तीन तलाक़ के बारे में चार ज़रूरी बातें जो आपको जाननी चाहिए
लोकसभा से ट्रिपल तलाक़ बिल पास हुआ लेकिन क्या आप इसे ठीक से समझते हैं?
एक झटके में दिए जाने वाले तीन तलाक़ को अपराध घोषित करने वाला बिल लोकसभा से पारित हो गया है.
अब इस पर राज्यसभा में बहस होगी, अगर ये वहां से पास हो गया तो राष्ट्रपति की मंज़ूरी से क़ानून बन जाएगा.
तीन तलाक़ पर कहाँ थी महिलाओं की आवाज़?
तीन तलाक़ 'सवाल सियासत का नहीं'
'इंस्टेट ट्रिपल तलाक़' क्या है?
तलाक़-ए-बिद्दत या इंस्टेंट तलाक़ दुनिया के बहुत कम देशों में चलन में है, भारत उन्हीं देशों में से एक है. एक झटके में तीन बार तलाक़ कहकर शादी तोड़ने को तलाक़-ए-बिद्दत कहते हैं.
ट्रिपल तलाक़ लोग बोलकर, टेक्स्ट मैसेज के ज़रिए या व्हाट्सऐप से भी देने लगे हैं.
इस मामले में ढेर सारी मुसलमान महिलाओं की अर्ज़ियां आने के बाद इस साल अगस्त के महीने में सुप्रीम कोर्ट ने तलाक़-ए-बिद्दत को संविधान के विरुद्ध और ग़ैर-क़ानूनी घोषित कर दिया.
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भारत में सभी मुसलमान ट्रिपल तलाक़ को मानते हैं?
एक झटके में तीन बार तलाक़ बोलकर शादी तोड़ने का चलन देश भर में सुन्नी मुसलमानों में है लेकिन सुन्नी मुसलमानों के तीन समुदायों ने तीन तलाक़ की मान्यता ख़त्म कर दी है.
हालांकि देवबंद के दारूलउलूम को मानने वाले मुसलमानों में तलाक़-ए-बिद्दत अब भी चलन में है और वे इसे सही मानते हैं.
इस तरीक़े से कितनी मुसलमान महिलाओं को तलाक़ दिया गया इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा मौजूद नहीं है.
अगर एक ऑनलाइन सर्वे की बात करें तो एक प्रतिशत से भी कम महिलाओं को इस तरह तलाक़ दिया गया, हालांकि सर्वे का सैम्पल साइज़ बहुत छोटा था.
भारत के ग्रामीण इलाक़ों में तीन तलाक़ का चलन शहरों के मुक़ाबले ज़्यादा है.
तलाक़ तलाक़ तलाक़, क्यों है बवाल - BBC News हिंदी
ट्रिपल तलाक़ के बारे में क्या कहता है क़ुरान?
क़ुरान के मुताबिक़, अगर एक मुसलमान आदमी तलाक़ की प्रक्रिया शुरू करता है तो इसे तलाक़-ए-अहसन कहते हैं, यह प्रक्रिया तीन महीने चलनी चाहिए ताकि इस अवधि में पति-पत्नी अपनी असहमति दूर कर सकें और रिश्ते को ठीक करने की कोशिश कर सकें.
मुसलमान महिला भी तलाक़ की मांग कर सकती है जिसे 'खुला' कहते हैं. अगर पति तलाक़ देने से इनकार करता है तो पत्नी काज़ी के पास जा सकती है, इस्लामी न्याय व्यवस्था के तहत शादी तोड़ सकती है, इस प्रक्रिया को 'फश्क़-ए-निक़ाह' कहते हैं.
शादी के वक़्त निक़ाहनामे का भी प्रावधान है, एक औरत निक़ाह के समय ही तलाक़ की शर्तें और प्रक्रिया निक़ाहनामे में शामिल करा सकती है जिसे 'तफ़वीद-ए-तलाक़' कहा जाता है.
इसी तरह निक़ाह से पहले मेहर की रक़म तय की जाती है, तलाक़ देने पर पति को ये रक़म अदा करनी पड़ती है.
तीन तलाक़- जो बातें आपको शायद पता न हों
ट्रिपल तलाक़ को अपराध बनाने वाले बिल पर विवाद क्या है?
मुस्लिम महिला (वैवाहिक अधिकार संरक्षण) बिल तीन तलाक़ को क़ानूनी अपराध बनाता है, तलाक़-ए-बिद्दत के मामले में पति को तीन साल तक की सज़ा हो सकती है.
इस बिल में तलाक़ के बाद पत्नी को गुज़ारा भत्ता देने की भी बात कही गई है.
कुछ महिला संगठनों का कहना है कि इससे मुस्लिम महिलाओं की कोई मदद नहीं होगी क्योंकि पति जेल जाने की स्थिति में गुज़ारा भत्ता कैसे देगा?
तीन तलाक़: जो मांगा वो मिला ही नहीं!
इन महिलाओं का कहना है कि औरत-मर्दों के बीच बराबरी की दिशा में बढ़ना चाहिए, न कि तलाक़ को अपराध की श्रेणी में डालना चाहिए.
एक दूसरा तर्क ये भी है कि तीन तलाक़ अगर गुनाह बना दिया जाएगा तो मुसलमान पुरुष अपनी पत्नियों को तलाक़ दिए बिना ही छोड़ देंगे, ऐसी स्थिति महिलाओं के लिए और बुरी होगी.
यह भी कहा जा रहा है कि नए क़ानून की ज़रूरत नहीं है क्योंकि पहले से ही बहुत सारे क़ानून मौजूद हैं जो विवाहित महिलाओं को अन्याय से बचाते हैं.