क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

मुसलमान से हिन्दू बनना इस परिवार के लिए कैसा रहा, क्या हिन्दुओं ने इन्हें अपनाया?- ग्राउंड रिपोर्ट

मुसलमान से जो हिन्दू बनते हैं क्या उन्हें हिन्दू समाज के लोग स्वीकार करते हैं? उनकी जाति को लेकर क्या होता है? क्या हिन्दू इनसे बेटी-रोटी का संबंध बनाने के लिए तैयार हैं या ये न घर के रहते हैं न घाट के?

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News
बागपत
BBC
बागपत

मुसलमान से हिन्दू बनने वालों को क्या दिक़्क़तें हुईं

  • 2018 में बागपत में एक मुस्लिम परिवार के 13 लोग हिन्दू बन गए थे
  • इन्हें हिन्दू बनने के बाद जाति के मोर्चे पर दिक़्क़तों का सामना करना पड़ा
  • मुस्लिम से हिन्दू बनने वाले यूपी शिया वक़्फ़ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन वसीम रिज़वी भी परेशान
  • विश्व हिन्दू परिषद का कहना है कि मुसलमानों के हिन्दू बनने पर पूर्वजों की जाति मिलेगी

चार साल की बच्ची को मज़हब के बारे में भला क्या पता रहता होगा. अगर उसे ज़ोया नाम से भी बुलाया जाता है, तब भी वह इस बात को शायद ही समझती होगी कि उसके माँ-बाप मुसलमान हैं, इसलिए यह नाम रखा गया है.

बच्चों का मज़हब क्या होगा, यह फ़ैसला उनकी पसंद से नहीं होता है. दुनिया भर के माँ-बाप से ही तय हो जाता है कि उनके बच्चों का मज़हब क्या होगा. माँ-बाप अपना मज़हब बदल लेते हैं, तो बच्चों पर भी उस मज़हब को अपनाने का दबाव होता है.

उत्तर प्रदेश में बागपत ज़िले के बदरखा गाँव में चार साल की एक बच्ची से उसका नाम पूछा, तो उसने अपना नाम ज़ोया बताया.

ज़ोया ने नाम बताने के बाद शर्माते हुए अपनी नन्हीं उँगलियाँ मुँह पर रख लीं. बग़ल में बैठी उसकी बड़ी बहन ज़ोया को कुहनी मारती है और कहती हैं कि तुम्हारा नाम गुड़िया है. बहन के कहने पर वह अपना नाम फिर से गुड़िया बता देती है.

इसी दौरान ज़ोया के भाई को पड़ोस का एक बच्चा अनस नाम से बुलाता है. सात साल के अनस अपने पिता दिलशाद की ओर देखते हैं.

दिलशाद उस बच्चे को डाँटते हुए बोलते हैं- स्कूल में इसका नाम अमर सिंह है और स्कूल के नाम से ही बुलाया करो. अनस नाम से बुलाने वाला बच्चा भी दिलशाद के जवाब से झेंप जाता है और चुपचाप चला जाता है.

बागपत
BBC
बागपत

हिन्दू बनने का मक़सद

दरअसल, दिलशाद के परिवार के कुल 13 लोग 2018 में मुस्लिम से हिन्दू बन गए थे. इनमें तीन भाई नौशाद, दिलशाद और इरशाद के अलावा इनकी बीवियाँ और बच्चे शामिल थे.

इसके साथ ही इनके पिता अख़्तर अली भी अपनी बीवी के साथ हिन्दू बन गए थे. तब इनकी शिकायत थी कि मुश्किल वक़्त में मुसलमानों ने साथ नहीं दिया इसलिए उन्होंने इस्लाम छोड़ने का फ़ैसला किया. जब यह परिवार हिन्दू बना था, तो ज़ोया महज़ छह महीने की थी.

यह पूरा परिवार मज़दूरी से अपनी जीविका चलाता है. नौशाद राज मिस्री हैं. दिलशाद गाँव-गाँव में घूमकर कपड़े बेचते हैं. इरशाद भी फेरी लगाकर कपड़ा ही बेचते हैं. इनके पिता अख़्तर अली भी यही काम करते थे, लेकिन अब बुज़ुर्ग हो गए हैं.

