2021 का चुनावी रण : पूरब में मोदी तो दक्षिण में राहुल की मोर्चाबंदी
नई दिल्ली। 2021 के सियासी रण के लिए अभी रणभेरी बजने में कुछ देर है। लेकिन जंग की तैयारी तेज है। शनिवार को नरेन्द्र मोदी(Narendra modi) और राहुल गांधी(Rahul Gandhi) ने अपनी- अपनी मंजिलों की तरफ कदम बढ़ाये। मोदी ने पूरब की तरफ कूच किया तो राहुल ने दक्षिण ने दक्षिणी कमान को संभाला। शनिवार से तमिलनाडु में राहुल गांधी का चुनावी प्रचार क्या कांग्रेस के लिए संजीवनी बनेगा ?
पूरब और दक्षिण
अप्रैल-मई में पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुदुचेरी में चुनाव होने हैं। असम में भाजपा की सरकार है। पश्चिम बंगाल में वह दूसरे नम्बर की पार्टी बन चुकी है। अब वह यहां सरकार बनाने का सपना देख रही है। पुरवइया के झोंके भाजपा की उम्मीदों की खिड़की पर दस्तक दे रहे हैं। सो भाजपा के आस का पंछी उड़ चला पूरब की ओर। नरेन्द्र मोदी असम और पश्चिम बंगाल के दौरे पर पहुंचे। अमित शाह अपने सरकारी कार्यक्रम के लिए असम और मेघालय पहुंचे। राहुल गांधी चूंकि केरल के वायनाड से सांसद हैं इसलिए उनकी उम्मीदें दक्षिण से अधिक जुड़ी हुई हैं। केरल में लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट की सरकार है। केरल से सांसद होने के नाते राहुल गांधी के लिए जरूरी है कि वे राज्य में कांग्रेस की हैसियत बढ़ाएं। तमिलनाडु में भी कांग्रेस विपक्ष में है। अगर उसे डीएमके साथ मिल कर सत्ता में वापसी करनी है तो जोर लगाना होगा। केन्द्र शासित प्रदेश पुद्दूचेरी में कांग्रेस और डीएमके की सरकार को बचाने की जिम्मेदारी भी राहुल गांधी पर है। सो सियासत के पंछी अपना-अपना दाना चुगने के लिए माकूल ठिकाने पर उड़ चले।
असम में भाजपा की उम्मीदें
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर नरेन्द्र मोदी पहले असम औऱ फिर पश्चिम बंगाल पहुंचे। उन्होंने असम के मूल निवासियों को जमीन का अधिकार दे कर एक बड़े वर्ग को भाजपा से जोड़ने की कोशिश की। 2016 के चुनाव में किसी दल को यहां बहुमत नहीं मिला था। विधानसभा की 124 सीटों में से भाजपा 61 पर आ कर ही ठहर गयी थी। उसे बहुमत से दो सीटें कम मिली थी। भाजपा ने अपने सहयोगी असम गण परिषद के 14 और बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट के 12 विधायकों के समर्थन से सरकार बनायी थी। भाजपा के सर्वानंद सोनोवाल मुख्यमंत्री बने। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) की वजह असम में भाजपा के लिए मुश्किल स्थिति पैदा हो गयी है। इस मुद्दे पर सहयोगी असम गण परिषद जनवरी 2019 में भाजपा सरकार से बाहर निकल गयी थी। लेकिन बाद में अगप ने भाजपा के साथ मिल कर लोकसभा चुनाव लड़ा था। ऊपरी असम के आठ जिलों में सीएए के खिलाफ उग्र प्रदर्शन हुए थे। मुख्यमंत्री सोनोवाल भी ऊपरी असम के ही रहने वाले हैं। असम की विपरित परिस्थितियों को साधने के लिए ही नरेन्द्र मोदी और अमित शाह अगग-अलग कार्यक्रमों में असम पहुंचे। 2021 में भाजपा गठबंधन को टक्कर देने के लिए कांग्रेस ने वाम दलों समेत छह पार्टियों के साथ तालमेल किया है।
पश्चिम बंगाल में कमल की स्थिति
भाजपा की राजनीति में अभी पश्चिम बंगाल का महत्व सबसे ज्यादा है। बंगाल विजय के बाद ही वह पूर्वी भारत में अपना पांव मजबूती से जमा सकती है। इसके लिए वह लगातार मेहनत कर रही है। केवल चार साल में ही भाजपा बंगाल की दूसरी सबसे बड़ी ताकत बन गयी है। नेता जी सुभाष चंद्र बोस वैसे तो पूरे भारत के लिए परम आदरणीय हैं लेकिन बंगाल के लोग उनके प्रति विशेष श्रद्धा रखते हैं। भाजपा उन अप्रिय प्रसंगों को याद दिला रही है जो कांग्रेस ने नेता जी के साथ किया था। ममता बनर्जी भी कभी कांग्रेस का हिस्सा थीं। भाजपा और तृणमूल में नेताजी को अपना बताने की होड़ चल रही है। 2016 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को केवल 3 सीटें मिलीं थीं। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों में उसे 123 विधानसभा सीटों पर बढ़त मिली थी। बहुमत के लिए 148 सीटें चाहिए। लोकसभा चुनाव के प्रदर्शन से उत्साहित भाजपा ने 2021 के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।
केरल में राहुल की साख का सवाल
केरल, तमिननाडु और पुदुचेरी में होने वाले विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए बहुत अहम हैं। राहुल गांधी ने 2019 का लोकसभा चुनाव दो सीटों से लड़ा था। अमेठी में वे भाजपा की स्मृति ईरानी से हार गये थे जब कि केरल की वायनाड सीट पर वे रिकॉर्ड मतों के अंतर सी जीते थे। राहुल गांधी को सात लाख से अधिक वोट मिले थे। उन्हें चार लाख से अधिक वोटों से विजय मिली थी। केरल में अभी सीपीएम के नेतृत्व में वाम जनतांत्रिक मोर्चा की सरकार है। पी विजयन मुख्यमंत्री हैं। 2016 के चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट को 47 सीटें मिलीं थीं। राहुल गांधी को केरल में न केवल अपने लिए बल्कि कांग्रेस के लिए भी ताकत दिखानी होगी। केरल में सरकार बनाने के लिए 71 सीटों की दरकार होगी। अब राहुल गांधी पर एक बड़ी जिम्मेदारी है कि वे कैसे कांग्रेस गठबंधन को सत्ता में वापस लाते हैं।
तमिलनाडु और पुदुचेरी
तमिलनाडु के पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने डीएमके के साथ समझौता किया था। लेकिन बहुमत नहीं मिल पाया था। एआइएडीमके सरकार बनी थी। तमिलनाडु में कांग्रेस के कमजोर प्रदर्शन के कारण ही डीएमके सरकार नहीं बना पायी थी। डीएमके को 89 सीटों पर जीत मिली थी जब कि कांग्रेस को केवल 8 सीटें ही मिल पायीं थीं। इस कांग्रेस पर दवाब है कि वह अपना प्रदर्शन सुधारे ताकि 118 का जादुई आंकड़ा जुटाया जा सके। केन्द्रशासित पुदुचेरी में कांग्रेस कांग्रेस की सरकार तो है लेकिन वह डीएमके के समर्थन से बनी थी। 30 सदस्यों वाले सदन में कांग्रेस को केवल 15 सीट मिली थी। डीमके के दो विधायकों के साथ कांग्रेस ने सरकार बनायी थी। क्या राहुल गांधी इस बार कांग्रेस को अकेले बहुमत दिला पाएंगे ?
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