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रघुवंश बाबू ने कैसे चमकाया था लालू की किस्मत का सितारा?

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रघुवंश बाबू ने कैसे चमकाया था लालू की किस्मत का सितारा?

रघुवंश प्रसाद सिंह का यूं गुजर जाना लालू यादव के लिए किसी आघात से कम नहीं। लालू यादव अगर बिहार की राजनीति के स्तंभ बने तो इसमें रघुवंश बाबू का भी बड़ा योगदान है। मौत से कुछ दिन पहले ही उन्होंने लालू यादव को याद दिलाया था कि कैसे वे कर्पूरी ठाकुर की मौत के बाद से ही उनके साथ खड़े रहे। रघुवंश बाबू ने कर्पूरी ठाकुर के निधन का जिक्र क्यों किया था ? दरअसर रघुवंश बाबू लालू यादव को यह बताना चाहते थे कि 1988 में कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद वे कैसे नेता विरोधी दल बने थे ? अगर लालू नेता प्रतिपक्ष बने तो उसमें उनकी क्या भूमिका थी ? 1990 में लालू यादव ने मुख्यमंत्री बनने का दावा इसलिए भी पेश किया था क्यों कि नेता प्रतिपक्ष रह चुके थे। लालू भी रघुवंश बाबू के इस सहयोग के लिए हमेशा आभारी रहे। लालू ने दिल से उनकी इज्जत की। सदमे में डूबे लालू उन्हें भूलाये नहीं भूल पा रहे।

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लालू के उत्थान की पृष्ठभूमि

लालू के उत्थान की पृष्ठभूमि

1985 के विधानसभा चुनाव में लोक दल के 46 विधायक जीते थे। उस समय कर्पूरी ठाकुर विपक्ष के सबसे सम्मानित नेता थे। उस चुनाव में लालू यादव, रघुवंश प्रसाद सिंह, नीतीश कुमार जैसे वैसे नेता भी जीते थे जो जेपी आंदोलन की उपज थे। कर्पूरी ठाकुर विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष थे। 1987 में लोकदल में विभाजन हो गया। यह पार्टी लोकदल अ और लोकदल ब में बंट गयी। लोकदल अ का नेतृत्व अजीत सिंह और लोकदल ब का नेतृत्व हेमवती नंदन बहुगुणा कर रहे थे। उस समय बिहार में कांग्रेस का शासन था और शिवचंद्र झा स्पीकर थे। उन्होंने लोकदल में विभाजन का बहाना बना कर अगस्त 1987 में कर्पूरी ठाकुर को नेता प्रतिपक्ष पद से हटा दिया। लोकदल की अंदरुनी राजनीति से कर्पूरी ठाकुर बहुत दुखी थे। जनवरी 1988 में लोकदल ब के 34 विधायकों ने सशरीर हाजिर हो कर स्पीकर को बताया कि वे लोकदल ब में हैं और उनके नेता कर्पूरी ठाकुर हैं। उन्हें नेता विरोधी दल की मान्यता दी जानी चाहिए। लेकिन स्पीकर ने ये दावा नहीं माना। इसी चिंता और बीमारी के कारण फरवरी 1988 में कर्पूरी ठाकुर का निधन हो गया। तब सवाल आया कि अब नेता प्रतिपक्ष किसे बनाया जाए।

कैसे बनी लालू के लिए परिस्थितियां ?

कैसे बनी लालू के लिए परिस्थितियां ?

जब कर्पूरी ठाकुर का निधन हुआ था उस समय लोकदल ब के वरिष्ठ विधायक विनायक प्रसाद यादव प्रदेश अध्यक्ष के पद पर थे। नेता प्रतिपक्ष बनने के लिए तीन दावेदार थे - विनायक प्रसाद यादव, अनूप लाल यादव और लालू यादव। उस समय लोकदल ब में देवी लाल और हेमवती नंदन बहुगुणा का आपसी झगड़ा चरम पर था। देवी लाल और शरद यादव बहुगुणा को अध्यक्ष पद से हटाना चाहते थे। देवी लाल और शरद यादव ने अनूप लाल यादव को नेता विरोधी दल बनाने का मन बना लिया था। लेकिन अनूप लाल यादव की एक भूल के कारण लालू यादव की किस्मत खुल गयी। अनूप लाल यादव ने इसी दौरान हेमवती नंदन बहुगुणा को अपने घर भोज पर आमंत्रित कर लिया। इससे देवी लाल और शरद यादव बहुत नाराज हो गये। देवी लाल ने शरद यादव को इस पद के लिए किसी दूसरे यादव नेता की खोज करने के लिए कहा।

रघुवंश बाबू के सहयोग से लालू बने थे नेता प्रतिपक्ष

रघुवंश बाबू के सहयोग से लालू बने थे नेता प्रतिपक्ष

उस समय नीतीश कुमार और जगदानंद सिंह जैसे जेपी आंदोलन से जुड़े नेता लालू यादव को नेता प्रतिपक्ष बनाना चाहते थे। वे चाहते थे कि सामाजवादी आंदोलन युवा नेतृत्व के हाथ में आये। उस समय रघुवंश प्रसाद सिंह नीति सिद्धांत के आधार पर वरिष्ठता को तरजीह देने की मांग कर रहे थे। तब लालू यादव ने रघुवंश प्रसाद सिंह को जेपी आंदोलन की मित्रता याद दिला कर उनसे समर्थन मांगा। वे इसके लिए राजी हो गये। इसके बाद रघुवंश बाबू ने लालू यादव के पक्ष में 17 विधायकों को गोलबंद करने में मदद की। नीतीश कुमार और जगदानंद सिंह पहले से लालू की मदद कर रहे थे। 22 जून 1988 को लोकदल विधायक दल के नेता का चुनाव होना था। लोकदल के तत्कालीन राष्ट्रीय महासचिव शरद यादव केन्द्रीय पर्यवेक्षक के रूप में पटना आये। इस तरह लालू यादव लोकदल विधायक दल के नेता चुन लिये गये। अगर उस समय रघुवंश बाबू ने लालू यादव का समर्थन नहीं किया होता तो उनका नेता प्रतिपक्ष बनना संभव नहीं था। इसलिए लालू यादव, रघुवंश बाबू को अपना परम हितैषी मानते थे। लालू के नेता प्रतिपक्ष बनने के एक साल बाद ही लोकसभा का चुनाव आ गया। लालू ने छपरा से लोकसभा का चुनाव लड़ा और वे सांसद बन गये। उन्होंने जब विधायकी से इस्तीफा दे दिया तो अनूप लाल यादव को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया। 1990 में लालू यादव के सीएम बनने का दावा इसलिए मजबूत था क्यों कि वे नेता विरोधी दल रह चुके थे।

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English summary
How did Raghuvansh Prasad singh Babu shine the star of Lalu yadav's fortune?
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