अख़्तर अली के छोटे बेटे गुलशन का शव 2018 में संदिग्ध हालत में मिला था. इनका कहना था कि बेटे की हत्या हुई है और कौम के लोगों ने साथ नहीं दिया.

युवा हिन्दू वाहिनी के लोगों ने इनकी मदद की थी और बाद में इन्होंने इस्लाम छोड़ने का फ़ैसला किया था. हिन्दू धर्म अपनाने के बाद गाँव के ही जगबीर सिंह ने अपना घर दे दिया था. गाँव में उनका घर ख़ाली था क्योंकि पूरा परिवार मेरठ में रहता है.

लेकिन मुसलमान से हिन्दू बनने का सफ़र पूरे परिवार के लिए बहुत लंबा नहीं रहा. इनके घर की महिलाओं का मन हिन्दू बनने का नहीं था.

हिन्दू बनने के बाद नौशाद की पत्नी रुक़ैया मायके चली गईं. उन्होंने कहा कि हिन्दू बनने के बाद यह निकाह टूट चुका है और अब वह वापस नहीं आएँगी. नौशाद कहते हैं कि उनके लिए अकेले रहना बहुत मुश्किल था क्योंकि बच्चे भी उनकी पत्नी के साथ ही चले गए थे.

बागपत
BBC
बागपत

हिन्दू बनने से क्या मिला?

नौशाद ने दो महीने में ही फिर से इस्लाम अपना लिया और उन्होंने फिर से अपनी बीवी से निकाह किया. इसी तरह इरशाद का कहना है कि वह जो सोचकर हिन्दू बने थे, उनमें से कुछ भी हासिल नहीं हुआ. इरशाद ने हिन्दू बनने के बाद अपना नाम कवि रख लिया था. इरशाद का कहना है कि वह इंसाफ़ के लिए हिन्दू बने थे लेकिन यहाँ भी कुछ नहीं मिला.

इरशाद कहते हैं, ''हिन्दू तो बन गया था लेकिन सारे रिश्तेदार मुस्लिम ही थे. सबने हिन्दू बनने के बाद मुँह मोड़ लिया. कोई बात नहीं करता था. सब तंज़ कसते थे. कोई फ़ोन तक नही उठाता था. दूसरी तरफ़ हिन्दुओं में भी जाति व्यवस्था है. ख़ुद को हिन्दू तो बना लिया लेकिन जाति कहाँ से मिलती. जाति नहीं मिलती तो शादी-विवाह का क्या होता. मुझे लगा कि ये तो अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने वाली बात हुई.''

अख़्तर अली की सबसे बड़ी बहू शाबरा ख़ातून कहती हैं, ''मुझे पता था कि हमें कोई हिन्दू स्वीकार नहीं करेगा. इसलिए मैंने फ़ैसला किया था कि चाहे जितनी दिक़्क़तें हों हिन्दू नहीं बनूँगी. मेरे बच्चों से शादी कौन करता? मैं हिन्दू बनकर भी कोई ब्राह्मण तो बन नहीं जाती. बनना तो दलित ही था. तो फिर मैं क्यों वहाँ छुआ-छूत झेलने जाऊँ. देखो जी मुसलमान बनना आसान है लेकिन आप हिन्दू बनकर भी अपने पीछे के जीवन से मुक्त नहीं हो सकते.''

अख़्तर अली का पूरा परिवार फिर से मुसलमान बन गया लेकिन उनके तीसरे बेटे दिलशाद अब भी हिन्दू ही हैं. उन्होंने 2018 में अपना नाम दिलेर सिंह कर लिया था. दिलेर सिंह ने अपने सभी पाँच बच्चों का हिन्दू नाम रखा लिया है. इनके पाँचों बच्चों की उम्र चार साल से 14 साल के बीच है. दिलेर सिंह ने अपनी पत्नी का नाम मंजू रख लिया है.

