क्विक अलर्ट के लिए
अभी सब्सक्राइव करें  
क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

'नेपाल-भारत में रोटी-बेटी का रिश्ता ख़त्म, हम भारत के मुसलमानों से भी बदतर हाल में'

नेपाल के पूर्व उपराष्ट्रपति परमानंद झा ने बीबीसी हिन्दी से कहा कि भारत के मुसलमानों से भी बदतर हालत नेपाल में मधेसियों की है. नेपाल के कई मधेस नेता अपनी तुलना भारत के मुसलमानों से क्यों कर रहे हैं.

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News
नेपाल के पूर्व उपराष्ट्रपति परमानंद झा
BBC
नेपाल के पूर्व उपराष्ट्रपति परमानंद झा

दोपहर के 12 बज रहे हैं. काठमांडू स्थित नेपाली कांग्रेस के संसदीय दल कार्यालय के कैंटीन में लोग खा पी रहे हैं.

हर कोई नेपाली में बात कर रहा है. मैं अपने नेपाली दोस्तों से हिन्दी में बात कर रहा हूँ. पास की टेबल के सामने बैठे सरोज मिश्रा बार-बार हमलोगों की ओर देख रहे हैं. ऐसा लगा कि वह कुछ कहना चाह रहे हैं.

मैंने उनसे पूछा कि आप कुछ कहना चाह रहे हैं? सरोज मिश्रा ने कहा, ''आपलोग मीडिया से हैं? मीडिया से हैं तो हमलोगों की बात को भी जगह दिया कीजिए. मधेसियों की यहाँ कोई नहीं सुनता है. मधेसियों के नेता कायर हैं. वे काठमांडू आकर अपने फ़ायदे के लिए हमारे हितों से समझौता कर लेते हैं. हमने उपेंद्र यादव पर बहुत भरोसा किया, लेकिन उन्होंने ग़द्दारी की. जो हाल आपके देश में मुसलमानों का है, वैसा ही नेपाल में मधेसियों का है.''

हिन्दी में शपथ पर विवाद


2008 में नेपाल पहली बार संघीय लोकतांत्रिक गणतंत्र बना. इस गणतांत्रिक नेपाल के पहले राष्ट्रपति रामबरन यादव और उपराष्ट्रपति परमानंद झा बने.

दोनों मधेसी थे. रामबरन यादव धनुसा और परमानंद झा सप्तरी ज़िले के हैं. नेपाल के ये दोनों ज़िले बिहार से लगे हैं.

परमानंद झा नेपाल के सुप्रीम कोर्ट में जज भी थे. उन्होंने उपराष्ट्रपति पद की शपथ हिन्दी में ली. इसे लेकर नेपाल में काफ़ी बवाल हुआ था. काठमांडू में हिंसक विरोध-प्रदर्शन हुए थे. यहाँ तक कि परमानंद झा के घर में बम विस्फोट भी किया गया था. मामला सुप्रीम कोर्ट में गया और परमानंद झा की हिन्दी में शपथ को अमान्य क़रार दिया गया.

पूरे विवाद पर परमानंद झा ने बीबीसी हिन्दी से कहा, ''तब सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस मीन बहादुर रायमांझी थे. उन्होंने ही हिन्दी में मेरी शपथ को अमान्य क़रार दिया. फ़ैसला चार जजों की बेंच ने दिया था और इसमें एक मधेसी जज भी थे. एक सीधा तर्क होता है और एक टेढ़ा तर्क. मेरी शपथ को अमान्य करने में टेढ़े तर्क का इस्तेमाल किया गया.''

''अभी इस देश में भाषा को लेकर कई तरह की बातें चल रही हैं. तब सप्तरी ज़िले की नगरपालिका और ज़िला प्रशासन ने कहा था कि यहाँ मैथिली भाषा को आगे बढ़ाया जाएगा. दूसरी ओर काठमांडू की महानगरपालिका ने कहा कि नेपाली भाषा का प्रयोग करेंगे. तब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को दबा दिया. तब भाषा की नीति यह थी कि नेपाली के आलावा कोई और भाषा इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं.''

परमानंद झा कहते हैं, ''मेरे मामले में कोई तर्क नहीं था. तर्क कौन देखता है. सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला दिया कि या तो आप नेपाली में शपथ लीजिए या तो फिर निष्क्रिय रहिए. निष्क्रिय रहने का मतलब है कि उपराष्ट्रपति के अधिकार और सुविधा से वंचित रहना था. मैंने कहा कि नेपाली भाषा में शपथ नहीं लूंगा और दूसरा विकल्प चुना. निष्क्रिय बैठ जाने के बाद यहाँ की संसद यानी प्रतिनिधि सभा के सभी दलों ने मिलकर नेपाल के अंतरिम संविधान में सातवां संशोधन किया. इस संशोधन में व्यवस्था की गई कि संवैधानिक पदों पर लोग अपनी मातृभाषा में शपथ ले सकते हैं. इसके बाद मैंने अपनी मातृभाषा मैथिली में शपथ ली. उसके बाद मैं डिफ़ैक्टो उपराष्ट्रपति बन गया.''

