200 साल से इस गांव में नहीं खेली गई होली, रंग-गुलाल उड़ते ही आती है अनहोनी की खबर
रांची। सोमवार को होली के मौके पर पूरे देश में लोगों ने एक-दूसरे को रंग-बिरंगे गुलाल लगाकर खुशियों का त्योहार मनाया। बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग सभी ने होली पर जमकर मस्ती की, खासतौर पर युवाओं और बच्चों ने तमाम तरह के रंगो के साथ इस त्योहार पर अपने दोस्तों संग धूम मचाया। आज जहां पूरे देश में होली हर्षोल्लास के साथ मनाई गई वहीं, भारत का एक ऐसा भी गांव है जहां पिछले 200 वर्षों से होली नहीं मनाई गई है। इसकी दिलचस्प वजह जानकर आप भी सोच में पड़ जाएगे।
200 साल से नहीं मनाई गई होली
दरअसल, झारखंड के बोकारो जिले में स्थित दुर्गापुर नाम के गांव में रहने वाले लोग पिछले 200 सालों से होली का त्योहार नहीं मना रहे हैं। यहां रंगों का मतलब खुशियों का संदेश नहीं बल्कि मौत की आहट माना जाता है। सदियों से दुर्गापुर गांव में होली नहीं खेली गई, ऐसा माना जाता है कि यहां गुलाल और रंग उड़ते ही मौतें होने लगती हैं। होली ना मनाने की यह परंपरा यहां आज भी जारी है। होली जैसे धूम-धड़ाके वाले त्योहार पर भी यहां सन्नाटा पसरा रहता है।
होली पर निगरानी करते हैं ग्रामीण
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक होली के मौके पर यहां लोगों को बस एक ही बात का डर लगा रहता है कि कोई गांव में होली ना खेलकर चला जाए। यहां के ग्रामीण पूरे दिन इसकी निगरानी में लगे रहते है, होली नहीं खेलने की परंपरा को दुर्गापुर के लोग आज भी उसी शिद्दत से निभा रहे हैं। होली वाले दिन यहां रंग और गुलाल नहीं उड़ाए जाते लेकिन लोग पूरे सौहार्द से बाकी सारी परंपरा निभाते हैं। आठ हजार की आबादी वाले इस गांव में होली नहीं मनाने के पीछे एक दिलचस्प कहानी भी है।
होली ना मनाने के पीछे दिलचस्प कहानी
ग्रामीणों के मुताबिक एक बार रामगढ़ के राजा अपनी रानी के लिए झालदा से साड़ी खरीदकर ले जा रहे थे, जिसपर दुर्गापुर के राजा दुर्गा प्रसाद की नजर पड़ गई। राजा दुर्गा ने सैनिकों से साड़ी दिखाने को कहा लेकिन वह बाद में उसे समेट ना सके, जब यह बात रामगढ़ के राजा को पता चली तो वह काफी नाराज हुए। दोनों राजाओं के बीच इसे लेकर मनमुटाव हो गया। कुछ समय बाद रामगढ़ के राजा ने दुर्गापुर पर चढ़ाई कर दुर्गा प्रसाद को मौत के घाट उतार दिया।
हो चुकी है कई अनहोनी घटनाएं
उसी दिन से दुर्गापुर में कभी होली नहीं खेली गई। यहां के निवासी दुर्गापुर के राजा की बाबा बड़ाव के नाम से पूजा-अर्चना भी करते हैं। यहां के लोगों का कहना है कि कई बार होली खेली भी गई लेकिन कुछ ना कुछ अनहोनी जरूर हो जाती है। 10 साल पहले गांव में एक मलहार अपने परिवार संग सामान बेचने आया था, उसे यहां के बारे में पता नहीं था और उसने होली खेल ली। इसके दूसरे ही दिन उसके परिवार के तीन सदस्यों की मौत हो गई। इतना ही नहीं पंचायत के क्षेत्र में आने वाले दूसरे टोले में भी होली खोलने पर दर्जनों पशुओं की मौत हो गई थी।
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