दिलेर सिंह पिछले चार सालों से हिन्दू हैं तो क्या उन्हें इसका कोई फ़ायदा मिला? इस सवाल से उनके चेहरे पर ख़ामोशी देर तक रहती है. ख़ामोशी तोड़ते हुए दिलेर सिंह कहते हैं, ''मिलना क्या था? मिलता तो मेहनत से ही है. मज़हब से नाम बदल जाता है. बस यही है कि गाँव के हिन्दुओं ने मदद की. जयबीर सिंह ने जो घर दिया था, वो अब भी है. मेरा भाई फिर से मुसलमान बन गया लेकिन अब भी उसी घर में है. उन्होंने हटाया नहीं.''

बागपत
BBC
बागपत

हिन्दुओं का क्या कहना है?

जयबीर सिंह के परिवार के ही सुखबीर सिंह कहते हैं, ''इन्हें घर इसलिए नहीं दिया गया था कि ये हिन्दू बन गए थे. घर इसलिए दिया गया था कि यह ख़ाली था और ये लोग रहते हैं तो साफ़ सफ़ाई करते रहते हैं. इन्हें जिस मज़हब में रहना है रहें. हमें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है.''

सुखबीर सिंह कहते हैं, ''देखो जी, हिन्दू से मुसलमान बनना आसान है लेकिन मुसलमान से हिन्दू बनना मुश्किल है. हिन्दू समाज में जाति अब भी बहुत अहमियत रखती है. अब भी शादी विवाह अपनी जातियों के भीतर ही होती है. कोई मुसलमान से हिन्दू बनेगा तो उसे कौन जाति अपनाएगी? जाति तो जन्मजात होती है. पसंद के आधार पर मिलती नहीं है. मान लो ये हमारी जाति जाट में आना चाहें, लेकिन इन्हें कौन जाट अपना लेगा?''

पश्चिम बंगाल की जाधवरपुर यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर अब्दुल मतीन कहते हैं कि भारत में घर वापसी का जो नारा दिया गया, वह सामाजिक और सियासी रूप से धोखा है.

प्रोफ़ेसर मतीन कहते हैं, ''घर वापसी का नारा दे रहे हैं लेकिन किस घर में? घर की बालकनी में रहना है या आहाते में. या फिर गैराज में रहना है. मुझे तो लगता है कि घर की बेल बजाने पर कोई दरवाज़ा भी नहीं खोलेगा. देखिए हिन्दू धर्म में जाति का जो चेन है, उसे तोड़ना आसान नहीं है. इसे आंबेडकर नहीं तोड़ पाए और हारकर वह बौद्ध बन गए. जो अब्राहमिक मज़हब हैं यानी इस्लाम और ईसाई की बात करें तो वहाँ सेंस ऑफ कलेक्टिविटी है. सेंस ऑफ बिलॉन्गिंग है. यानी आप भी उस समूह का हिस्सा हैं और जुड़ाव महसूस करते हैं. लोग हिन्दू धर्म में चले तो जाते हैं लेकिन सामाजिक मान्यता नहीं मिलती.''

बागपत
BBC
बागपत

घर वापसी में घर कहाँ?

प्रोफ़ेसर मतीन कहते हैं, ''जो लोग हिन्दू बन रहे हैं वो हृदय परिवर्तन होने के कारण नहीं बन रहे हैं. ये धर्मांतरण राजनीति से प्रेरित हैं. लेकिन अगर कोई मुसलमान हृदय परिवर्तन से भी हिन्दू बन रहा है तो क्या हिन्दू समाज का हृदय परिवर्तन होगा? यानी हिन्दू समाज इतना उदार बनेगा कि उन्हें स्वीकार कर ले? जो मुसलमान से हिन्दू बनते हैं, उनकी पहचान तो और जटिल हो जाती है. हिन्दू समाज में पहले से ही पहचान को लेकर कई तरह की बारीकियाँ हैं. ऐसे में इस जटिलता के साथ रहना बहुत मुश्किल हो जाता है. धर्मांतरण के बाद हिन्दुओं की लार्जर सोसाइटी में एंट्री मुश्किल है.''

