'गैस चेंबर' दिल्ली में सेहत को है गंभीर ख़तरा
हवा की क्वालिटी तय मानकों के हिसाब से हो तो दिल्लीवासियों की उम्र 9 साल बढ़ सकती है.
पिछले हफ़्ते, एक छह वर्षीय बच्चे ने दिल्ली में अपने स्कूल से लौटते ही बेचैनी और सांस लेने में तकलीफ़ की शिकायत की.
बच्चे के पिता ने कहा, "मैंने सोचा वो स्कूल नहीं जाना चाहता है, इसलिए बहाने कर रहा है क्योंकि उसे सांस की कभी समस्या नहीं रही. लेकिन कुछ ही घंटों में वो बहुत खांसने लगा और जोर-जोर से सांसें लेने लगा."
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एक्यूट ब्रोंकाइटिस
बच्चे के माता-पिता उसे तुरंत ही एक टैक्सी में लेकर धुंध भरे मौसम में नजदीकी अस्पताल ले गए.
अस्पताल में, डॉक्टरों ने जांच कर बताया कि उस लड़के को एक्यूट ब्रोंकाइटिस हुआ है.
अगले चार घंटे में, उसे स्टेरॉइड इंजेक्शन और नेब्यूलाइज़र लगाया गया जिससे उसकी श्वास नली को साफ़ किया जा सके और साथ ही एंटिबायटिक्स और एलर्जी की दवाएं दी गई जिससे उसे और इंफ़ेक्शन न हो.
मैक्स स्मार्ट सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल के चीफ़ पल्मोनोलॉजिस्ट (फेफड़ा विभाग के प्रमुख) ने मुझे बताया, "ये बहुत ख़राब अटैक था, इसलिए हमें उसका बहुत तेज़ी से इलाज करना था."
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हवा में ज़हर
बच्चे को ठीक होने में तीन दिन लगे, इसमें से दो दिन उसने अस्पताल में बिताए. अब वो अपने घर पर है. उसे दिन में दो बार नेब्यूलाइज़र और भाप लेने के साथ ही स्टेरॉयड और एंटी एलर्जी सिरप भी लेना होता है.
उसके पिता कहते हैं, "यह हमारे लिए एक झटके जैसा था, क्योंकि वो स्वस्थ बच्चा था."
इस हफ़्ते, दिल्ली के कई इलाकों की हवा में ख़तरनाक सूक्ष्म पीएम 2.5 कणों की मात्रा 700 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक हो गई.
ये कण हमारी नाक के बालों से भी नहीं रुकते और फेफड़ों तक पहुंच कर उन्हें ख़राब करते हैं.
'दिल्ली में हर आदमी सिगरेट पी रहा है'
रोज दो पैकेट सिगरेट पी रहे हैं
एयर क्वालिटी इंडेक्स (हवा की गुणवत्ता के मानक) रिकॉर्ड अधिकतम 999 तक पहुंचा. डॉक्टर कहते हैं कि इस तरह की विषैली हवा का सांस के जरिये शरीर में जाना दिन में दो पैकेट सिगरेट पीने के बराबर है.
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कहते हैं कि दिल्ली गैस चेंबर बन गई है.
अस्पताल खांसी, खरखराहट और सांस की तकलीफ़ को लेकर पहुंचने वाले महिलाओं, पुरुषों और बच्चों से अटे पड़े हैं.
डॉक्टर सक्सेना और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में ऐसे मरीज़ों की संख्या 20 फ़ीसदी तक बढ़ गई है.
डॉक्टरों ने इसे पब्लिक इमरजेंसी घोषित कर रखा है, हालांकि ये नहीं पता कि इसे कैसे लागू किया जाएगा, और लोगों को घरों में ही रहने की सलाह दी जा रही है.
डॉक्टर सक्सेना कहते हैं, "धुंध के साथ ठंड का मौसम सबसे बड़ा ख़तरा बन गया है, ख़ासकर उन लोगों के लिए जो अस्थमा और क्रोनिक ब्रॉन्काइटिस जैसी सांस की समस्याओं के प्रति संवेदनशील हैं."
गंभीर स्वास्थ्य संकट
इस साल शुरुआत में, शहर के चार अस्पतालों ने साथ मिलकर एक जांच शुरू की थी.