नेपाल के पूर्व उपराष्ट्रपति कहते हैं, ''2011 में नेपाल में जनगणना हुई थी. तब यहाँ कुल 123 भाषा बोलने वाले लोग थे. इन 123 भाषाओं में हिन्दी 14वें नंबर पर थी. 10 साल बाद फिर से जनगणना हुई है, लेकिन उसका डेटा अभी नहीं आया है. अब इसके परिणाम में देखा जाएगा कि हिन्दी किस स्थान पर है. मैथिली, भोजपुरी और अवधी वाले हिन्दी बोलते हैं, लेकिन इनकी मातृभाषा तो हिन्दी नहीं है. अब हम हिन्दी के लिए कितनी लड़ाई करेंगे. नरेंद्र मोदी जी आए हुए थे तो हम दोनों हिन्दी में ही बात कर रहे थे. अगर हममें आत्मबल है तो हिन्दी बोल सकते हैं. यहाँ पर लाखों आदमी है, जो नेपाली नहीं जानते हैं.''

ये भी पढ़िए:-नेपाली पीएम के भारत दौरे के बाद अब क्यों उठ रहे हैं सवाल

भारत के मुसलमानों से तुलना क्यों?


परमानंद झा से मैंने पूछा कि सरोज मिश्रा ने मधेसियों की तुलना भारत के मुसलमानों से क्यों की? यह तुलना कितनी सही है?

जवाब में परमानंद झा कहते हैं, ''हमारा हाल भारत के मुसलमानों से भी गया गुज़रा है. भारत में आप मुसलमान को दो नंबरी नागरिक तो नहीं बोलते हैं. लेकिन नेपाल में मधेसी दो नंबरी नागरिक हैं. अब भी नागरिकता को लेकर विवाद है. राष्ट्रपति जी ने बिल को वापस कर दिया है. सरोज मिश्रा ने तो फिर भी कुछ कम कहा जबकि हमारा हाल भारत के मुसलमानों से भी बदतर है.''

अभी नेपाल में नागरिकता का सवाल सबसे बड़ा मुद्दा है. मधेसियों के बीच नागरिकता के सवाल पर सबसे ज़्यादा बहस है.

पहले कोई नेपाली पुरुष भारतीय महिला से शादी करता था तो वैवाहिक संबंध के आधार पर पत्नी को नागरिकता मिल जाती थी, लेकिन 2015 के बाद ऐसा नहीं हो रहा है.

अब नेपाल में वंशानुगत नागरिकता की बात की जा रही है. 2015 में नया संविधान लागू होने के बाद नागरिकता में एक और बदलाव हुआ.

पहले जिन महिलाओं को वैवाहिक संबंध के आधार पर नागरिकता मिलती थी, उन्हें सारे अधिकार भी मिलते थे लेकिन 2015 के बाद वे अधिकार छीन लिए गए. अब जिस महिला का मायका भारत में है और उसे वैवाहिक संबंध के अधार पर नागरिकता मिली है पर उसे सारे अधिकार नहीं मिलते.

जैसे सीता देवी यादव नेपाली कांग्रेस की नेता हैं. वह मधेस में नेपाली कांग्रेस की बड़ी नेता हैं, लेकिन उनका मायका भारत में है. इस वजह से नेपाल की नागरिक होने के बावजूद सीता देवी यादव अब नेपाल के किसी प्रांत की मुख्यमंत्री नहीं बन सकती हैं.

ये भी पढ़िए:-नेपाल-भारत के कड़वे होते रिश्तों के बीच किधर हैं मधेशी?

मधेसी
Getty Images
मधेसी

नए संविधान में भेदभाव


2015 के पहले ऐसा नहीं था. नेपाल में नागरिकता को लेकर यहाँ की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी के पास एक विधेयक लंबित है. यह विधेयक पास हो गया तो जिन महिलाओं का मायका भारत या विदेश में है, उन्हें वैवाहिक संबंध के आधार पर तत्काल नागरिकता मिल जाएगी. हालाँकि सारे अधिकार तब भी नहीं मिलेंगे.

इसके बावजूद इस विधेयक का विरोध हो रहा है. पहाड़ियों का कहना है कि विवाह के बाद एक तय समय तक कूलिंग पीरियड मिलना चाहिए और उसके बाद नागरिकता पर विचार करना चाहिए.

लेकिन सीता देवी यादव के बच्चों का क्या होगा? क्या उनके बच्चे को सारे अधिकारों के साथ नागरिकता मिलेगी?