प्रोफ़ेसर मतीन कहते हैं, ''मैंने अभी सईद नक़वी का उपन्यास 'द मुस्लिम वैनिशेस' पढ़ा है. इस उपन्यास में बताया गया है कि भारत से मुसलमान अचानक ख़त्म हो जाते हैं. ताजमहल, क़ुतुब मीनार से लेकर लाल क़िला तक ग़ायब हो जाते हैं. इसके बाद भारत में राजनीतिक पार्टियाँ परेशान हो जाती हैं कि चुनाव कैसे लड़ें. निर्वाचन आयोग के गेट के बाहर यज्ञ किया जाता है कि इन्हें वापस लाया जाए. मीडिया वालों को भी बहस का कोई नक़ली मुद्दा नहीं मिल रहा है. जब आपने सवाल पूछा तो यह उपन्यास बरबस ही याद आ गया.''

विश्व हिन्दू परिषद के संयुक्त सचिव सुरेंद्र जैन कहते हैं, ''इस्लाम से हिन्दू धर्म में आने पर बेटी-रोटी के संबंध का प्रश्न खड़ा होता है. स्वीकार्यता का भी प्रश्न है. इसे लेकर हमने समाधान निकाला है. जिनके पूर्वज जिस जाति के थे, उन्हें वही जाति मिलेगी. यहाँ के सभी मुसलमानों के पूर्वज हिन्दू ही थे और अपने पूर्वजों के बारे में भला कौन नहीं जानता है. यह बात कौन नहीं जानता है कि शेख़ अब्दुल्लाह का परिवार कौल ब्राह्मण था. उसी तरह जिन्ना के परिवार के बारे में किसको पता नहीं है?''

मोहम्मद अली जिन्ना के पूर्वज गुजरात में लोहाना-ठक्कर जाति के थे. यह जाति गुजरात के हिन्दुओं में बिज़नेस करने वालों की होती है.

बागपत
BBC
बागपत

हिन्दू बनने के बाद जाति का क्या होगा?

सुरेंद्र जैन कहते हैं, ''हरियाणा में ऐसा शुरू हो गया है. जाटों ने इस्लाम से वापस हिन्दू में आने के बाद उन्हें स्वीकार किया है. घर वापसी का नारा केवल नारा नहीं है बल्कि यह काम चल रहा है. जो कहते हैं कि मुसलमानों में जाति नहीं है, वे इस्लाम को नहीं जानते हैं. क्या कोई शेख़ पसमांदा से शादी कर लेगा? शिया और सुन्नियों की दुश्मनी किसे पता नहीं है? हम इस पर काम कर रहे हैं कि इस्लाम से हिन्दू में आने वालों को उनके पूर्वजों की जाति मिले. मेवात में हमें वहाँ के मुसलमानों का हिन्दू गोत्र भी पता है. इसलिए इसमें कन्फ्यूज होने की ज़रूरत नहीं है.''

गुजरात यूनिवर्सिटी में सामाजिक विज्ञान के प्रोफ़ेसर गौरांग जानी कहते हैं, ''सुरेंद्र जैन को यह कहना चाहिए था कि वह जाति विहीन समाज बनाना चाहते हैं ताकि जाति के नाम पर भेदभाव ख़त्म हो सके. लेकिन वह वर्ण व्यवस्था को छेड़ना नहीं चाहते हैं इसलिए मुसलमान से हिन्दू बनाने पर भी लोगों को जाति बाँटेंगे. पिछले 10 सालों में मुसलमानों की छवि बना दी गई है, उस छवि से लोग नफ़रत करेंगे या स्वीकार करेंगे? यह सवाल विश्व हिन्दू परिषद को ख़ुद से पूछना चाहिए. अगर हिन्दुओं में इतना स्वीकार्य भाव है तो मुसलमानों को रेंट पर घर क्यों नहीं देते हैं?''

अख़्तर अली के परिवार को युवा हिन्दू वाहिनी के बागपत ज़िला अध्यक्ष योगेंद्र तोमर ने मुसलमान से हिन्दू बनाने में मदद की थी. उनसे पूछा कि यह परिवार फिर से मुसलमान क्यों बना?

