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कैसे पूर्वोत्तर में कांग्रेस के 5 'खोटे सिक्के' BJP के लिए साबित हुए 'माणिक', इन सबको बनाया मुख्यमंत्री

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अगरतला, 15 मई: त्रिपुरा में विधानसभा चुनावों से कुछ महीने पहले बिपल्ब देब को अचानक मुख्यमंत्री पद से हटाने को लेकर विपक्ष चाहे भाजपा पर जितने हमले करे, लेकिन जिस तरह से पार्टी ने माणिक साहा पर भरोसा जताया है, वह खासकर कांग्रेस की खोखली हो चुकी रणनीति पर अंदर से वार है। कांग्रेस छोड़कर आने वाले नेताओं पर इतना भरोसा जताकर बीजेपी ने राजनीतिक तौर पर यही संदेश दिया है कि कांग्रेस में 'सियासत के सोने' का कद्र नहीं है और जिसे बखूबी तराशना बीजेपी जानती है। क्योंकि, सिर्फ पूर्वोत्तर भारत में ही साहा बीजेपी के ऐसे पांचवें 'माणिक' बन गए हैं। इससे पहले चार सीएम कांग्रेस छोड़कर ही पार्टी में आए हैं।

 त्रिपुरा में माणिक साहा पर भरोसा

त्रिपुरा में माणिक साहा पर भरोसा

माणिक साहा कभी त्रिपुरा में कांग्रेस के बड़े चेहरा हुआ करते थे। उन्होंने 2016 में बीजेपी ज्वाइन की। सिर्फ 4 साल बाद ही जब बीजेपी ने वहां की सत्ता में अपनी मजबूत पकड़ स्थापित कर ली तो उन्हें 2020 में प्रदेश अध्यक्ष बनाकर राज्य में संगठन का जिम्मा सौंप दिया। वे त्रिपुरा क्रिकेट एसोसिएशन के भी अध्यक्ष बने। मजबूत संगठन और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की विचारधारा पर बनी पार्टी ने कांग्रेस से आए नेता को इतने कम वक्त में ऐसे गले लगाया कि उन्हें हाल ही में पहले राज्यसभा के लिए नामांकित किया और जब एंटी-इंकंबेंसी को रोकने के लिए बिपल्ब देब को हटाकर उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठा दिया। भारतीय जनता पार्टी के लिए खासकर पूर्वोत्तर के लिए यह कोई नया प्रयोग नहीं है, बल्कि उसकी काफी हद तक सफल रणनीति का हिस्सा है। साहा पेशे से एक डेंटिस्ट हैं और उनकी छवि भी साफ-सुथरी मानी जाती है। क्योंकि, ये कांग्रेस से झोला उठाकर आए हुए हैं, इसलिए अभी इनका भाजपा में कोई खेमा भी नहीं बना है, ऐसा माना जाता है।

असम में बीजेपी के लिए 'हीरा' साबित हुए हिमंत बिस्व सरमा

असम में बीजेपी के लिए 'हीरा' साबित हुए हिमंत बिस्व सरमा

कांग्रेस से आयात किया कोई नेता कैसे बीजेपी की बुलंदियों को आसमान पर ले जाने में मदद कर सकता है, उसके सबसे सफल उदाहरण असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा हैं। ये राजनीति के इस नए चैप्टर के लिए नई केस स्टडी साबित हो रहे हैं। 2021 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल की अगुवाई में बड़ी जीत के साथ सत्ता में वापसी की। लेकिन, पर्दे के पीछे इस सफलता में हिमंत बिस्व सरमा का बहुत बड़ा योगदान था। सोनोवाल पार्टी के समर्पित नेता हैं, इसलिए उन्हें केंद्र में बुला लिया गया और पार्टी की आक्रामक राजनीति में फिट बैठ रहे हिमंत को सीएम की कुर्सी दे दी गई। हिमंत बिस्व सरमा ने 2015 में ही उनके मुताबिक कांग्रेस नेतृत्व के रवैए से तंग आकर पार्टी छोड़ दी थी और बीजेपी में शामिल हुए थे। सरमा ने न केवल 2016 के विधानसभा चुनाव में, बल्कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भी असम समेत पूर्वोत्तर में भाजपा का जनाधार मजबूत किया और पार्टी ने उनके लिए चुनाव जिताने वाले सीएम को हटाने में भी देर नहीं की। पार्टी ने उन्हें नॉर्थ-ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस का भी संयोजक बनाया।

