतिक दल संस्थानों को बर्बाद नहीं कर सकते और जो भद्र छात्र शिक्षा के लिए आए हैं उनके साथ खिलवाड़ नहीं कर सकते।
शिकायत के लिए है उचित जगह
संस्थान के भीतर धरने पर बैठे छात्रों की तस्वीर देखकर कोर्ट ने कहा कि छात्र अपनी समस्या के लिए उचित जगह पर जा ससकते हैं, संस्थानों में छात्र काउंसिल है, एकेडमिक काउंसिल है, कोर्ट हैं। कोर्ट ने कहा कि संस्थान में धरना करना आपकी मांग पर सवाल खड़ा करता है कि उसका कोई आधार नहीं है। सच तो यह है कि जो लोग धरना या हड़ताल करते हैं उन्हे खुद पता होता है कि उनकी मांग वैध नहीं है, इसी वजह से वह इस तरह का कदम उठाते हैं, क्योंकि वह कानूनी तरीके से इन मांगों को नहीं उठा सकते हैं।
अंबेडकर के भाषण का किया जिक्र
अपने आदेश में कोर्ट ने 1949 में बीआर अंबेडकर संविधान सभा में दिए गए आखिरी भाषण का जिक्र किया जिसे ग्रामर ऑफ एनार्की भी कहा जाता है। अंबेडकर ने कहा था कि असंवैधानिक मांगों को सही नहीं ठहराया जा सकता है। जब आपके पास संवैधानिक रास्ते हैं तो सविनय अवज्ञा, असहयोग, सत्याग्रह का रास्ता कतई वैध नहीं है।
इसे भी पढ़ें- वरुण गांधी का चुनाव आयोग पर बड़ा हमला, आयोग की सक्रियता पर उठाए गंभीर सवाल