
क्या केंद्र ने दबा दी है ममता सरकार की कमजोर नस ? TMC सुप्रीमो बदली-बदली क्यों हैं, जानिए
नई दिल्ली, 5 अगस्त: क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के बीच कोई गुप्त सियासी समझौता हो गया है? यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण हो चला है, क्योंकि ऐसा बीजेपी की धारा पर चलने वाले दिग्गज ही पूछ रहे हैं और वह भी सीधे पीएम मोदी से। दरअसल, राष्ट्रपति चुनाव में यशवंत सिन्हा को विपक्ष का साझा उम्मीदवार बनाने के बाद से ही तृणमूल नेता का केंद्र की भाजपा सरकार को लेकर सुर में थोड़ी नरमी महसूस की जा रही है। जिस दिन कांग्रेस महंगाई के बहाने सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर ईडी के कसते शिकंजे से परेशान होकर सड़कों पर संग्राम करने के लिए पूरी ताकत झोंकी, उसी दिन बंगाल की 'दीदी' पीएम मोदी से मुलाकात करने पहुंच गईं। बंगाल की राजनीति में काफी उथल-पुथल नजर आ रहा है!

चार दिवसीय दिल्ली दौरे पर हैं ममता
पिछले कई वर्षों से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री जब भी कोलकाता से देश की राजधानी पहुंचती हैं तो मीडिया वाले भी उन्हें मोदी सरकार-विरोधी बहुत बड़े विपक्षी चेहरे के रूप में देखकर उनके पीछे भागते रहे हैं। टीएमसी सुप्रीमो चाहे खुलकर जाहिर करें या ना करें, उन्होंने ऐसे मौकों पर खुद को 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ में प्रमुख विपक्षी चेहरे के तौर पर पेश करने की कोशिश की है। गुरुवार को टीएमसी सुप्रीमो एकबार फिर चार दिवसीय दौरे पर नई दिल्ली पहुंची हैं। हर बार की तरह उम्मीद है कि वह अपने दल के नेताओं के साथ-साथ विपक्ष के नेताओं से भी मुलाकात करेंगी। लेकिन, उनका यह दिल्ली दौरा पिछले कई दौरों से काफी अलग है।

ममता के रुख में नरमी का कारण ?
शुक्रवार को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की है। बंगाल की सीएम होने के नाते देश के प्रधानमंत्री से उनकी मुलाकात तक तो ठीक है। लेकिन, यह उस दिन हुई है, जब नेशनल हेराल्ड में कथित काले कारनामे को लेकर सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर प्रवर्तन निदेशालय के कसते शिकंजे से तिलमिलाई कांग्रेस मोदी-सरकार के खिलाफ काले-कपड़ों में राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन कर रही है। सिर्फ कांग्रेस ही नहीं, बाकी विपक्षी दल भी महंगाई और केंद्रीय एजेंसियों के कथित दुरुपयोग के नाम पर केंद्र सरकार से दो-दो हाथ करने का प्रयास कर रही है।

हाल तक केंद्र के खिलाफ काफी मुखर दिखती थीं ममता
इससे पहले पीएम मोदी और बीजेपी सरकार के खिलाफ सार्वजनिक तौर पर अदावत दिखाने का ममता बनर्जी कोई मौका नहीं छोड़ती थीं। चाहे नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती से जुड़ा कार्यक्रम हो या फिर प्राकृतिक आपदा। पीएम मोदी और ममता बनर्जी जब भी सरकारी कार्यक्रमों में आमने-सामने हुए या होने वाले थे, तो कोई ना कोई विवाद जरूर हुआ। यहां तक कि जब सीमावर्ती इलाकों में बीएसएफ को सशक्त करने की कोशिश की गई तो ममता ने उसे भी संविधान के संघीय ढांचे से खिलवाड़ का आरोप लगाते देर नहीं की। ऊपर से बंगाल के राजभवन के जरिए केंद्र और राज्य सरकार की तनातनी तो लगभग रुटीन ही बन चुकी थी। दोनों से जुड़ा शायद ही कोई भी सरकारी कार्यक्रम विवाद के बगैर रह पाया। जबकि, जितनी बातों का जिक्र किया है, यह कोई भी बीजेपी-टीएमसी के बीच का राजनीतिक मसला नहीं था, बल्कि सारे दोनों सरकारों से जुड़े मुद्दे थे।

