लद्दाख में भारतीय सेना स्थाई इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट पर क्यों दे रही है जोर ?
Indian Army in Ladakh: भारतीय सेना पिछले करीब दो वर्षों से लद्दाख के सीमावर्ती इलाकों में स्थायी इंफ्रास्ट्रक्चर पोजेक्टर पर बहुत जोर दे रही है। ऐसी सड़कों का निर्माण हो रहा है, जो हर मौसम में काम आ सके। जवानों के ठहरने और हथियारों के अलावा सैन्य उपकरणों की स्टोरेज के लिए शक्तिशाली ढांचे बनाए जा रहे हैं। पुलों को चौड़ा किया जा रहा है और उनकी क्षमता बढ़ाई जा रही है। आवश्यकता पड़ने पर कहीं भी तत्काल अस्थाई पुलों का निर्माण किया जा सके, इसकी भी ट्रायल चल रही है। सबसे बड़ी बात है कि देश के दुश्मनों पर नजर रखने के लिए सारी तैयारी मेक इन इंडिया के तहत की जा रही है।
लद्दाख में स्थाई इंफ्रास्ट्रक्चर पर आर्मी का जोर
लद्दाख में इंडियन आर्मी ने कई सारे इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट अपने हाथों में लिए हैं। भारतीय सेना सीमावर्ती क्षेत्रों में अपनी क्षमता बढ़ाने में लगी हुई है। इससे ऊंचाई वाले दुर्गम क्षेत्रों में जवानों की तैनाती आसान होगी और उनकी ऑपरेशनल कैपिसिटी भी बढ़ेगी। इस बड़े अभियान के लिए सेना के उत्तरी कमान ने अपनी इंजीनियरिंग कोर को जिम्मेदारी सौंपी है। जिन्हें सैन्य आवश्यकाओं को ध्यान में रखकर मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने में महारत हासिल है।
इंजीनियरिंग कोर को दी गई है विशेष जिम्मेदारी
पिछले कुछ वर्षों में पूरे उत्तरी कमान में इंफ्रास्ट्रक्चर पर काफी काम किया गया है, खासकर लद्दाख पर पूरा जोर रहा है। इसमें नए जेनरेशन के प्लांट और उससे जुड़े उपकरण, जैसे कि हेवी एक्सकैवेटर्स, स्पाइडर एक्सकैवेटर्स और लाइन वेट क्रॉलर रॉक ड्रिल्स शामिल हैं। इंडियन एक्सप्रेस ने आर्मी हेडक्वार्टर के इंजीनियरिंग ब्रांच से उपलब्ध कराए गए अनुमानों के आधार पर बताया है कि उत्तरी कमान में मोटे तौर पर 150 किलोमीटर ऑपरेशनल ट्रैक तैयार किया गया है। इसमें ड्रेन के अलावा बाकी चीजें भी साथ-साथ तैयार की गई हैं, ताकि यह लंबे समय तक टिकाऊ रहे।
हिमाचल से ऑल वेदर कनेक्टिविटी पर काम
एक सड़क अभी निर्माणाधीन है, जो कि पश्चिमी लद्दाख और जंस्कार घाटी को मनाली ऐक्सिस से वैकल्पिक कनेक्टिविटी उपलब्ध कराएगी। 298 किलोमीटर लंबी इस सड़क में 65 फीसदी काम पूरा हो चुका है और 2026 तक इस प्रोजेक्ट के पूरा हो जाने के आसार हैं। इस सड़क में 4.1 किलोमीटर लंबी शिंकू ला ट्विन ट्यूब सुरंग भी शामिल है जो हिमाचल प्रदेश से लद्दाख तक ऑल वेदर कनेक्टिविटी उपलब्ध कराएगी। इस सुरंग को रक्षा मंत्रालय की ओर से जल्द ही मंजूरी मिलने की संभावना है।
दुर्गम इलाकों में पुलों को भी अपग्रेड किया जा रहा है
सड़कों के अलावा लद्दाख के दुर्गम इलाके में पहले से मौजूद पुलों को भी अपग्रेड किया जा रहा है। मसलन, दरबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी मार्ग पर 35 स्थायी या अधिक चौड़े बेली ब्रिज बनाने की योजना पर का काम चल रहा है। 150 किलोमीटर तक इन पुलों पर काम पूरा होने वाला है और बाकी का काम भी अगले कार्यकारी सीजन तक हो जाने का अनुमान है। इसके अलावा ऊंचाई वाली जगहों पर तत्काल तैनाती की आवश्यकता के मद्देनजर असॉल्ट ब्रिजों के निर्माण का भी ट्रायल हो रहा है। यह पुल है स्वदेशी सर्वत्र ब्रिज, जिसका ट्रायल पहली बार किया गया है।
बेहतर ऑपरेशनल तैयारी के लिए स्थाई निर्माण पर फोकस
यही नहीं पूर्वी लद्दाख में जवानों की गश्ती की क्षमता बढ़ाने के लिए सेना के द्वारा नए लैंडिंग क्राफ्ट भी शामिल किए गए हैं। इससे जवानों और सामानों को पहुंचाना आसान हुआ है। इस क्राफ्ट पर एक साथ 35 जवानों को या 12 जवानों के साथ एक जीप को ढोने की क्षमता है। पिछले दो वर्षों में लद्दाख में 22,000 जवानों और करीब 450 भारी वाहन (टैंकों और तोपों को ) रखने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर खड़े किए गए हैं। सेना ने कहा है कि तैयारी बेहतर करने के लिए अब स्थायी इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने पर फोकस बढ़ गया है।
भूमिगत सुरंगों पर भी जारी है काम
इनके अलावा सुरंगों, गुफाओं और भूमिगत गोला-बारूद के भंडारों के निर्माण का काम प्रगति पर है। इंजीनियर इन चीफ लेफ्टिनेंट जनरल हरपाल सिंह के मुताबिक पूरा आधुनिकीकरण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मेक इन इंडिया के विचार से प्रभावित है। इसके अलावा सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) को हाल ही में न्योमा में भारत के सबसे ऊंचाई पर स्थित एयरफिल्ड बनाने का काम सौंप दिया है, जहां इस समय कच्ची सतह वाला एडवांस लैंडिंग ग्राउंड है। (तस्वीरें-फाइल)