इस सवाल के जवाब में योगेंद्र तोमर कहते हैं, ''उनकी बीवियाँ और बच्चे छोड़कर चले गए थे. ऐसे में उन्हें फिर से वापस जाना पड़ा. लेकिन हम लोग की मुहिम थमी नहीं है. हम चाहते हैं कि सारे मुसलमान घर वापसी करें.''

बागपत
BBC
बागपत

वसीम रिज़वी को हिन्दू बनने से क्या मिला?

उत्तर प्रदेश शिया वक्फ़ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन वसीम रिज़वी पिछले साल पाँच दिसंबर को हिन्दू धर्म अपनाकर जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी बन गए थे. 51 साल के जीवन में जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी 50 साल दो महीने इस्लाम में रहे. पिछले 10 महीने से हिन्दू हैं. वह इन 10 महीनों को कैसे देखते हैं?

त्यागी कहते हैं, ''सनातन में आने की चुनौतियों का अंदाज़ा मुझे पहले से था. यहाँ लोग अपनाते नहीं हैं. सबसे पहली दिक़्क़त तो जाति और बिरादरी को लेकर होती है. अगर आपने कोई जाति ले ली तब भी उस जाति के लोग आपको स्वीकार नहीं करेंगे. मैंने अपने नाम में त्यागी जोड़ लिया इसका मतलब यह नहीं है कि त्यागी समाज बेटी-रोटी का संबंध बना लेगा. मेरा अतीत उन्हें अपनाने नहीं देगा. सनातन धर्म की ये दिक़्क़त हैं. यहाँ लोग अपनाते नहीं हैं. सातवीं सदी का मज़हब इस्लाम अगर दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मज़हब बन गया तो इसकी कुछ ख़ूबियाँ भी हैं.''

जितेंद्र त्यागी कहते हैं, ''इस्लाम में घुलने मिलने का स्पेस है. आपने एक बार इस्लाम स्वीकार कर लिया तो आपके अतीत से उन्हें कोई मतलब नहीं होता है. वहाँ वैवाहिक संबंधों में समस्या नहीं होती है. इस्लाम में जाति को लेकर इस तरह अपमान नहीं झेलना होता है. मैं मरते दम तक सनातन में रहूँगा लेकिन मुझे पता है कि कोई भी बेटी-रोटी का संबंध नहीं बनाएगा. ऐसे में लगता है कि हम न घर के रहे न घाट के. जब इस्लाम में था तब भी चैन नहीं था और अब यहाँ हूँ तब भी अलग-थलग महसूस होता है.''

जितेंद्र नारायण त्यागी कहते हैं कि सनातन में आने के बाद उनका निकाह टूट गया. परिवार बुरी तरह से प्रभावित हुआ. वह कहते हैं, ''सच कहिए तो मैंने अपने जीवन में ज़हर घोल लिया. इसीलिए मैं पूरे परिवार के साथ सनातन में नहीं आया था. पहले मैं ख़ुद आकर देखना चाहता था. अच्छा हुआ कि पूरे परिवार के साथ नहीं आया.''

वसीम रिज़वी
Getty Images
वसीम रिज़वी

मज़हब इतना महत्वपूर्ण क्यों?

क्या इंसान के जीवन में मज़हब इतना महत्वपूर्ण होता है कि शादी और परिवार तक तबाह कर लेना चाहिए? इस सवाल के जवाब में त्यागी कहते हैं, ''इंसानियत से ज़्यादा अहम कुछ नहीं होता लेकिन हाँ, मैंने मज़हब को ज़्यादा तवज्जो दी. मैं इतना ज़रूर कहूँगा कि अगर घर वापसी को मुहिम बनाना है तो हिन्दू धर्म को बाँहें फैलकर अपनाना होगा नहीं तो यह केवल सियासी शिगूफ़ा से ज़्यादा कुछ नहीं होगा.''

