कर्नाटक: रेड्डी ब्रदर्स ने कैसे खड़ा किया अरबों का साम्राज्य
ये 21वीं सदी की एक ऐसी कहानी है जिसमें एक पुलिस कॉन्स्टेबल का बेटा अपने दम पर खनन की दुनिया का बेताज़ बादशाह बन जाता है.
ये कहानी जनार्दन रेड्डी की है जो दौलत कमाने की होड़ में इतने आगे निकल गए कि सुप्रीम कोर्ट को उन पर अपने भाइयों और सहयोगियों के चुनाव प्रचार के लिए गृह ज़िले बल्लारी जाने पर भी रोक लगानी पड़ी.
जनार्दन रेड्डी के राजनीतिक रसूख़ की बात करें तो
ये 21वीं सदी की एक ऐसी कहानी है जिसमें एक पुलिस कॉन्स्टेबल का बेटा अपने दम पर खनन की दुनिया का बेताज़ बादशाह बन जाता है.
ये कहानी जनार्दन रेड्डी की है जो दौलत कमाने की होड़ में इतने आगे निकल गए कि सुप्रीम कोर्ट को उन पर अपने भाइयों और सहयोगियों के चुनाव प्रचार के लिए गृह ज़िले बल्लारी जाने पर भी रोक लगानी पड़ी.
जनार्दन रेड्डी के राजनीतिक रसूख़ की बात करें तो उनके बचाव में बीएस येदियुरप्पा जैसे राजनेता भी खड़े हो जाते हैं.
जबकि साल 2008 में इन्ही रेड्डी बंधुओं ने बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार के मुख्यमंत्री येदियुरप्पा को पद से हटाने की कोशिशें की थीं.
रेड्डी बंधुओं का सत्ता पर प्रभाव
जनार्दन रेड्डी ने ये सुनिश्चित किया कि उनके भाई और मुंहबोले भाई बी श्रीरामुलू (बल्लारी से सांसद और बादामी और मोलोकलमुरू से बीजेपी उम्मीदवार) को इस चुनाव में पार्टी की ओर से एक बार फिर उम्मीदवार बनाया जाए.
बीबीसी ने जनार्दन रेड्डी से बात करने की कोशिश की लेकिन ये संभव न हो सका.
हालांकि, उनके एक करीबी सहयोगी वीरूपक्षप्पा गौड़ ने बीबीसी हिंदी को बताया कि रेड्डी बंधुओं (जनार्दन, करुणाकर और सोमशेखर रेड्डी) के पिता आंध्र प्रदेश के अनंतपुर ज़िले में पुलिस कॉन्स्टेबल कांस्टेबल थे जिनका तबादला बल्लारी हो गया था.
उस समय आंध्र प्रदेश और कर्नाटक मद्रास प्रेसिडेंसी का हिस्सा थे.
गौड़ बताते हैं, "साल 1956 में राज्यों के पुनर्गठन के बाद रेड्डी भाइयों के पिता ने बल्लारी में रुकने का फ़ैसला किया. यहीं पर बड़े होते हुए जनार्दन रेड्डी ने कोलकाता की एक बीमा कंपनी के साथ काम करना शुरू किया. रेड्डी बीमे से जुड़े कई मामलों में दावों का समाधान करवाने में सफल हुए. इससे उन्होंने इतना पैसा कमाया कि वह चिंट फंड कंपनी शुरू करने में सफल हुए."
रेड्डी बंधुओं ने शुरू किया था एक अख़बार
वीरूपक्षप्पा के मुताबिक़, "जनार्दन रेड्डी ने एक अख़बार भी शुरू किया था जिसका नाम 'ए नम्मा कन्नड़ नाडु' यानी हमारी कन्नड़ भूमि था. इस बीच जनार्दन रेड्डी और श्रीरामुलु उन लोगों के नज़दीक आए जो अपने विवाद निपटाने के लिए उनके पास जाने लगे क्योंकि पुलिस के पास जाकर विवाद सुलझाना एक जटिल प्रक्रिया होती थी."
ये उस दौर की बात है जब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी बल्लारी से लोकसभा चुनाव लड़ने जा रही थीं.
लेकिन बीजेपी कांग्रेस के गढ़ में सोनिया गांधी को चुनौती दिए बिना नहीं रहना चाहती थी.
ऐसे में बीजेपी ने सुषमा स्वराज को बल्लारी सीट से लड़ाया तभी जनार्दन रेड्डी और श्रीरामुलू उनके करीब आ गए.
विवादों को सुलझाने में माहिर थे रेड्डी बंधु
विवादों को सुलझाने में रेड्डी बंधुओं को इतनी महारत हासिल थी कि खनन क्षेत्र के बादशाह लाड बंधु अनिल-संतोष और आनंद सिंह (वर्तमान चुनाव में कांग्रेसी उम्मीदवार) मेंगनीज़ अयस्क की धूल पर मालिकाना हक़ को लेकर विवाद सुलझाने जनार्दन और श्रीरामुलु के पास पहुंचे.
ये विवाद एक बड़ी ख़नन कंपनी के साथ दो लाख टन धातु के बुरादे को लेकर था जिसकी कीमत चीन में लौह अयस्क की मांग बढ़ने से आसमान छूने लगी.
