अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट के जज: हिंदू आस्था पर कैसे उठा सकते हैं सवाल?
नई दिल्ली। राम मंदिर-बाबरी मस्जिद मामले की सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने सोमवार को कहा कि अयोध्या मामले में हिंदू आस्था पर सवाल करना मुश्किल है। जिसमें माना जाता है कि अयोध्या हिंदू भगवान राम का जन्मस्थल थी। सुप्रीम कोर्ट में 29वें दिन मामले की सुनवाई हुई। सोमवार को शाम चार बजे की बजाय 5 बजे तक सुनवाई चली।
पांच जजों की ये संवैधानिक पीठ प्रमुख न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में मामले की सुनवाई कर रही है। सुनवाई के दौरान मामले में सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन ने दलील दी कि हम भगवान राम का सम्मान करते हैं। हम जन्मस्थान का सम्मान करते हैं। अगर इस देश में भगवान राम और अल्लाह का सम्मान नहीं होगा तो देश खत्म हो जाएगा। ये विविधताओं वाला देश है। इसका स्वर्णिम इतिहास तमाम वर्गों से बना है। लेकिन विवाद तो जन्मस्थान को लेकर है, कि आखिर वह कहां है।
पीठ में शामिल वकील डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, "अयोध्या मामले में हिंदुओं की आस्था पर कैसे सवाल उठाया जा सकता है। ये मुश्किल है। एक मुस्लिम गवाह का बयान है कि हिंदुओं के लिए अयोध्या वैसे ही है जैसे मुस्लिमों के लिए मक्का का स्थान है।" पीठ में शामिल अन्य जज एसए बोबड़े, अशोक भूषण और एसए नजीर हैं। अगली सुनवाई अब मंगलवार को होगी। बीते हफ्ते कोर्ट ने उम्मीद जताई थी कि जमीन विवाद पर सुनवाई 18 अक्टूबर तक पूरी हो जाएगी।
शनिवार को भी होगी सुनवाई
पीठ ने कहा था, "हमें 18 अक्टूबर तक सुनवाई समाप्त करने के लिए एक संयुक्त प्रयास करना चाहिए। यदि आवश्यकता हो, तो अदालत शनिवार को भी बैठ सकती है और यहां तक कि मामले में सुनवाई एक घंटे तक बढ़ाई जा सकती है।"
गोगोई 17 नवंबर को सेवानिवृत हो रहे हैं, ऐसे में अगर दलीलें 18 अक्टूबर तक समाप्त हो जाती हैं, तो जजों को फैसला लिखने के लिए एक महीने का वक्त मिल जाएगा। सोमवार को, धवन ने जस्टिस चंद्रचूड़ की टिप्पणियों पर कहा कि रामजन्मभूमि, या राम के जन्म स्थान का "कोई सबूत नहीं" है।
राजीव धवन ने कहा, "हिंदू पक्षकारों की दलील है कि भगवान राम वहां पैदा हुए थे, पर जगह के बारे में उल्लेख नहीं है। राम के वहां जन्म के बारे में दलील हैं। लेकिन क्या जन्मस्थान न्यायिक व्यक्तित्व हो सकता है। 1989 से पहले किसी भी ऐसे न्यायिक व्यक्ति के बारे में दलील ही नहीं थी। हमारी दलील है कि पूरी की पूरी जमीन जन्मस्थान कैसे हो सकती है। ये हिंदू पक्षकार का दावा है लेकिन ये कैसे हो सकता है। जन्मस्थान एक निश्चित स्थान पर हो सकता है लेकिन पूरे इलाके में कैसे हो सकता है।"
बोबड़े ने तमिलनाडु के एक मंदिर का उदाहरण दिया
धवन ने परिक्रमा पर कहा कि इसपर लोगों के बयानों में विरोधाभास है। उन्होंने कहा कि क्या किसी स्थान पर परिक्रमा करने से वहां का मालिकाना हक तय किया जा सकता है। कुछ ने कहा कि वह 14 कोसों की परिक्रमा करते थे, तो कुछ ने कहा कि वह चबूतरे की परिक्रमा करते थे। लोगों के बयान अलग-अलग हैं।
हिंदुओं ने मूर्ति रख दी
कुछ का तो ये भी कहना है कि वह दक्षिण दिशा में परिक्रमा करते थे। मेरा मानना है कि परिक्रमा पर लोगों के बयानों में विरोधाभास है और ऐसे में जमीन से देवता के संबंध स्थापित नहीं किए जा सकते हैं।
धवन
ने
कहा,
"जहां
एक
बार
मस्जिद
बना
दी
जाती
है
वह
हमेशा
मस्जिद
रहती
है,
उसे
हटाया
नहीं
जा
सकता
है।
हिंदू
पक्षकारों
का
कभी
भी
बीच
वाले
यानी
भीतरी
आंगन
पर
कब्जा
नहीं
रहा
था।"
धवन
ने
कहा
कि
बीच
वाले
गुंबद
के
नीचे
कुछ
हिंदुओं
ने
मूर्ति
रख
दी
और
ये
1949
में
किया
गया।
तब
तक
यहां
मुस्लिम
ही
प्रार्थना
करते
थे।
क्या
इस
तरह
से
मूर्ति
रखने
से
हिंदू
पक्षकारों
का
वहां
की
जमीन
पर
पोजेशन
का
दावा
हो
सकता
है?
मालिकाना
हक
के
खिलाफ
इनका
कब्जा
रहा
है।
तभी
जस्टिस
बोबड़े
ने
तमिलनाडु
के
एक
मंदिर
का
उदाहरण
दिया।
उन्होंने
कहा
कि
बिना
मूर्ति
के
भी
देवता
हो
सकते
हैं।
तमिलनाडु
के
इस
मंदिर
में
आसमान
की
पूजा
होती
है।
अयोध्या विवाद: सुप्रीम कोर्ट में बोले वक्फ बोर्ड के वकील- बाबर ने मंदिर तोड़ा नहीं बल्कि बनवाया