
Booker Prize 2022: अपनी लेखनी से यूपी की गीतांजलि श्री ने विश्वपटल पर किया भारत का सीना चौड़ा, जानिए उनको
नई दिल्ली, 27 मई। आज एक बार फिर से विश्वपटल पर भारतीय तिरंगा गर्व के साथ इतराया है क्योंकि आज एक हिंदुस्तानी बेटी ने अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतकर सफलता का नया इतिहास लिखा है। जी हां, यहां बम बात कर रहे हैं लेखिका गीतांजलि श्री की, जिनके उपन्यास 'टॉम्ब ऑफ सैंड' को इस बार अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार से नवाजा गया है।
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आइए विस्तार से जानते हैं अपनी लेखनी से भारत का नाम रौशन करने वाली लेखिका गीतांजलि श्री के बारे में ...

गीतांजलि श्री मूलरूप से उत्तर प्रदेश से हैं
आपको बता दें कि गीतांजलि श्री मूलरूप से उत्तर प्रदेश के मैनपुरी की रहने वाली हैं।उनके पिता सिविल सेवा में थे, जिस वजह से उनकी परवरिश यूपी के कई शहरों में हुई इस दौरान उन्होंने पाया कि हिंदी में बच्चों के पास पढ़ने के लिए किताबें ही नहीं है, जिसकी वजह से उनका रूझान हिंदी लेखनी की ओर हुआ।गीतांजलि श्री ने अब तक चार उपन्यास और बहुत सारी कथा संग्रह की रचना की है।
लोकप्रियता हासिल हुई उपन्यास 'माई' से
उनकी पहली कहानी, "बेल पात्र" (1987), साहित्यिक पत्रिका हंस में प्रकाशित हुई थी और उसके बाद लघु कहानियों का संग्रह अनुगूंज (1991) आया। लेकिन उन्हें लोकप्रियता हासिल हुई उपन्यास 'माई' के अंग्रेजी अनुवाद से, जो कि उत्तर भारतीय मध्यवर्गीय परिवार में महिलाओं की दशा पर आधारित था। 'माई' का अनुवाद नीता कुमार द्वारा अंग्रेजी में भी किया गया था, जिन्हें साहित्य अकादमी अनुवाद पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
'हमारा शहर उस बरस'
श्री का दूसरा उपन्यास 'हमारा शहर उस बरस' था , जो कि बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटनाओं के बाद की स्थिति पर आधारित था 64 वर्ष की गीतांजलि इन दिनों दिल्ली में रहती हैं। उनकी कृतियों को अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, सर्बियन और कोरियन भाषाओं में अनुवाद किया गया है।
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किताब का नाम 'टॉम्ब ऑफ सैंड'
आपको बता दें कि गीतांजलि श्री का उपन्यास हिंदी में ‘रेत समाधि' नाम से पब्लिश हुआ था।जिसे अंग्रेजी में अनुवाद अमेरिकन राइटर-पेंटर डेजी रॉकवेल ने किया और किताब का नाम 'टॉम्ब ऑफ सैंड' रखा। डेजी रॉकवेल इससे पहले भी कई नामचीन लेखकों की किताब का अनुवाद कर चुकी हैं। गौरतलब है कि अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार के लिए 13 किताबों को शार्टलिस्ट किया गया था जिनमें से एक गीतांजलि श्री की किताब थी।

'टॉम्ब ऑफ सैंड' बुकर पुरस्कार
मालूम हो कि अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार के लिए 13 किताबों को शार्टलिस्ट किया गया था जिनमें से एक गीतांजलि श्री की किताब थी 'टॉम्ब ऑफ सैंड' बुकर पुरस्कार जीतने वाली किसी भारतीय भाषा की पहली किताब है और गीतांजलि श्री बुकर पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय लेखिका बन गई हैं।

' मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं अवार्ड जीत सकती हूं'
बुकर पुरस्कार जीतने पर गीतांजलि श्री ने कहा कि 'ये मेरे लिए सपने जैसा है, सच कहूं तो 'मैंने कभी बुकर का सपना नहीं देखा था, मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं अवार्ड जीत सकती हूं, मैं अपनी खुशी को शब्दों में बयां नहीं कर सकती हूं।' मालूम हो कि गीतांजली श्री को ईनाम के तौर पर 60 हजार पाउंड की इनाम राशि मिली है, जिसे वो डेजी रॉकवेल के साथ शेयर करेंगी।'
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लेखनी के क्षेत्र में मिलता है बुकर पुरस्कार
मालूम हो कि नोबेल पुरस्कार के बाद बुकर पुरस्कार को दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा पुरस्कार माना जाता है। यह पुरस्कार लेखनी में अनुपम योगदान देने वालों लेखकों और साहित्यकारों को दिया जाता है। आपको बता दें कि पुरस्कार की स्थापना सन् 1969 में इंग्लैंड में बुकर मैकोनल कंपनी ने की थी। पहला बुकर पुरस्कार अलबानिया के उपन्यासकार इस्माइल कादरे को मिला था। बता दें कि इस अवॉर्ड को जीतने वाले विजेता को पुरस्कार के साथ 60 हजार पाउंड की राशि भी दी जाती है।