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GOOD NEWS: सरकारी स्कूलों के दिन बहुरेंगे, अब शिक्षकों के हिस्से होगा सिर्फ अध्यापन!

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बेंगलुरू। सरकारी स्कूलों में तैनात शिक्षकों के सिर से गैर-शैक्षणिक कार्यों का बोझ कम करने के इरादे से सरकार ने स्कूलों में तैनात शिक्षकों को शैक्षणिक कार्यों से मुक्त करने जा रही है, जिसका सीधा फायदा सरकारी स्कूलों में पढ़ने जाने वाले देश के नौनिहालों का होने वाला है। यह खबर उन सरकारी स्कूल के शिक्षकों के लिए भी राहत देने वाली है, जिन्हें अध्यापन से इतर स्कूल बैग, यूनिफॉर्म, स्वेटर और मिड डे मील का मैनेजर बना दिया गया था।

Govt. School

यानी अब अध्यापक मतदान और जनगणना जैसे कार्यों से मुक्त हो जाएंगे और उनके जिम्मे अब सिर्फ बच्चों को पढ़ाने और बच्चों के बेहतर रिजल्ट की जवाबदेही रहेगी, क्योंकि अभी सरकारी स्कूलों में शिक्षकों का सबसे ज्यादा फोकस बच्चों के लिए दोपहर का भोजन (मिड-डे मील) तैयार कराना होता है और अध्यापन सेकेंडरी हो चुका था।

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दरअसल, मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित नई शिक्षा नीति के अंतिम मसौदे में स्कूली शिक्षकों को गैर-शैक्षणिक गतिविधियों से पूरी तरह से अलग करने का सुझाव दिया है, इनमें चुनाव ड्यूटी, वोटर लिस्ट की ड्यूटी, जनगणना की ड्यूटी और सरकारी सर्वेक्षण की ड्यूटी प्रमुख हैं। उम्मीद जताई गई है, कि शिक्षकों के कंधे से गैर-शैक्षणिक कार्यो का भार हटने से सरकारी स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार आएगा, जिससे सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों का भविष्य को संवारने में भी मदद मिलेगी।

Govt. school

गौरतलब है प्रस्तावित नई शिक्षा नीति तैयार करने वाली कमेटी ने अपने प्रारम्भिक मसौदे में भी शिक्षकों को मिड- डे मील की जिम्मेदारी से अलग रखने का सुझाव दिया गया था, लेकिन एचआरडी मंत्रालय ने मिड-डे मील के साथ ही उन सभी गैर-शैक्षणिक कार्यो से शिक्षकों के कंधे से मुक्त रखने का सुझाव दिया है।

यह कदम इसलिए भी अहम है, क्योंकि स्कूलों में शिक्षकों की पहले से ही भारी कमी है और देश भर के स्कूलों में अभी भी 10 लाख पद खाली हैं। यही वजह है कि मंत्रालय ने प्रस्तावित नीति ने इसे प्रमुखता से जगह दी है। माना जा रहा है किप्रस्तावित नीति को अमलीजामा पहनाने के लिए जल्द ही इसे कैबिनेट के सामने पेश कर दिया जाएगा।

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हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को गैर-शैक्षणिक कार्य मसलन, चुनाव ड्यूटी,जनगणना ड्यूटी और सरकारी ड्यूटी से मुक्त होने के बाद किसको यह जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। इसी तरह स्कूलों के गैर-शैक्षणिक कार्य मसलन, मिड डे मील, स्कूल यूनिफॉर्म वितरण, स्कूल बैग वितरण और स्टेशनरी का कार्य किसे सौंपा जाएगा। मिड डे मील का कामकाज सरकार किसी स्वतंत्र एजेंसी के हाथ सौंपी जा सकती है, लेकिन सरकारी स्कूलों अन्य कार्यों के लिए सरकार को सहायकों की नई भर्ती करनी होगी।

उल्लेखनीय है नीति आयोग ने भी स्कूली शिक्षकों को चुनावी कार्य सहित दूसरे गैर-शैक्षणिक कार्यों से मुक्त करने का सुझाव दिया था। हालांकि दिल्ली जैसे कुछ राज्यों ने इस पर गंभीरता दिखाई और शिक्षकों को बीएलओ (बूथ लेवल आफीसर) जैसी जिम्मेदारी से अलग कर दिया है।