जितेंद्र नारायण त्यागी की शिकायतों पर विश्व हिन्दू परिषद के राष्ट्रीय संयुक्त सचिव सुरेंद्र जैन कहते हैं, ''वसीम रिज़वी को मीडिया में आना और अनियंत्रित बोलना बहुत पसंद था. हम विश्व हिन्दू परिषद के हैं लेकिन कभी मोहम्मद पैग़ंबर को लेकर कुछ भी आपत्तिजनक नहीं कहा. ओवैसी को चेतावनी ज़रूर दी थी कि कौशल्या और राम के बारे बोलना बंद नहीं करोगे तो मोहम्मद पैग़ंबर पर बोलना शुरू करूँगा. लेकिन कभी बोला नहीं. वसीम रिज़वी को भी इन बातों का ख़्याल रखना चाहिए. वह अनियंत्रित बोलने लगे थे और इसी का ख़ामियाज़ा उन्हें भुगतना पड़ा है.''

सुरेंद्र जैन कहते हैं कि अगर वसीम रिज़वी को कोई समस्या थी तो उन्हें हमसे बात करनी चाहिए थी न कि मीडिया में जाकर कुछ भी बोलना शुरू कर दें. सुरेंद्र जैन कहते हैं, ''हम यति नरसिम्हानंद जैसे अल्ट्रा हिन्दू‌ को समर्थन नहीं दे सकते.''

कोलकाता यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर हिमाद्री चटर्जी ऐसा नहीं मानते हैं कि इस्लाम धर्म स्वीकार करने के बाद वहाँ बेटी-रोटी का संबंध बनाने में भेदभाव नहीं होता है. वह कहते हैं, ''क्या कोई अशराफ पसमांदा मुसलमान के घर में शादी कर लेगा? वहाँ भी दलितों का हाल वही है. कोई भी धर्मांतरण करता है तो उसकी सामाजिक पहचान उसके साथ आती है.''

वसीम रिज़वी
Getty Images
वसीम रिज़वी

आंबेडकर भी थे लाचार

सुरेंद्र जैन धर्मांतरण के बाद पूर्वजों की जाति देने की बात कर रहे हैं, क्या यह इतना आसान है? प्रोफ़ेसर हिमाद्री चटर्जी कहते हैं, ''घर वापसी पर ये जाति भी देंगे तब तो मामला और मज़ेदार हो जाएगा. फिर तो हिन्दू धर्म के ग्रंथों में संशोधन करना होगा. आंबेडकर ने हिन्दू धर्म से विद्रोह किसलिए किया था? ज़ाहिर है कि जाति के दुष्चक्र से बचने के लिए. उन्होंने बहुत ही रिसर्च के बाद बौद्ध धर्म अपनाया था. बौद्ध को भी अपने हिसाब से बनाया था. आंबेडकर ने नवाचार बौद्ध धर्म कहा था. लेकिन जैन साहब तो जाति जाने ही नहीं देना चाहते.''

हिमाद्री चटर्जी कहते हैं, ''मैं प्रोफ़ेसर मतीन की बात को ही आगे बढ़ाता हूँ. क्या घर वापसी के बाद मास्टर बेडरूम में जगह मिलेगी? अगर किसी के पूर्वज दलित थे तो वह हिन्दू धर्म में फिर से दलित बनने क्यों आएगा? अगर वह कहेगा कि हिन्दू धर्म में ब्राह्मण बनने की शर्त पर आएगा तो क्या जैन साहब बना देंगे? सवाल यही है कि घर वापसी करके कोई गैराज में रहने क्यों आएगा? जैन साहब मास्टर बेडरूम दें.''

दिलेर सिंह दिलशाद थे तब गाँव-गाँव में घूमकर कपड़े बेचते थे और चार साल बाद भी वही काम करते हैं. उनकी पत्नी मनसु से मंजू बन गईं लेकिन उन्हें अब भी पाँच बच्चों और पति दिलेर के लिए हर दिन खाना बनाना है. बदला बस नाम है. लेकिन नाम में क्या रखा है. प्रोफ़ेसर चटर्जी कहते हैं- अच्छा होता कि 'घर वापसी' को 'नाम वापसी' कर दिया जाता क्योंकि इसमें घर तो है ही नहीं.

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
How was the transition from Muslim to Hindu for this family?
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X