राष्ट्रपति के पास लंबित विधेयक अगर पास हो जाता है तो सीता देवी यादव के बच्चों को सारे अधिकार के साथ नागरिकता मिलेगी. नए विधेयक में इसे अंगीकृत नागरिकता कहा गया है. लेकिन यह विधेयक पास नहीं होता है तो सीता देवी यादव के बच्चे भी कई पदों पर नहीं पहुँच सकते हैं. नए संविधान के मुताबिक़ कुछ पदों पर वंशानुगत नागरिकों को ही पहुँचने का अधिकार है.

मधेसी नागरिकता के इस प्रावधान का विरोध कर रहे हैं. उनका तर्क है कि भारत के साथ नेपाल राज्य बाद में बना लेकिन समाज पहले से ही था. नेपाल में अभी व्यवस्था है कि जो पिता की नागरिकता होगी वही बच्चों की नागरिकता होगी लेकिन जिन बच्चों के पिता के पता नहीं हैं, उनका क्या होगा?

ये भी पढ़िए:-नेपाल में ओली की जगह लेने वाले शेर बहादुर देउबा को जानिए

विद्या देवी भंडारी
Reuters
विद्या देवी भंडारी

भारतीय और पाकिस्तानी महिला में अब कोई अंतर नहीं


नेपाल के जाने-माने चिंतक और बुद्धिजीवी सीके लाल कहते हैं, ''नेपाल में सांस्कृतिक और राजनीतिक नागरिकता के बीच बहस चल रही है. राष्ट्रपति के पास नागरिकता को लेकर जो बिल है, वो पास हो गया तो वैवाहिक संबंध के आधार पर तत्काल नागरिकता मिल जाएगी, लेकिन फिर भी सारे अधिकार नहीं मिलेंगे. अब नए संविधान के अनुसार, नेपाल में वैवाहिक संबंध के आधार पर जो नागरिता मिलती है, उसमें भारत की महिला हो या पाकिस्तान की या फिर चीन की कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा. भारत से जो 'रोटी-बेटी के रिश्ते' की बात कही जाती थी, अब वह कहावतों में है. ज़मीन पर अब यह ख़त्म हो चुका है. नागरिकता के डर से लोग भारत में शादियां नहीं कर रहे हैं.''

सीके लाल कहते हैं, ''भारत के संविधान में मुसलमानों को सारे अधिकार मिले हुए हैं, लेकिन व्यवहार में नहीं है जबकि नेपाल में मधेसियों के साथ संविधान में ही भेदभाव है. जैसे भारत में कोई मुसलमानों की नहीं सुनता है, वैसे ही नेपाल में कोई मधेसियों की नहीं सुनता है. जैसे श्रीलंका में कोई तमिलों और पाकिस्तान में हिन्दुओं की नहीं सुनता है, वैसे ही नेपाल में मधेसियों के साथ भेदभाव होता है.''

ये भी पढ़िए:-नेपाल के नागरिकता संशोधन प्रस्ताव से भारत में क्या बदलेगा?

मधेसियों से भेदभाव को लेकर परमानंद झा एक और पहलू का उल्लेख करते हैं. वह कहते हैं, ''मधेस के भोजपुरी, मैथिली और अवधी भाषा-भाषी लोगों को लोकसेवा आयोग की परीक्षा नेपाली भाषा में देनी होती है. जिसने ज़िंदगी भर अवधी, भोजपुरी और मैथिली भाषा बोली है, उसे परीक्षा नेपाली में देनी होगी. जो जन्म से ही नेपाली बोलता है वो तो भाषा के आधार पर आगे निकल जाएगा. दोनों में अंतर होगा. नेपाली भाषा-भाषी लोगों को विशेष सुविधा है. सीधे पता नहीं चलता है कि क्या भेदभाव है, लेकिन भेदभाव होता है. इस सरकार को चाहिए कि भाषा में विकल्प दे.''

'न भारत सुनता है न नेपाल'


परमानंद झा कहते हैं, ''हमारी बात भारत भी नहीं सुनता है और नेपाल की सरकार तो सुनती ही नहीं है. भारत को कोई काम करवाना है तो वह कम्युनिस्ट नेताओं से करवाता है और कम्युनिस्ट नेता सब पहाड़ी हैं. मैंने भारतीय राजदूतों को भी इस मामले में कई बार कहा है. हमें अब सरहद पार होने में दुनिया भर की औपचारिकताएं पूरी करनी पड़ती हैं. 'बेटी रोटी का रिश्ता' अब बीते ज़माने की बात हो गई है. अब कोई नेपाली डर से भारत में शादी नहीं करता है. समझ लीजिए कि यह रिश्ता ख़त्म हो चुका है. आने वाले समय में स्थिति और बिगड़ेगी ही.''

