गुजरात चुनाव परिणाम के 5 सबक, जो भाजपा-कांग्रेस की आंखें खोल देंगे
यह चुनाव जहां भाजपा और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल था, वहीं कांग्रेस ने भी राहुल गांधी के नेतृत्व में इस चुनाव को बेहद मजबूती से लड़ा था।
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नई दिल्ली। गुजरात विधानसभा चुनावों में एक बार फिर 'मोदी-मैजिक' चल गया है। भाजपा फिर से गुजरात में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने जा रही है। कांग्रेस ने हालांकि बीच के रुझानों में अच्छी बढ़त हासिल की, लेकिन उसकी खुशी ज्यादा देर तक कायम नहीं रही। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की जोड़ी ने गुजरात में कमल खिला दिया है। यह चुनाव जहां भाजपा और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल था, वहीं कांग्रेस ने भी राहुल गांधी के नेतृत्व में इस चुनाव को बेहद मजबूती से लड़ा था। गुजरात चुनाव परिणाम भाजपा और कांग्रेस के लिए पांच सबक छोड़ गया है।
1. ब्रांड मोदी को गुजरात ने अभी खारिज नहीं किया
इस चुनाव परिणाम ने साबित कर दिया है कि गुजरात में ब्रांड मोदी अभी भी कायम है। नोटबंदी और जीएसटी को लेकर व्यापारी वर्ग की नाराजगी की खबरों के बीच कहा जा रहा था कि गुजरात में केंद्र सरकार की नीतियों को लेकर भारी असंतोष है, जिसका परिणाम भाजपा को भुगतना पड़ेगा। यह पीएम नरेंद्र मोदी का ही मैजिक है जो गुजरात में मतदाताओं सिर चढ़कर बोला। पाटीदार समाज के आरक्षण आंदोलन को भी भाजपा के खिलाफ बड़े नुकसान में बदलने से पीएम नरेंद्र मोदी ने अपनी चुनावी रणनीति से बचा लिया।
2. राहुल और कांग्रेस एक मजबूत विपक्ष के तौर पर उभरी
गुजरात के चुनाव परिणाम कांग्रेस को भले ही सत्ता ना दिला पाए हों, लेकिन राहुल गांधी के नेतृत्व में पहली बार पार्टी एक मजबूत विपक्ष के तौर पर उभरती हुई नजर आई है। यूपी और उत्तराखंड में मिली करारी शिकस्त के बाद गुजरात में कांग्रेस ने जबरदस्त वापसी की है। हाल ही में हुए राज्यसभा चुनाव में जो कांग्रेस अपने 41 विधायकों को टूटने से बचाने के लिए भारी संघर्ष कर रही थी, उसी पार्टी ने 70 से ज्यादा सीटों पर बढ़त बनाकर अपनी चुनावी रणनीति का लोहा मनवा दिया है।
3. आगामी चुनाव बीजेपी के लिए चुनौतीपूर्ण होंगे
गुजरात में भाजपा को जीत तो मिल गई है लेकिन इस जीत से शायद पार्टी अध्यक्ष अमित शाह उतने खुश ना हों। गुजरात चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले अमित शाह ने दावा किया था भाजपा 150 से ज्यादा सीटें जीतेगी। कांग्रेस की उस समय की हालत को देखते हुए अमित शाह को अपना दावा शायद मजबूत भी लगा हो, लेकिन 100 से कुछ ही ऊपर सीटों पर सिमटने के बाद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष इस बात को अच्छी तरह समझ गए हैं कि आने वाले चुनाव पार्टी के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण होंगे। अगले साल मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने हैं और उसके लिए भाजपा को अपनी रणनीति पर फिर से विचार करना होगा।
4. केवल भावनात्मक मुद्दों पर चुनाव आसान नहीं होगा
गुजरात के चुनाव में जो सबसे अहम बात रही, वो थी कांग्रेस का लगातार मुद्दों पर बात करना। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने शुरुआत से ही गुजरात के विकास, बेरोजगारी, व्यापारियों की नाराजगी, महिलाओं की सुरक्षा और किसानों की समस्या को मुद्दा बनाया। इसके उलट भाजपा लगातार भावनात्मक मुद्दों के सहारे चुनाव लड़ती रही, फिर चाहे वो 'नीच' शब्द पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पलटवार हो या खुद को गुजरात का बेटा बताने की बात हो। शायद यही कारण रहा कि कांग्रेस इस चुनाव में हर दिन मजबूती के साथ खड़ी हुई नजर आई। भाजपा को यह गहराई से समझना होगा कि भावनात्मक मुद्दे हर चुनाव में कारगर सिद्ध नहीं हो सकते।
5. बीजेपी को हराने के लिए साझा विपक्ष को एकजुट होना होगा
कांग्रेस के गुजरात के प्रदर्शन को देखते हुए विपक्ष में कहीं ना कहीं यह बात जरूर और मजबूती से जाएगी कि भाजपा को रोका जा सकता है, बशर्ते विपक्ष एक साथ मिलकर 2019 का लोकसभा चुनाव लड़े। अभी लोकसभा चुनाव में काफी वक्त है और राहुल गांधी के पास एक मजबूत विपक्ष तैयार करने की भी बड़ी जिम्मेदारी है। इस कड़ी में कांग्रेस को गठबंधन के पुराने दलों को जोड़ते हुए नए साथी भी तलाशने होंगे।
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