कोविड से उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव में लगे क्या 706 शिक्षकों की मौत हो गई?
यूपी शिक्षक संघ ने एक सूची जारी करते हुए दावा किया है कि चुनाव ड्यूटी करने वाले कम से कम 706 शिक्षक कोविड संक्रमण से जान गंवा चुके हैं.
उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमण के बीच पंचायत चुनाव को लेकर शुरू से ही सवाल उठ रहे थे. लेकिन अब चुनाव ड्यूटी में लगे सैकड़ों शिक्षकों की कथित तौर पर कोरोना संक्रमण से हुई मौत के मामले ने एक अलग ही बहस को जन्म दे दिया है.
प्राथमिक शिक्षक संघ ने राज्य निर्वाचन आयोग और यूपी के मुख्यमंत्री को चुनाव ड्यूटी में लगे 706 शिक्षकों की मौत की सूची सौंपते हुए दो मई को होने वाली मतगणना को रोकने की मांग की है.
वहीं दूसरी ओर विपक्षी पार्टियों ने मृतकों के परिजनों को मुआवज़ा देने की मांग की है तो कुछ लोग शिक्षक संघ के इस दावे पर सवाल भी उठा रहे हैं.
प्राथमिक शिक्षक संघ ने आरोप लगाया है कि ट्रेनिंग से लेकर मतदान तक राज्य निर्वाचन आयोग ने कोरोना गाइडलाइन्स का कहीं भी पालन नहीं कराया, जिससे हालात भयावह हो गए.
शिक्षक संघ ने ज़िलावार एक सूची जारी करते हुए दावा किया है कि चुनाव ड्यूटी करने वाले कम से कम 706 शिक्षक कोविड संक्रमण से जान गंवा चुके हैं और बड़ी संख्या में शिक्षक संक्रमण के बाद बीमार हो गए हैं. संघ का कहना है कि शिक्षकों के परिवार में संक्रमितों की कोई गिनती ही नहीं है.
उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक महासंघ के अध्यक्ष डॉक्टर दिनेश चंद्र शर्मा ने बीबीसी को बताया, "निर्वाचन आयोग ने कोरोना महामारी के बीच पंचायत चुनाव कराए. संघ ने 12 अप्रैल को अनुरोध किया था कि निर्वाचन से पहले कोविड से बचाव की गाइडलाइन्स का पालन किया जाए लेकिन इसको लेकर कोई इंतज़ाम नहीं किए गए."
"शिक्षकों-कर्मचारियों को बिना सुरक्षा उपायों के महामारी के समय मतदान कराने के लिए भेजा गया, जिससे बड़ी संख्या में शिक्षक और कर्मचारी संक्रमित हो गए. कोरोना संक्रमण से अब तक क़रीब 706 शिक्षक जान गंवा चुके हैं."
हाईकोर्ट पहुँचा मामला
अपने इस दावे के पीछे दिनेश चंद्र शर्मा का तर्क है कि हर ज़िले में संगठन की इकाई ने ड्यूटी करने वाले शिक्षकों, ड्यूटी के बाद संक्रमित होने वाले और फिर इलाज के बाद मरने वाले शिक्षकों की सूची तैयार की है.
डॉक्टर दिनेश चंद्र शर्मा कहते हैं, "दो मई को होने वाली मतगणना को लेकर शिक्षकों और कर्मचारियों में डर है. पंचायत चुनाव करा ही लिए गए हैं, ऐसे में अगर परिणाम कुछ दिनों के बाद भी आ जाएं तो क्या नुकसान है?"
दिनेश चंद्र शर्मा कहते हैं कि यदि निर्वाचन आयोग हमारी बात नहीं मानता है तो शिक्षक मतगणना का बहिष्कार भी कर सकते हैं क्योंकि जान बचाना भी बेहद महत्वपूर्ण है.
कोरोना संक्रमण के बीच पंचायत चुनाव कराए जाने को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी निर्वाचन आयोग से जवाब मांगा है. हाई कोर्ट ने राज्य निर्वाचन आयोग से पंचायत चुनाव में ड्यूटी के दौरान कोरोना संक्रमण से मृत सरकारी कार्मिकों की संख्या का ब्यौरा तलब किया है.
इससे पहले, दावा किया गया था कि कोरोना संक्रमण की वजह से ड्यूटी में तैनात 135 शिक्षकों की मौत हुई है. इसका संज्ञान लेते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने राज्य निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी किया है जिस पर सुनवाई तीन मई को होगी.