परमानंद झा कहते हैं, ''भारत जो भी विकास करता है वो पहाड़ों में करता है. हम कब तक भारत के पीछे भागते रहेंगे. अब वहां कोई महात्मा गांधी तो है नहीं. मधेस में इन्होंने एक गुलाटी राजमार्ग बनाया जबकि पहाड़ों में महेंद्र राजमार्ग 60 साल पहले बना दिया था. भारतीय फौज में ये गोरखाओं को लेंगे लेकिन मधेसियों को नहीं लेंगे. राणा और शाह शासन में सब पहाड़ी ही काम करते थे. कोई मधेसी तो काम करता नहीं था. इसलिए शासन में इन्ही लोगों का दबदबा रहा. मधेसियों की तो यहाँ एंट्री भी नहीं थी. 2014 में नरेंद्र मोदी के भारत में आने से नेपाल से रिश्ते सुधरने की उम्मीद थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ. मैं इस सरकार के पूछना चाहता हूँ कि उन्होंने मधेसियों के लिए क्या किया?''

कंचन झा नेपाल के तराई के हैं. वह लंबे समय से देश विदेश की न्यूज़ वेबसाइट में लिखते रहे हैं. अब वह नेपाली कांग्रेस में हैं. मधेसियों से भेदभाव को लेकर वह कहते हैं, ''भारत में हमारे सगे संबंधी हैं और हम पहाड़ियों से अलग दिखते हैं तो यहाँ हमें अक्सर सुनने को मिलता है कि भारत में चले जाओ. जैसे भारत में मुसलमानों को कहा जाता है कि पाकिस्तान चले जाओ. भारत के मुसलमानों के संबंध भी पाकिस्तान में हैं तो क्या वे पाकिस्तानी हो गए? जैसे भारत के राष्ट्रवाद में पाकिस्तान से नफ़रत एक अहम हिस्सा बन गया है, उसी तरह नेपाली राष्ट्रवाद में भी भारत और हिन्दी विरोधा भावना को अहम स्थान मिल चुका है.''

ये भी पढ़िए:-नेपाल में क्यों बढ़ रही है भारत विरोधी भावना? चीन में बढ़ी दिलचस्पी

नेपाली राष्ट्रवाद


कंचन झा कहते हैं, ''आपके यहाँ 2014 के बाद से 'एक देश श्रेष्ठ देश' का नारा चल रहा है और हमारे यहाँ भी 'एक देश एक नरेश' का नारा पहले से ही रहा है. भारत में 'एक देश एक भाषा' वाला राष्ट्रवाद ज़ोर पकड़ता है लेकिन वहाँ ऐसा हो नहीं पा रहा है लेकिन नेपाल इस रास्ते पर मज़बूती से बढ़ रहा है.''

हालांकि केपी शर्मा ओली की सरकार में विदेश मंत्री रहे प्रदीप ज्ञवाली मधेसियों से भेदभाव की बात को ख़ारिज करते हैं. उनसे पूछा कि मधेसी अपनी तुलना भारत के मुसलमानों से क्यों कर रहे हैं? इस पर उन्होंने कहा, ''जो ऐसा कह रहे हैं, वे निष्पक्ष नहीं हैं. मैं इसे पूरी तरह से ख़ारिज करता हूँ.''

नेपाल के पहाड़ी कहते हैं कि मधेसियों को अपनी समस्या के लिए भारत की ओर नहीं देखना चाहिए. इनका कहना है कि भारत को लेकर नेपाल में एक भावना है कि वह नेपाल के साथ मनमानी करता है. ऐसे में मधेसी भारत से सहानुभूति रहते हैं तो वे भी निशाने पर आ जाते हैं.

भारत में नेपाल के राजदूत रहे रंजित राय कहते हैं कि नेपाल भारत के लिए सबसे जटिल देश है. रंजित राय कहते हैं नेपाल में कम्युनिस्ट नेताओं के कारण भारत विरोधी भावनाओं को हवा मिली है.

शेर बहादुर देउबा की सरकार में रक्षा मंत्री रहे मिनेंद्र रिजाल से पूछा कि मधेसी भारत के मुसलमानों से अपनी तुलना क्यों कर रहे हैं?

इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ''मधेस नेता राजेंद्र महतो ने एक बार अपनी हार के बाद कहा था कि उनकी हार भारत की हार है. जैसे शोएब मलिक ने टी-20 वर्ल्ड कप में हार के बाद दुनिया के मुसलमानों से माफ़ी मांगी थी. इन दोनों टिप्णियों को समझने की ज़रूरत है. राजेंद्र महतो क्या ख़ुद को भारत का मानते हैं? उसी तरह क्या शोएब मलिक दुनिया भर के मुसलमानों के प्रवक्ता थे? नेपाल के मधेसी अपनी समस्या के लिए भारत की ओर ना देखें यही उनके हित में है.''

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Former Vice President of Nepal Parmanand Jha interview
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X