वीरुपक्षप्पा बताते हैं, "इस विवाद से पांच या दस लाख रुपये हासिल करने की जगह रेड्डी बंधुओं ने दस गुना ज़्यादा पैसा कमाया. और इसी पैसे से वे पड़ोसी ज़िले अनंतपुर (आंध्रप्रदेश) में ओबालापुरम खनन कंपनी खरीदने में सफल हुए."
रेड्डी बंधुओं ने कैसे खड़ा किया साम्राज्य
ओबालापुरम खनन कंपनी के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन करने वाले समाज परिवर्तन समुदाय के एस आर हीरेमठ कहते हैं, "रेड्डी बंधुओं ने आंध्रप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी से दोस्ती करके इन ख़ानों के लिए लाइसेंस लिए."
"रेड्डी बंधुओं के पास आंध्र प्रदेश में कर्नाटक सीमा से लगती हुई चार ख़ानें थीं लेकिन उससे निकलने वाले लौह अयस्क के खरीदार कम थे क्योंकि इस अयस्क की गुणवत्ता कर्नाटक में मिलने वाले लौह अस्यक से कम थी"
लेकिन रेड्डी बंधुओं ने जिस गुणवत्ता के लौह अस्यक का निर्यात किया वो आंध्र प्रदेश में मिलने वाले लौह अयस्क से बेहतर था.
रेड्डी का बिज़नेस मॉडल
सुप्रीम कोर्ट की पर्यावरण मामलों की पीठ ने एक 'सेंट्रल एमपॉवर्ड कमेटीट गठित की जिसने काफी समय बाद इसका पता लगाया.
हीरेमठ कहते हैं, "रेड्डी बंधुओं का तरीका ये था कि वे आंध्र प्रदेश में स्थित अपनी ख़ानों से घुसकर कर्नाटक में स्थित ख़ानों में से ख़नन करते थे. ये खान बल्लारी लौह अयस्क कंपनी के पास थीं और आंध्र प्रदेश के नज़दीक थी."
"ये रेड्डी बंधुओं के काम करने का एक तरीका था. इन्होंने ख़नन कंपनी के साथ एक दूसरी प्रक्रिया भी अपनाई जिसके तहत 30 फीसदी और 70 फीसदी पर समझौता भी. जनार्दन रेड्डी बहुत ही चालाक खनन व्यवसायी थे."
सीबीआई की भूमिका पर सवाल
One old mining family in Ballari was referred by a forest official to Janardhan Reddy and associates.
बल्लारी में खनन से जुड़े एक पुराने ख़ानदान को एक वन अधिकारी ने जनार्दन रेड्डी के साथ काम करने को कहा.
इसी परिवार के तपल गनेश कहते हैं, "मैंने रेड्डी बंधुओं के इस समझौते को मानने से इनकार कर दिया. लेकिन बाद में हमें पता चला कि वे एक पड़ोसी खान से हमारी खान में खनन करने के लिए घुस आए हैं. तब मैंने पुलिस और अन्य संस्थाओं में शिकायत की, जब कुछ नहीं हुआ, तब मैं अदालत में गया."
हीरेमठ कहते हैं, "आपको याद होना चाहिए कि रेड्डी बंधु (करुणाकर को छोड़कर) एक नई तरह के राजनीतिज्ञों की खेप का प्रतिनिधित्व करते हैं. ये लोग पैसे को संभालने के साथ, इसे छुपाने में भी सक्षम हैं."
कर्नाटक के तत्कालीन लोकायुक्त जस्टिस संतोष हेगड़े ने अपनी रिपोर्ट में आकलन किया है कि अवैध खनन और देश की दस बंदरगाहों से चीन निर्यात किए जाने वाले अयस्क की कीमत तकरीबन सोलह हज़ार पांच सौ करोड़ थी.
जिन बंदरगाहों से निर्यात किया गया वो कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और गोवा में हैं.
लोकायुक्त की रिपोर्ट
जस्टिस हेगड़े ने बीबीसी से बात करते हुए कहा, "मुझे लगता है कि ये कीमत इससे कहीं ज़्यादा थी क्योंकि कई मामलों में हमें दस्तावेज़ी सबूत नहीं मिले."
लेकिन जस्टिस हेगड़े आश्चर्यचकित हैं कि "इस घोटाले की जांच करने वाली एजेंसी सीबीआई को भी रिपोर्ट देनी चाहिए क्योंकि राज्य सरकार ने दस्तावेज़ नहीं दिए थे. आप एक जांच एजेंसी हैं और आपको जांच करने की शक्ति है, दस्तावेज़ों के लिए आप अदालत तक जा सकते हैं. इसके बावजूद लोकायुक्त की रिपोर्ट में सभी दस्तावेज़ थे जिनके आधार पर कार्रवाई हो सकती थी."
वीरूपक्षप्पा कहते हैं, "राजनीतिक रूप से जनार्दन रेड्डी एक रणनीतिकार हैं लेकिन कभी-कभी वह सही गलत की परवाह किए बिने बयानबाजी कर देते हैं."