नीति आयोग की बैठक में भी पीएम मोदी से होगी मुलाकात
पीएम मोदी और सीएम ममता के बीच आमने-सामने की मुलाकात की मुलाकात के बाद 7 अगस्त को नीति आयोग की बैठक में भी उनकी प्रधानमंत्री से मुलाकात होने वाली है, क्योंकि प्रधानमंत्री ही उसकी अध्यक्षता करेंगे। ममता के दिल्ली दौरे के कार्यक्रमों में नीति आयोग की यह बैठक भी शामिल है। यहां यह गौर करने वाली बात है कि पिछले साल इसी नीति आयोग की बैठक में ममता शामिल नहीं हुई थीं, क्योंकि उनका भाजपा के साथ राजनीतिक मतभेद गहराया हुआ था। जाहिर है कि इन हालातों में ममता का बदला-बदला अंदाज काफी कुछ का संकेत माना जा सकता है।

क्या बंगाल के कैश कांड से है कोई कनेक्शन ?
ममता-पीएम मोदी की मुलाकात ऐसे समय में हुई है, जब स्कूली नौकरी घोटाले में उनकी कैबिनेट सहयोगी रहे पार्थ चटर्जी मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों में प्रवर्तन निदेशालय की रिमांड पर हैं। ममता सरकार ने उन्हें और अपने शिक्षा मंत्री परेश अधिकारी दोनों को ही कैबिनेट से बर्खास्त किया है। पार्थ की गिरफ्तारी उनकी खासमखास अर्पिता मुखर्जी के घर से बरामद करीब 50 करोड़ रुपये कैश और करोड़ों के आभूषण और विदेशी करेंसी मिलने के बाद हुई है। इससे पहले ममता, मोदी सरकार पर केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाते नहीं थकती थीं। लेकिन, इसबार उनके रुख में स्पष्ट नरमी दिख रही है। खासकर तब, जब तृणमूल कांग्रेस में कथित असंतोष को रोकने के लिए उन्हें अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल करने की नौबत आ चुकी है। गौरतलब है कि पार्थ चटर्जी ने अपनी सहयोगी के यहां मिली रकम खुद के होने से इनकार करते हुए, बहुत बड़ा संकेत दिया है- 'समय आने पर सब पता चल जाएगा....'

उपराष्ट्रपति चुनाव में भी भाजपा उम्मीदवार को दिया वॉकओवर!
इससे पहले राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के साझा उम्मीदवार के तौर 'मजबूरी' के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा (मजबूरी क्यों- विपक्ष के पहले दोनों पसंद फारूक अब्दुल्ला और गोपाल कृष्ण गांधी के मना करने के बाद अंतिम विकल्प) को चुनने में बंगाल की 'दीदी' ने सबसे बड़ी भूमिका निभाई थी। लेकिन, जब बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए ने द्रौपदी मुर्मू का नाम प्रस्तावित किया, तभी ममता के सुर में नरम आ गई थी। इसके बाद शनिवार को होने वाले उपराष्ट्रपति चुनाव से भी टीएमसी ने अलग रहने का ऐलान कर रखा है। जबकि, पीएम मोदी के प्रभाव से बीजेपी ने बंगाल के पूर्व राज्यपाल जगदीप धनकड़ को प्रत्याशी बनाया है, जिनका विरोध करना टीएमसी की लाइन के मुताबिक काफी आसान था।
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भाजपा के दिग्गज ने ही जताई 'गुप्त समझौते' की आशंका
क्या भाजपा नेतृत्व और टीएमसी सुप्रीमो में अंदर खाने कुछ समझौता हो चुका है? यह सवाल इसलिए लाजिमी है, क्योंकि अब इस तरह की बात भाजपा से ही जुड़े दिग्गज पूछ रहे हैं। शुक्रवार को बीजेपी के विचारक और मेघालय के पूर्व राज्यपाल तथागत रॉय ने पीएम मोदी और उनके पीएमओ वाले ट्विटर अकाउंट को टैग करते हुए लिखा है, 'कोलकाता 'सेटिंग' की आशंका से जूझ रहा है। जिसका मतलब है कि मोदीजी और ममता के बीच में गुप्त समझौता, जिसके चलते तृणमूल के चोर और/या बीजेपी कार्यकर्ताओं के हत्यारे बच जाएंगे। कृपया हमें भरोसा दिलाएं कि ऐसी कोई 'सेटिंग' नहीं होगी।'