बताया जा रहा है कि राज्य निर्वाचन आयोग ने ज़िलों के अधिकारियों से इस बारे में सही जानकारी उपलब्ध कराने को कहा है. हालांकि राज्य निर्वाचन आयुक्त से इस बारे में जानकारी के लिए कई बार संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन उनसे बातचीत संभव नहीं हो सकी.
राज्य निर्वाचन आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं, "तीन मई को आयोग को हाई कोर्ट में जवाब देना है लेकिन आयोग के ज़्यादातर अधिकारी ख़ुद ही कोरोना संक्रमण से जूझ रहे हैं. हालांकि आयोग ने ज़िलाधिकारियों को पत्र लिखकर ड्यूटी में लगे शिक्षकों और कर्मचारियों की मौत का ब्योरा मांगा है."
वहीं राज्य सरकार का इस मामले में कहना है कि चुनाव हाईकोर्ट के निर्देश पर हुए और चुनाव प्रक्रिया आयोग ने संपन्न कराई है, ऐसे में राज्य सरकार का इससे ज़्यादा मतलब नहीं है.
राज्य सरकार कराएगी आंकड़ों की जांच
राज्य के अपर मुख्य सचिव सूचना नवनीत सहगल कहते हैं, "निर्वाचन में ड्यूटी और बाक़ी प्रक्रियाएं चुनाव आयोग के माध्यम से तय की गई हैं. हालांकि शिक्षक और दूसरे कर्मचारी चूंकि राज्य सरकार के कर्मचारी थे, इसलिए यदि उनकी मौत हुई है तो सरकार उसका संज्ञान लेगी और उनके परिजनों को नियमानुसार उचित मदद मुहैया कराई जाएगी."
हालांकि इस बात से नवनीत सहगल भी हैरान दिखते हैं कि चुनावी ड्यूटी में शामिल मृतकों की सूची दो दिन में 135 से बढ़कर 706 तक कैसे पहुंच गई.
सहगल कहते हैं कि राज्य सरकार भी इन आंकड़ों का सत्यापन कराएगी और यदि ऐसा सही हुआ तो परिजनों को उचित और नियमानुसार मदद दी जाएगी.
सूची हैरान करने वाली भले ही लेकिन तमाम ज़िलों से शिक्षकों और कर्मचारियों के कोरोना संक्रमित होने और कई लोगों के इलाज के दौरान मरने की ख़बरें पंचायत चुनाव के पहले चरण यानी 15 अप्रैल के बाद से ही आने लगी थीं.
आगरा में पंचायत चुनाव में ड्यूटी कर लौटे बेसिक स्कूलों के छह शिक्षकों की कोरोना संक्रमण से मौत हो गई जिनमें चार परिषदीय स्कूलों में और एक सहायता प्राप्त विद्यालय में कार्यरत थे.
उत्तर प्रदेश सीनियर बेसिक शिक्षक संघ के ज़िलाध्यक्ष डॉ. महेशकांत शर्मा कहते हैं कि ज़िले के शिक्षक 15 अप्रैल को पंचायत चुनाव में चुनाव ड्यूटी करके लौटे थे.
इसके बाद से ही वे बुखार, ज़ुकाम और खांसी से पीड़ित हो गए. इन सभी का कोरोना टेस्ट पॉज़िटिव था जिनमें से छह लोगों ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया.
https://twitter.com/yadavakhilesh/status/1387685198318297088
इस बीच, इस मामले में राजनीति भी शुरू हो गई है. पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने ट्वीट किया है कि जिन अधिकारी, शिक्षक और कर्मचारियों की मौत कोरोना संक्रमण की वजह से हुई है उन्हें सरकार 50 लाख की आर्थिक सहायता दे.
वहीं, कांग्रेस की महासचिव और प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा ने लिखा है कि पंचायत चुनाव में बड़ी संख्या में शिक्षकों की मौत डरावनी है. वह उन्हें 50 लाख रुपये का मुआवज़ा और आश्रित को नौकरी दी जाए.
https://twitter.com/priyankagandhi/status/1387709862306480129
यूपी में पंचायत चुनाव चार चरणों में कराए गए थे और आख़िरी चरण का मतदान 29 अप्रैल को हुआ था जबकि मतगणना दो मई को होगी.
प्राथमिक शिक्षक संघ का कहना है कि मतदान में तो लाख कोशिशों के बावजूद ड्यूटी लगाई गई जिसका ख़ामियाजा शिक्षकों को भोगना पड़ा, लेकिन कम से कम इतने तीव्र संक्रमण को देखते हुए मतगणना का कार्यक्रम टाल दिया जाए.
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