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क्या जीडीपी के बारे में सबकुछ जानते हैं?

एक छोटा सा आंकड़ा कैसे बताता है देश की आर्थिक सेहत. कैसे होती है गणना.

By BBC News हिन्दी
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औद्योगिक गतिविधियां
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औद्योगिक गतिविधियां

ख़बरों से लेकर आम आदमी के बीच अक्सर एक शब्द खूब चर्चा में होता है और वो है जीडीपी. पर जीडीपी (ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट) यानी सकल घरेलू उत्पाद है क्या बला?

जीडीपी किसी भी देश की आर्थिक सेहत को मापने का सबसे ज़रूरी पैमाना है. जीडीपी किसी ख़ास अवधि के दौरान वस्तु और सेवाओं के उत्पादन की कुल क़ीमत है. भारत में जीडीपी की गणना हर तीसरे महीने यानी तिमाही आधार पर होती है. ध्यान देने वाली बात ये है कि ये उत्पादन या सेवाएं देश के भीतर ही होनी चाहिए.

भारत में कृषि, उद्योग और सर्विसेज़ यानी सेवा तीन प्रमुख घटक हैं जिनमें उत्पादन बढ़ने या घटने के औसत के आधार पर जीडीपी दर होती है.

ये आंकड़ा देश की आर्थिक तरक्की का संकेत देता है. आसान शब्दों में, अगर जीडीपी का आंकड़ा बढ़ा है तो आर्थिक विकास दर बढ़ी है और अगर ये पिछले तिमाही के मुक़ाबले कम है तो देश की माली हालत में गिरावट का रुख़ है.

तो जीडीपी का आकलन होता कैसे है?

फ़ाइल फोटो
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जीडीपी को दो तरह से पेश किया जाता है. क्योंकि उत्पादन की लागत महंगाई के साथ घटती-बढ़ती रहती है, यह पैमाना है कॉस्टेंट प्राइस. इसके तहत जीडीपी की दर और उत्पादन का मूल्य एक आधार वर्ष में उत्पादन की कीमत पर तय होता है.

मसलन अगर आधार वर्ष 2010 है तो उसके आधार पर ही उत्पादन का मूल्य में बढ़त या गिरावट देखी जाती है.

जीडीपी को जिस दूसरे तरीके से पेश किया जाता है वो है करेंट प्राइस. इसके तहत उत्पादन मूल्य में महंगाई दर भी शामिल होती है.

केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय यानी सीएसओ उत्पादन और सेवाओं के मूल्यांकन के लिए एक आधार वर्ष यानी बेस ईयर तय करता है. इस बेस ईयर में क़ीमतों को आधार बनाकर उत्पादन और सेवाओं की क़ीमत देखी जाती है और उसी हिसाब से तुलनात्मक वृद्धि या गिरावट आंकी जाती है.

कॉस्टेंट प्राइस के आधार पर जीडीपी की गणना इसलिए की जाती है ताकि इस आंकड़े को महंगाई के उतार-चढ़ाव से अलग रखकर मापा जा सके.

बेस ईयर का फंडा

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भारत की कॉस्टेंट प्राइस गणना का आधार वर्ष अभी 2011-12 है.

मसलन अगर 2011 में देश में सिर्फ़ 100 रुपये की तीन वस्तुएं बनीं तो कुल जीडीपी हुई 300 रुपये. और 2017 तक आते-आते इस वस्तु का उत्पादन दो रह गया लेकिन क़ीमत हो गई 150 रुपये तो नॉमिनल जीडीपी 300 रुपये हो गया. लेकिन असल में हुआ क्या, भारत की तरक्की हुई कि नहीं?

यहीं बेस ईयर का फॉर्मूला काम आता है. 2011 की कॉस्टेंट कीमत (100 रुपये) के हिसाब से वास्तविक जीडीपी हुई 200 रुपये. अब साफ़-साफ़ देखा जा सकता है कि जीडीपी में गिरावट आई है.

सीएसओ देशभर से उत्पादन और सेवाओं के आंकड़े जुटाता है इस प्रक्रिया में कई सूचकांक शामिल होते हैं, जिनमें मुख्य रूप से औद्योगिक उत्पादन सूचकांक यानी आईआईपी और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक यानी सीपीआई हैं.

फ़ाइल फोटो
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सीएसओ विभिन्न केंद्रीय और राज्य एजेंसियों से समन्वय स्थापित कर आंकड़े एकत्र करता है. मसलन, थोक मूल्य सूचकांक यानी डब्ल्यूपीआई और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक यानी सीपीआई की गणना के लिए मैन्युफैक्चरिंग, कृषि उत्पाद के आंकड़े उपभोक्ता मामलों का मंत्रालय जुटाता है.

इसी तरह आईआईपी के आंकड़े वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत आने वाला विभाग जुटाता है.

सीएसओ इन सभी आंकड़ों को इकट्ठा करता है फिर गणना कर जीडीपी के आंकड़े जारी करता है.

मुख्य तौर पर आठ औद्योगिक क्षेत्रों के आंकड़े जुटाए जाते हैं. ये हैं- कृषि, खनन, मैन्युफैक्चरिंग, बिजली, कंस्ट्रक्शन, व्यापार, रक्षा और अन्य सेवाएं.

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