Gujarat Assembly Election 2017: पिता राजीव गांधी की गलती दोहरा रहे राहुल गांधी, ऐसे फंसे बीजेपी के ट्रैप में
कांग्रेस उपाध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के अमेठी से सांसद राहुल गांधी इन दिनों गुजरात विधानसभा के चुनाव प्रचार में व्यस्त हैं। गुजरात चुनाव की तारीखों का ऐलान होने से पहले ही राहुल गांधी मंदिर मंदिर घूम रहे हैं। इसी दौरान वो सोमनाथ मंदिर गए। उसी दौरान एक विवाद पैदा हुआ, राहुल के गैर हिन्दू होने का। राहुल गांधी गुजरात चुनाव प्रचार के लिए सोमनाथ पहुंचे थे। वहां राहुल ने सोमनाथ मंदिर के दर्शन किए। उन्होंने इस दौरान मंदिर में जलाभिषेक कर दर्शन-पूजन किया। राहुल गांधी ने मंदिर में काफी देर तक पूजा अर्चना की। यह 19वीं बार है जब राहुल मंदिर पहुंचे थे। राहुल और अहमद पटेल बुधवार को सोमनाथ मंदिर दर्शन के लिए पहुंचे थे। इस दौरान इन दोनों ने विजिटर बुक में एंट्री की। इस बुक की एक तस्वीर के आधार पर बताया जा रहा है कि राहुल ने इसमें खुद को हिन्दू नहीं लिखा है। हालांकि विजिटर बुक पर राहुल गांधी के दस्तखत नहीं है। कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर राहुल गांधी के हस्ताक्षर दिखाते हुए कहा था कि विजिटर बुक पर उनके हस्ताक्षर नहीं हैं, ना ही राहुल ने गैर-हिन्दू के तौर पर दस्तखत किए हैं। ये सिर्फ भाजपा का मुद्दों से ध्यान भटकाने का प्रयास है। इतना ही नहीं कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि राहुल तो जनेऊधारी हिन्दू हैं और उनको लेकर इस तरह की बहस बिल्कुल फिजूल है। सुरजेवाला ने भी इसे भाजपा की ओछी राजनीति कहा है। वहीं भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा था कि किसी के धर्म पर सवाल अहम है और इस पर राहुल गांधी को खुद जवाब देना चाहिए। तमाम राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राहुल अपने पिता राजीव गांधी की गलती दोहरा रहे हैं। वो लगभग भाजपा के जाल में फंस चुके हैं।
राहुल भी राजीव की तरह कर रहे हैं गलतियां?
इसी मसले पर वेबसाइट The Print में प्रकाशित एक लेख में पत्रकार शेखर गुप्ता ने लिखा है। अपने लेख में शेखर ने राहुल के पिता और देश के प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी का भी जिक्र किया है। लेख में शाह बानो और अयोध्या मामले का जिक्र कर लिखा गया है कि राहुल भी राजीव की तरह गलतियां कर रहे हैं।
मंदिर दौरों को यथार्थवादी स्वीकृति!
लेख के मुताबिक 'राहुल के मंदिर के दौरे को 2014 के बाद एक नया, यथार्थवादी स्वीकृति के रूप में देखा जा सकता है, जहां एक नए राष्ट्रवाद के साथ धर्म सफलतापूर्वक संगठित हो गया है। अल्पसंख्यकों को इस आधार पर स्थापित संरचनाओं से बाहर रखा गया है।
क्या एक जनेऊ पहनने से!
लेख में सवाल उठाया गया है कि जिस तरह से कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सूरजेवाला ने एक प्रेस वार्ता के दौरान कहा था कि राहुल, जनेऊधारी हिन्दू हैं, तो क्या क्या पवित्र धागा पहने से एक शख्स बेहतर उचित हिंदू बनता हैं? क्या हमारे भगवान उन सभी पर भरोसा करते हैं जो सभी ब्राह्मणिक या वैदिक अनुष्ठानों का पालन करते हैं और धार्मिकता के प्रतीक पहनते हैं?
और 1977 के बाद
लेख के अनुसार इंदिरा गांधी की आखिरी पारी तक 1977 की हार के बाद, गांधी खानदान ने अपनी धार्मिकता को सार्वजनिक किया। इसकी वजह हार हो सकती है लेकिन संभावना है कि संजय गांधी के निधन के बाद ऐसा हुआ अधिक हुआ। उसके बाद रुद्राक्ष दिखाई देने लगे। तांत्रिक और बाबा भी नजर आने लगे।
और फिर राजीव गांधी
लेख में राजीव गांधी का जिक्र कर लिखा गया है कि - यह बदलाव राजीव गांधी के अधीन आया था। शाह बानो मामले में 1986 में, कांग्रेस (आई) पार्टी ने,एक कानून पास किया जिसने शाह बानो मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय को उलट दिया। इससे मध्यमार्गी हिंदुओं को झटका लगा।
इसके बाद भाजपा...
इसके बाद भाजपा ने एक नई हवा दी और अचानक धर्मनिरपेक्ष, वोट बैंक राजनीति के नाम पर मुसलमानों के तुष्टीकरण के तर्क का व्यापक मुद्रा में था। राजीव ने बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि स्थल का खोलने की अनुमति दी, मंदिर के शिलान्यास का समर्थन किया और फिर वहां से अपना 1989 अभियान शुरू किया जिसमें राम राज्य लाने की बात कही गई।
इसके बाद कांग्रेस संसद में आधी हो गई
लेख में शेखर ने लिखा है- इसके बाद हुए चुनाव में कांग्रेस को 414 सीटों से भी कम सीटें मिलीं। कांग्रेस ने मुस्लिम वोट गंवा दिया था और भाजपा को वो जगह दे दी। कांग्रेस फिर इससे कभी उबर नहीं पाई। शाहबानो मामला उनकी गलतियों का मूल था, जिसने उनकी छवि एक सेक्युलर नेता के उलट बना दी। यदि राहुल गांधी उस इतिहास को दोहराना चाहते हैं, वह ऐसा करने के लिए स्वतंत्र है। वह एक वयस्क और उनकी पार्टी के मालिक भी।