राजस्थान में भाजपा की यह रणनीति फिर से खिला सकती है कमल
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नई दिल्ली। राजस्थान में मतदान की तारीख को अब महज कुछ ही दिन रह गए हैं, 7 दिसंबर को होने वाले मतदान में भाजपा और कांग्रेस के दिग्गजों की साख दांव पर लगी है। हालांकि तमाम राजनीतिक पंडितों और रिपोर्ट की मानें तो भाजपा की यहां पर स्थिति कुछ खास नहीं है और सरकार से लोगों की नाराजगी मतदान के दिन देखने को मिलेगी। लेकिन भाजपा इन तमाम रिपोर्ट से दूर एक बार फिर से अपने कार्यकाल की उपलब्धियों पर लोगों का ध्यान केंद्रित करना चाहती है। राजस्थान में पिछले पांच सालों में कोई बड़ा घोटाला और दंगा सामने नहीं आया है। हालांकि किसानों की स्थिति में कुछ खास सुधार नहीं हुआ है, लिहाजा पार्टी को किसानों की नाराजगी देखने को मिल सकती है, लेकिन पार्टी जातिगत समीकरण के जरिए इस नाराजगी को काफी हद तक कम करने की जुगत में लगी है।
पार्टी कर रही है तैयारी
प्रदेश में राजपूत, जाट, गुज्जर और मीणा के बीच सियासी मतभेद को देखते हुए पार्टी अपनी रणनीति को इसी हिसाब से तैयार कर रही है जिससे कि उसे इस मतभेद का अधिक से अधिक लाभ मिल सके। 2013-14 में ऐसा पहली बार हुआ था जब भैरो सिंह शेखावत की अगुवाई में इन तमाम गुटों ने भाजपा के पक्ष में वोट दिया था, इसकी बड़ी वजह थी कि शेखावत ने चौधरी देवी लाल सिंह के साथ गठबंधन किया था, ताकि वह कांग्रेस के वोटबैंक में सेंधमारी कर सके।
हिंदू वोटों का एकीकरण अहम
पिछले कुछ समय में भाजपा की जीत का विश्लेषण करें तो इसकी बड़ी वजह यह रही है कि पार्टी हिंदू वोट का एकीकरण करने में सफल रही है। पार्टी को इस रणनीति का काफी लाभ भी मिला है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के वोट फीसदी में बढ़ोतरी देखने को मिली थी और यह बढ़कर 33.7 फीसदी से 46.05 हो गई थी। लिहाजा कांग्रेस के लिए इस अंतर की भरपाई करना आसान नहीं होगा।
छोटी जातियों का समीकरण
इन तमाम समीकरणों के अलावा भाजपा इस बात की भी पूरी कोशिश कर रही है कि अन्य छोटी जातियों के वोट को भी साध सके। जिसमे मुख्य रूप से माली, यादव, कुमावत, सिंधी, रेबरीस, कलाल, धाकड़, मीणा, दंगी और अन्य शामिल हैं। पार्टी के नए प्रदेश अध्यक्ष इसी जातीय समीकरण से आते हैं, लिहाजा पार्टी को इस बात की पूरी उम्मीद है कि उसे इसका फायदा होगा। ऐसे में इन वोटों को साधकर पार्टी अपने खिलाफ एसएसी, एसटी और जाट-गुज्जरों की नाराजगी की भरपाई करने की कोशिश करेगी। आरक्षण के खिलाफ जिस तरह से इन समुदायों ने भाजपा के खिलाफ प्रदर्शन किया था, उसके बाद पार्टी को इस बात की आशंका है कि उसके इस वोट बैंक में कमी आ सकती है।
पीएम मोदी अहम
इन तमाम रणनीतियों के अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का पार्टी पूरा फायदा उठाने की कोशिश कर रही है। पीएम मोदी की रैली में आने वाली भीड़ पार्टी को काफी हद तक लाभ पहुंचा सकती है। पीएम मोदी अपनी रैलियों में तमाम केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं का जिक्र करते हैं। इसमे मुख्य रूप से घर, शौचालय निर्माण, स्वास्थ्य बीमा, गैस कनेक्शन जैसी योजनाएं शामिल हैं जोकि लोगों के बीच काफी लोकप्रिय है। बहरहाल देखने वाली बात यह है कि क्या भाजपा इस बार राजस्थान के चुनावी इतिहास को पलटते हुए क्या लगातार दूसरी बार सत्ता में वापसी कर सकती है।
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