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बावजूद इसके ज्यादातर राज्यों में अभी भी शिक्षकों को लंबे चलने वाले चुनाव कार्यो से जोड़कर रखा गया है। पिछले दिनों ही नीति आयोग ने राज्यों से ऐसे शिक्षकों को ब्यौरा मांगा था। साथ ही प्रत्येक जिलों से पूछा था कि क्या वह शिक्षकों के अलावा और किसी को भी चुनावी कार्यो की जिम्मेदारी दे सकता है।

वर्तमान में प्राथमिक सरकारी स्कूलों में शिक्षा का हाल बेहद खराब है, लेकिन शिक्षको के कंधे से गैर-शैक्षणिक कार्यों का बोझ कम होने से स्कूलों में पढ़ने आए छात्रों पर शिक्षकों का ध्यान बढ़ना स्वाभाविक हैं, क्योंकि अभी तक आर टी ई एक्ट के माध्यम से सरकार शिक्षा में सुधार के तमाम प्रयास कर चुकी है।

लेकिन जमीन पर सरकारी स्कूल्स और वहां पढ़ने वाले बच्चों की हालत बेहद दयनीय है। खासतौर से उत्तर प्रदेश की, जहां आज भी सरकारी स्कूलों में डेढ़ लाख से अधिक सहायक अध्यापकों के पद खाली हैं, जिससे एक-दो अध्यापकों के भरोसे स्कूल चलाए जा रहे हैं।

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सरकारी स्कूलों में गैर-शैक्षणिक कार्यों के बोझ में दबे शिक्षक अध्यापन कार्य में चाहकर भी पूरा योगदान नहीं देते हैं, जिससे वहां पढ़ने आए छात्रों का बौद्धिक स्तर निजी स्कूलों के छात्रों की तुलना में बेहद निम्न होता है। यही कारण है कि गरीब और अमीर हर कोई अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए सरकारी स्कूलों की मुफ्त शिक्षा का मोह छोड़कर निजी स्कूलों में मोटे-मोटे फीस देकर शिक्षा दिलाने को मजबूर होते हैं, लेकिन एचआरडी मंत्रालय ने नए मसौदे से एक बार सरकारी स्कूलों की शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ सकती है।

एक अनुमान के मुताबिक ग्रामीण इलाकों में 60 फीसदी से अधिक सरकारी स्कूलों की बागडोर सहायक अध्यापकों के हाथों में होती है, जिनसे वर्तमान में अनेक प्रकार के गैर शैक्षणिक कार्य लिए जा रहे हैं। रोजाना सुबह विद्यालय में मिड डे मील बनवाने के लिए बाजार से सब्जी समेत अन्य सामग्री लाने की जिम्मेदारी सहायक अध्यापक की होती है।

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इसके अतिरिक्त बच्चों को दिए जाने वाली अनेक सुविधाएं जैसे स्कूल यूनिफार्म, जूते, मोजे, बैग, पुस्तकें इत्यादि की खरीद फरोख्त और वितरण की जिम्मेदारी भी सहायक अध्यापक के जिम्मे होती है, ऐसे में सहायक अध्यापन में कितनी गुणवत्ता परोसते होंगे, यह समझा जा सकता है।

वैसे, वर्ष 2018 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शिक्षकों से बीएलओ का काम लिए जाने पर दाखिल एक याचिका पर सुनवाई करते हुए अध्यापकों के पक्ष में फैसला सुनाया था। कोर्ट ने कहा कि टीचरों का प्रमुख कार्य पढ़ाना है और इसके लिए आरटीई एक्ट में प्रावधान भी बनाए गए हैं।

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शिक्षा का अध‍िकार अध‍िनियम 2009 की धारा 27 में भी प्रावधान‍ित है क‍ि श‍िक्षकों को गैर शैक्षण‍िक कार्य में नहीं लगाया जाएगा, जिसमें दस वर्षीय जनगणना, संसद, व‍िधान मंडल, स्‍थानीय न‍िकाय न‍िर्वाचन और आपदा राहत कार्यों में ड्यूटी से छूट शामिल है। मोदी सरकार से इस निर्णय से सरकारी स्कूलों के दिन एक बार बहुरना तय माना जा रहा है।

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English summary
Section 27 of India's Right to Education Act 2009 also provides that teachers will not be engaged in non-academic work, including exemption from duty in the ten-year Census, Parliament, Legislative Assembly, local body election and disaster relief work.
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