विश्व योग दिवस: योग केवल आसन ही नहीं और भी बहुत कुछ है
विश्व योग दिवस के अवसर पर जानिए कि योग में आसन और प्राणायाम के अलावा और क्या-क्या शामिल है.
योग का अर्थ है जुड़ना. मन को वश में करना और वृत्तियों से मुक्त होना योग है.
सदियों पहले महर्षि पतंजलि ने मुक्ति के आठ द्वार बताए, जिन्हें हम 'अष्टांग योग' कहते हैं.
मौजूदा दौर में हम अष्टांग योग के कुछ अंगों जैसे आसन, प्राणायाम और ध्यान को ही जान पाए हैं.
आज हम आपको पतंजलि योग के आठों अंगों के बारे में पूरी जानकारी दे रहे हैं.
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1. यम
यम शब्द से ही बना है संयम यानी मर्यादित आचरण-व्यवहार, यम के पांच अंग हैं.
अहिंसा- मन, वचन और कर्म से किसी को कष्ट न पहुंचाना
सत्य - भ्रम से परे सच का ज्ञान
अस्तेय- नकल या चोरी का अभाव
ब्रह्मचर्य- चेतना को ब्रह्म तत्व से एकाकार रखना
अपरिग्रह- संग्रह या संचय का अभाव
2. नियम
नियम के भी पाँच अंग हैं.
शौच- आंतरिक और बाहरी सफ़ाई
संतोष- जो है उसे ही पर्याप्त मानना
तप- स्वयं को तपाकर असत को जलाना
स्वाध्याय- आत्मा-परमात्मा को समझने के लिए अध्ययन
ईश्वर प्रणिधान- ईश्वर के प्रति समर्पण, अहं का त्याग
3. आसन
योग का वो अंग जो मौजूदा दौर में सबसे ज्यादा मुखरता से प्रकट है, वो है आसन.
आसन महज शारीरिक कसरत या लचीलापन नहीं है.
महर्षि पतंजलि इसकी अवस्था को बताते हुए कहा था- स्थिरं सुखम् आसन. म्यानी शरीर की स्थिरता और मन के तल पर आनंद और सहजता ही आसन है. अगर आप इन दो स्थिति को नहीं पाते, तो आप आसन में नहीं हैं.
4. प्राणायाम
शरीर में सूक्ष्म प्राण शक्ति को विस्तार देने की साधना है- प्राणायाम.
योग याज्ञवल्क्य संहिता में प्राण (आती साँस) और अपान (जाती साँस) के प्रति सजगता के संयोग को प्राणायाम बताया है.
साँस की डोर से हम तन-मन दोनों को साध सकते हैं.
हठयोग ग्रंथ कहता है 'चले वाते, चलं चित्तं'यानी तेज़ साँस होने से हमारा चित्त-मन तेज़ होता है और साँस को लयबद्ध करने से चित्त में शांति आती है.
साँस के प्रति सजगता से सिद्धार्थ गौतम ने बुद्धत्व को साधा. वहीं, गुरु नानक ने एक-एक साँस की पहरेदारी को परमात्मा से जुड़ने की कुंजी बताया.
5. प्रत्याहार
हमारी 11 इंद्रियां हैं- यानी पाँच ज्ञानेंद्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ और एक मन.
प्रत्याहार शब्द प्रति और आहार से बना है यानी इंद्रियां जिन विषयों को भोग रही हैं यानी उनका आहार कर रही हैं, वहां से उसे मूल स्रोत (स्व) की तरफ़ मोड़ना.
ज्ञानीजन कहते हैं हर चीज़ जो सक्रिय है वो ऊर्जा की खपत करती है.
इंद्रियों की निरंतर दौड़ हमें ऊर्जाहीन करती है. इंद्रियों की दौड़ को त्याग कर मगन रहना प्रत्याहार है.
6. धारणा
'देश बन्ध: चितस्य धारणा'यानी चित्त का एक जगह टिक जाना धारणा है.
इन दिनों अक्सर धारणा अभ्यास को हम ध्यान समझ लेते हैं. धारणा मन को एकाग्र करने की साधना है.
इसके कई स्वरुप हैं जैसे प्राण-धारणा यानी साँस पर फ़ोकस, ज्योति या बिंदु त्राटक आदि.
धारणा दरअसल ध्यान से पहले की स्थिति है. धारणा मन के विचारों की बाढ़ को नियंत्रित कर हमें शांति देती है.
7. ध्यान
योगसूत्र कहता है कि जब धारणा लगातर बनी रह जाती है तो ध्यान घटित होता है.
साफ़ है कि ध्यान हम कर नहीं सकते बल्कि यह घटित होता है.
ध्यान के नाम पर जो भी विधि या प्रक्रिया हम अपनाते हैं वो महज हमें धारणा यानी एकाग्रता की ओर ले जा सकती है.
ध्यान वो अवस्था है जहां कर्ता, विधि या प्रक्रिया सब कुछ समाप्त हो जाती है, बस एक शून्यता होती है.
जैसे-नींद से पहले हम तैयारी करते हैं लेकिन यह तैयारी नींद की गारंटी नहीं है, वो अचानक आती है यानी घटित होती है.
8. समाधि
समाधि शब्द सम यानी समता से आया है. योग याज्ञवल्क्य संहिता में जीवात्मा और परमात्मा की समता की अवस्था को समाधि कहा गया है.
महर्षि पतंजलि कहते हैं कि जब योगी स्वयं के वास्तविक स्वरुप (सत चित् आनंद स्वरुप) में लीन हो जाता है तब साधक की वह अवस्था समाधि कहलाती है.
समाधि पूर्ण योगस्थ स्थिति का प्रकटीकरण है.
कबीर इस अवस्था को व्यक्त करते हुए कहते हैं -जब-जब डोलूं तब तब परिक्रमा, जो-जो करुं सो-सो पूजा.
बु्द्ध ने इसे ही निर्वाण और महावीर ने कैवल्य कहा.
(आलेख: योगगुरू धीरज, 'योग संजीवनी' के लेखक. चित्रांकन: पुनीत गौर बरनाला)
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