इसमें हवा की गुणवत्ता में बदलाव के साथ ही मरीज़ों की सांस की समस्याओं के बिगड़ने की समस्या के बीच संबंध की जांच करना था.
अस्पतालों ने नर्स नियुक्त की हैं जो इमरजेंसी में आ रहे मरीजों का रिकॉर्ड रख रही हैं. शोधकर्ता यह जांच रहे हैं कि जब हवा की क्वालिटी में अधिक गिरावट होती है तो क्या मरीजों का आना बढ़ जाता है.
अभी यह शोध अपने शुरुआती दौर में है और केवल इमरजेंसी और एडमिशन तक ही सीमित है.
इसमें सांस की समस्या को लेकर बड़ी संख्या में आउट पेशेंट वार्ड या अन्य चिकित्सालयों पर पहुंचने वाले मरीज शामिल नहीं हैं.
डॉक्टरों का मानना है कि इन सब के बावजूद इससे कुछ संकेत तो मिलते हैं कि क्या यह शहर प्रदूषण संबंधित गंभीर स्वास्थ्य संकट के कगार पर है, जैसा कि कई लोगों का मानना है.
10 में से चार बच्चों को फेफड़े की समस्या
दिल्ली की हवा बच्चों को नुकसान पहुंचा रही हैं. बच्चे और बुजुर्ग सबसे ज़्यादा इस समस्या से जूझ रहे हैं. बच्चों का फेफड़ा आम तौर पर कमज़ोर होता है और उन्हें आसानी से नुकसान पहुंच सकता है.
2015 के एक अध्ययन में बताया गया है कि राजधानी के हर 10 में से चार बच्चे "फेफड़े की गंभीर समस्याओं" से पीड़ित हैं.
डॉक्टर कहते हैं कि इस तरह के मौसम में बच्चों को घरों के भीतर रहना चाहिए, स्कूलों को पहले ही बंद किया जा चुका है.
दूसरों की हालत भी कोई बेहतर नहीं है. एम्स के पल्मोनोलॉजिस्ट डॉक्टर करण मदान कहते हैं कि प्रदूषण अक्सर अस्थमा के मरीजों की हालत और बिगाड़ देते हैं.
उन्हें क्लिनिक या इमरजेंसी में जाना पड़ता है और नेब्यूलाइज़र, स्टेरॉयड इंजेक्शन, ऑक्सीजन या वेंटिलेटर तक पर रखना पड़ता है.
डॉक्टर मदान कहते हैं, "उनकी हालत बहुत खराब हो सकती है, और हर बार इस तरह की प्रक्रिया से गुजरने के बाद उनके फेफड़े की हालत में लंबे समय तक के लिए गिरावट आ सकती है."
क्या जनआंदोलन है उपाय?
दिल्ली के लोग इसे लेकर लाचार हैं.
न्यूयॉर्क टाइम्स को एक चेस्ट सर्जन ने कहा, "लोगों को सांस लेना रोकना पड़ेगा. ये संभव नहीं है. दूसरा यह कि दिल्ली छोड़ दें. यह भी संभव नहीं है. तीसरा यह कि ताजी हवा में सांस लेने के अधिकार को लेकर जन आंदोलन चलाएं.
फिलहाल, डॉक्टर यह सलाह दे रहे हैं कि लोगों को जब भी बाहर या पब्लिक ट्रांसपोर्ट में जाना हो तो वो प्रदूषणरोधी मास्क पहन कर ही निकलें.
जिन्हें सांस की पहले से समस्या है वो इन्हेलर, फ़्लू और इनफ़्लूएंजा के इंजेक्शन ले कर चलें और घरों में एयर प्यूरिफॉयर इस्तेमाल करें.
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शिकागो विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर माइकल ग्रीनस्टोन ने वायु प्रदूषण से आयु पर पड़ने वाले प्रभाव पर किए अपने शोध में पाया कि दिल्ली के लोगों की उम्र छह साल तक और बढ़ सकती है अगर यहां की हवा में ख़तरनाक सूक्ष्म पीएम 2.5 कणों की मात्रा राष्ट्रीय स्तर 40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक हो जाए.
अगर यह विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक स्तर 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक हो जाए तो उम्र नौ साल तक बढ़ सकती है.
यह वायु प्रदूषण से निपटने के लिए भारत के प्रयासों की सबसे बड़ी आलोचना है.