Positive India: एक बार समझिये तो क्या है दिल्ली सरकार का ऑड-इवेन फार्मूला
अंकुर शर्मा
बैंगलुरू। इन दिनों चारों ओर दिल्ली सरकार के आॉ़ड-इवेन फार्मूले पर बहस छिड़ी हुई है। कोई इस फैसले से खुश है तो कोई इस फैसले से नाराज। किसी ने इसे सीएम केजरीवाल की तानाशाही कहा है तो किसी ने इसे उनका बचकानापन।
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लेकिन क्या आप ने इस फार्मूले को समझने की कोशिश की है, हमारा मकसद यहां किसी सीएम या किसी राजनैतिक दल की तारीफ करना या उसे सही ठहराना नहीं है बल्कि इस कदम को समझना है। इसलिए आज हम Positive India में बात करते हैं ऑड-इवेन फार्मूल की।
क्यों लागू हुआ है ऑड-इवेन फार्मूला?
यह बात किसी से छुपी नहीं कि इस समय दिल्ली सबसे ज्यादा प्रदूषित है जो कि एक खतरे की घंटी है। दिल्ली की हवा में प्रदूषण की मात्रा है पार्टिकुलेट मैटर 2.5। अगर हवा में इसकी मात्रा 60 माइक्रो ग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से ज्यादा हो जाए तो हवा हर किसी के लिए घातक है। अगर अभी इसके खिलाफ सख्त कदम नहीं उठाये गये तो आने वाले दिनों में स्थिति काफी भयानक हो सकती है इसलिए दिल्ली को प्रदूषण मुक्त करने के लिए यह कदम उठाया गया है।
क्या है ऑड-इवेन फार्मूला?
- 0, 2, 4, 6, 8 नंबर वाली गाड़ियां एक दिन चलेंगी एक दिन नहीं चलेंगी।
- 1,3,5,7,9 नंबर वाली गाड़ियां दूसरे दिन चलेंगी।
- कार, स्कूटर मोटर साइकिल वाले ध्यान से पढ़ें। सार्वजनिक परिवहन पर यह नियम लागू नहीं होगा।
- जिस दिन गाड़ियां नहीं चलेंगी उस दिन बस और मैट्रों सेवायें बढ़ाई जायेंगी।
क्या है असली वजह?
- दिल्ली में मेट्रो के बाद भी हर दिन 1400 नई कारें रोड पर आ जाती हैं।
- मार्च तक दिल्ली में गाड़ियों की संख्या 84 लाख 75 हज़ार 371 हो गई थी।
- साढ़े छब्बीस लाख प्राइवेट कार हैं। 28 लाख से ज्यादा मोटर साइकिल है।
- 27 लाख स्कूटर हैं। साढ़े तीन लाख व्यावसायिक वाहन।
- 81 हज़ार से ज़्यादा तिपहिया वाहन, 32 हज़ार से ज्यादा टैक्सी और 19 हज़ार से ज्यादा बस।
- जिनसे निकलने वाला कार्बन मोनोक्साइड इंसान को सिर्फ और सिर्फ फेफड़ों की बीमारी दे रहा है।
सरकार क्या करेगी?
- बदरपुर थर्मल पॉवर प्लांट बंद किया जायेगा।
- दिल्ली में ट्रकों को रात 9 की जगह 11 बजे आने दिया जाएगा।
- ट्रकों को प्रदूषण फ्री होना पड़ेगा।
पॉ़जीटिव इंडिया
जब भी कोई नया कदम उठाया जाता है तो उसके विरोधिगण काफी होते हैं। हर पहल एक नई बहस को जन्म देती है इसलिए दिल्ली सरकार भी आज आलोचना के कटघरे में खड़ी है। लेकिन दूसरों के दोषारोपण और आरोपों को दरकिनार रखते हुए अगर आप अपने विवेक से सोचे तो यह प्रयोग पर अमल किया जा सकता है। हो सकता है कि थोड़ी सी परेशानी शुरूआती दौर में आये लेकिन अगर इस फौरी परेशानी से आप जीवन भर के नाइलाज बीमारियों के कोढ़ से बच सकते हैं तो क्या यह परेशानी खराब है। वैसे भी कहते हैं ना कि अंत भला तो सब भला..अगर वाकई में इस फार्मूले से हम प्रदूषण को एक चौथाई भी रोक पाये तो यह हर लिहाज से बेहतरी का सबब होगा इसलिए इस अभियान में खुल कर साथ दीजिये।