DU विवाद के लिए FYUP नहीं, वीसी पदमश्री दिनेश सिंह ज़िम्मेदार
डीयू के वीसी व शिक्षकों में संवाद ही नहीं-
एक टीवी डिबेट व जनसत्ता में छपे लेख में प्रो अपूर्वानंद ने सवाल उठाए कि यूजीसी किसी विश्वविद्याल को दरकिनार कर सीधे कॉलेजों से संवाद करने लगे व कहने लगे कि 'जो उसका आदेश है, वही माना जाए' यह दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने बताया कि डीयू के शिक्षकों-छात्रों को एड्रेस करते हुए वीसी लगभग साढ़े तीन साल से सामने नहीं आए।
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उन्हेांने एक अहम बात कही कि ''दिसंबर 2012 में जब पहली बार FYUP का डीयू ने ढांचा तैयार किया तो उसने तीन डिग्रियों की बात की। पहली डिग्री जो दो साल के बाद मिलनी थी, वो एसोसिएट बैकेलेरिट की थी, दूसरी डिग्री बैकेलेरियट की थी व तीसरी बैकेलेरियट ऑनर्स की थी। यह डिग्रियां यूरोप के स्कूल की थीं। प्रो संदीप कहते हैं कि साढ़े तीन साल में पहली बार वीसी ने शिक्षकों के समूह से मुलाकात की, जब मामले की कलई खुलनी और उधड़नी शुरु हो गई।
टॉप कॉॅलेजों में भी नहीं होता यह आकस्मिक बदलाव-
अभी तक के टॉप रिकॉर्ड विश्वविद्यालयों का रिकॉर्ड खंगालने पर हम पाएंगे कि दुनिया किसी भी विश्वविद्यालय की जिम्मेदार मॉनिटरिंग संस्था ने कभी 3 महीने में पूरा पाठ्यक्रम बदलने का कारनामा नहीं किया। यानि कि एक व्यवस्था के तहत डिग्री में बदलाव की पहल की जाती है, ना कि आनन-फानन व अपना अधिपत्य दिखाते-जताते हुए। प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी ने अपना स्नातक पाठ्यक्रम बदला तो उन्हें लगभग तीन वर्ष लगे। सिंगापुर यूनिवर्सिटी के कुलपति ने जब सुना कि जब तीन महीने में परिवर्तन किया गया, तब वे चौंक गए व बोले हमें परिवर्तन करते हुए दो साल से ज्यादा लग गए थे। तो FYUP अपने स्थान पर ठीक तो नहीं था, पर समाप्ति का यह तरीका बेहद अतार्किक है।
बी.टेक के लिए पर्याप्त शिक्षक नहीं-
शिक्षाविद डॉ हरि गौतम की मानें तो डीयू में जोर-शोर से बीटेक का राग अलापा गया व आज स्थिति पर गौर करें तो हम पांएगे कि संस्थान में पर्याप्त फेकल्टी ही नहीं है तो देश को बेहतरे इंजीनियर दे सके। इसी में अपूर्वानंद जोड़ते हैं कि डीयू को डिप्लोमा, बैचलर्स व ऑनर्स के तीन अलग प्रोग्रामो को डिजाइन करना चाहिए।
जो लोग इसे अमरीकी दबाव के तौर पर ले रहे थे, उस पर शिक्षाविदों का कहना है कि डीयू प्रशासन ने अमरीका के कम्यूनिटी कॉलेज व स्नातक प्रोग्रामों की नकल की व इसे अत्याधुनिक चोले में बांध दिया। सरल शब्दों में समझें तो यहां वॉकेशनल और जेनरल एजूेकेशन में कन्फ्यूजन पैदा किया गया। इसी के साथ डूटा में एक सदस्य का कहना है कि अगर वीसी ने डूटा की मांग पर वक्त विचार किया होता, तो समाधान हमारे सामने हाता।
प्रोफेसरों-शिक्षकों की कट जाती है सैलरी-
जब उनसे सवाल किए गए कि वे स्वयं मीडिया में या छात्रों के परिप्रेक्ष्य में आकर संवाद क्यों नहीं करते तो उन्होंने साफ-साफ कहा कि जब व्यवस्था से हटकर कोई सिद्धांत की बात होती है तो शिक्षकों-प्रोफेसरों की सैलरी तक काट ली जाती है। प्रो अपूर्वानंद खुले शब्दों में कहते हैं कि विरोध करने पर, सही बात सामने रखने पर हमारी तस्वीरें खींची जाती हैं व सैलरी तक काट दी जाती है।