मणिपुर में एन बीरेन सिंह पर जताया विश्वास

मणिपुर में एन बीरेन सिंह पर जताया विश्वास

एन बीरेन सिंह भी 2016 में ही कांग्रेस छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए थे। 2017 में 15 साल बाद वहां गैर-कांग्रेसी सरकार बनी और बीजेपी ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया। वह करीब एक दशक तक कांग्रेस की राजनीति कर चुके थे और कैबिनेट मंत्री भी रह चुके थे। 2022 के विधानसभा चुनाव भाजपा ने बीरेन सिंह की अगुवाई में ही लड़ा और राज्य की 60 सीटों में से अकेले 32 सीटें जीतकर सत्ता पर कब्जा बरकरार रखा।

अरुणाचल प्रदेश में पेमा खांडू को सौंपी कुर्सी

अरुणाचल प्रदेश में पेमा खांडू को सौंपी कुर्सी

अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू पूर्वोत्तर में भाजपा के चौथे ऐसे नेता हैं, जो कांग्रेस छोड़कर आए हैं और पार्टी ने उनपर भरोसा करके उन्हें प्रदेश सरकार की कमान सौंपी है। 2016 में पेमा खांडू की अगुवाई में वहां कांग्रेस की सरकार बनी थी। तब 37 साल की ही उम्र में सीएम बनने वाले वे देश के पहले नेता थे। वह एक दशक से ज्यादा समय तक कांग्रेस के काफी प्रभावशाली नेता रह चुके थे। 31 दिसंबर, 2016 की बात है, सीएम वही रहे, लेकिन उनकी अगुवाई में कांग्रेस की हटकर भारतीय जनता पार्टी की सरकार बन गई। यह अभूतपूर्व सत्ता परिवर्तन इस वजह से हुआ, क्योंकि खांडू और उनके 33 समर्थक एमएलए ने कांग्रेस का हाथ छोड़कर कमल थाम लिया था। फिर, 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी वहां की 60 सीटों में से दो-तिहाई से ज्यादा यानी 41 सीटें जीत लीं।

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नगालैंड में नेफियू रियो को दिया ताज

नगालैंड में नेफियू रियो को दिया ताज

नेफियू रियो नगालैंड में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हुआ करते थे। वह राज्य के पहले सीएम हैं, जो लगातार तीन चुनाव जीत चुके हैं। लेकिन, तत्कालीन मुख्यमंत्री एससी जमीर से मतभेद की वजह से उन्होंने 202 में कांग्रेस छोड़ दी थी। 2003 में उनकी पार्टी नगा पीपुल्स फ्रंट का बीजेपी के साथ गठबंधन हुआ और डेमोक्रटिक अलायंस ऑफ नगालैंड बना। 2003 में इसकी सरकार बनी। इस चुनाव में 10 साल बाद कांग्रेस यहां सत्ता से बेदखल हुई थी। 2008 के चुनाव में भी गठबंधन जीता और यही सीएम बने। 2018 में उनकी पार्टी टूट गई और रियो नेशनल डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी में शामिल हुए। इस पार्टी का 2018 के चुनाव में फिर से भाजपा के साथ गठबंधन हुआ। चुनाव के बाद भाजपा के सहयोग से ये फिर से मुख्यमंत्री बने।

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English summary
The leaders of the Northeast that the Congress considered useless, the BJP made them the Chief Minister. BJP CMs of Tripura, Assam, Manipur, Arunachal and Nagaland have left Congress
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