नक्सल साज़िश के कितने केस आज तक साबित हु्ए?
माओवादी पार्टी के स्टेट कमेटी के सदस्य गंती प्रसादम और रेवोल्यूशनरी राइटर एसोसिएशन के चार सदस्य जिसमें वरवर राव के साले और पत्रकार एन वेणुगोपाल को 30 मई 2005 में निज़ामाबाद से गिरफ़्तार किया गया था.
पुलिस का आरोप था कि औरंगाबाद में साज़िश की गईं और अभियुक्त नल्लमाला में उस पर कार्रवाई करने जा रहे थे.
बीबीसी से बातचीत में वेणुगोपाल ने बताया कि पुलिस कोई सबूत पेश नहीं कर पाई थी.
सामाजिक कार्यकर्ता वरवर राव, सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, वरनॉन गोंज़ाल्विस और अरुण फ़रेरा को महाराष्ट्र पुलिस ने मंगलवार को गिरफ़्तार किया.
इन गिरफ़्तारियों के संदर्भ में मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की बेंच ने बुधवार को कहा कि सभी कार्यकर्ताओं को 6 सितंबर तक घर में नज़रबंद रखा जाए. सुप्रीम कोर्ट ने इन गिरफ़्तारियों को चुनौती देने वाली याचिका पर महाराष्ट्र सरकार से जवाब दायर करने को कहा है.
पुलिस के मुताबिक ये गिरफ्तारियां इन लोगों के माओवादियों से संबंध होने और जनवरी में हुई भीमा-कोरेगांव हिंसा से जुड़ी हैं.
पहले भी ऐसी गिरफ्तारियां हुई हैं जहां पुलिस ने साज़िश करने के मुकदमे सामाजिक कार्यकर्ताओं और नक्सल नेताओं पर दायर किए हैं. ये मुकदमे तेलुगू क्षेत्र से जुड़े हैं जहां पूर्व में नक्सलवाद चरम पर रहा है.
एक नज़र डालते हैं ऐसे ही प्रमुख मुकदमों पर-
पार्वतीपुरम केस
ये मुक़दमा श्रीकाकुलम आदिवासी आंदोलन का हिस्सा रहे 150 लोगों पर दायर किया गया था. ये उन्ही दिनों की बात है जब नक्सलबाड़ी में नक्सल आंदोलन शुरू हुआ. 1970 में इस आंदोलन के नेता और समर्थकों पर सरकार के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ने और सत्ता से निकाल फेंकने की साज़िश में मुक़दमे दायर किए गए थे.
नक्सल नेता कानू सान्याल इस केस में पहले अभियुक्त थे. चारू मजूमदार के अलाना कानू सान्याल को भारत में नक्सल आंदोलन का संस्थापक माना जाता है. कानू सान्याल ने ही नक्सलबाड़ी से पहला धावा बोला था.
विशाखापत्तनम कोर्ट के एडिशनल जज ने 15 अभियुक्तों को दोषी पाया था और उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई थी. कानू सान्याल के साथ-साथ सोरेन बोस, नागभूषण पटनायक, चौधरी तेजेश्वर राव, दुप्पला गोविंदा राव भी सज़ा पाने वालों में से थे.
इनके अलावा 15 लोगों को 5-5 साल की सज़ा हुई और 50 अभियुक्तों को महज़ समर्थक होने की वजह से छोड़ दिया गया था.
पार्वतीपुरम षड्यंत्र केस में आया ये फ़ैसला नक्सल आंदोलन के लिए बड़ा झटका था.
सिंकदराबाद केस
श्रीकाकुलम में आंदोलन दबने के बाद ये तेलंगाना में शुरू हुआ और मुक़दमे भी.
सिंकदराबाद षड्यंत्र केस 1974 में सरकार के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ने की साज़िश में कई कार्यकर्ताओं और नक्सल नेताओं पर मुक़दमे दायर हुए.
ये केस 46 लोगों के ख़िलाफ़ दर्ज हुआ कि अभियुक्त और उनके सहयोगियों ने खम्मम, नालगोंडा, वारंगल, मेडक और दूसरे ज़िलों में आतंक पैदा करने और सरकार को हटाने के लिए हिंसक आंदोलन चलाने की कोशिश की.
इस मामले में अभियोजन पक्ष ने 550 लोगों को गवाह बनाया.
नक्सल नेता कोंडापल्ली सीतारमैय्या, केजी सत्यमूर्ति, प्रमुख तेलुगू लेखक केवी रमन रेड्डी, त्रिपूर्णेनी मधुसूदन राव, वरवर राव, चेराबंदा राजू और एमटी ख़ान अभियुक्तों की सूची में शामिल थे.
जाने माने वकील और सामाजिक कार्यकर्ता केजी कन्नाभीरन ने अभियुक्तों के लिए केस लड़ा.
कन्नाभीरन की दलील थी कि 'किसी नागिरक का मौलिक अधिकार है कि वो मीटिंग कर सकता है, अपनी राय रखने की उसे आज़ादी है और लोकतंत्र में विरोध करने का भी उसे अधिकार है.'
सिकंदराबाद सेशन कोर्ट ने 27 फ़रवरी 1989 को सबूतों के अभाव में सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया.
रामनगर केस
सरकार के ख़िलाफ़ साज़िश के जुर्म में 1986 में 45 कार्यकर्ताओं, नक्सल नेता और आंदोलनकारी लेखकों के ख़िलाफ़ मुकदमा दर्ज किया गया. 17 लोगों के ख़िलाफ़ चार्जशीट दाखिल की गई. पुलिस के मुताबिक हैदराबाद के रामनगर में अभियुक्तों ने मिलकर साज़िश की थी.
नक्सल नेता कोंडापल्ली सीतारमैय्या और आंदोलनकारी लेखक वरवर राव को भी अभियुक्त बनाया गया. कोर्ट की कार्रवाई के दौरान ज़्यादातर अभियुक्तों की मौत हो गई. वरवर राव और सुरिशेट्टी सुधाकर बच गए.
केजी कन्नाभीरन इस केस में भी अभियुक्तों के वकील थे. उन्होंने कोर्ट में आरोपों को ग़लत बताया और पुराने केसों में बरी होने का हवाला दिया.
इस केस में वरवर राव और सुरिशेट्टी सुधाकर दोनों को 2003 में सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया.
औरंगाबाद केस
इस केस में भी सरकार के ख़िलाफ़ साज़िश के जुर्म में नक्सल नेता और आंदोलनकारी लेखकों के ख़िलाफ़ मुकदमा दर्ज किया गया.
माओवादी पार्टी के स्टेट कमेटी के सदस्य गंती प्रसादम और रेवोल्यूशनरी राइटर एसोसिएशन के चार सदस्य जिसमें वरवर राव के साले और पत्रकार एन वेणुगोपाल को 30 मई 2005 में निज़ामाबाद से गिरफ़्तार किया गया था.
पुलिस का आरोप था कि औरंगाबाद में साज़िश की गईं और अभियुक्त नल्लमाला में उस पर कार्रवाई करने जा रहे थे.
बीबीसी से बातचीत में वेणुगोपाल ने बताया कि पुलिस कोई सबूत पेश नहीं कर पाई थी.
निज़ामाबाद के एडिशनल सेशन जज ने 2 अगस्त 2010 को ये कहते हुए केस ख़ारिज कर दिया था कि ऐसा कोई सबूत सामने नहीं आया है जिससे साबित हो सके कि अभियुक्तों के पास कोई हथियार या गोला बारूद था या सरकार के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ने की उनकी कोई तैयारी थी.