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पीएम मोदी का ये दांव गुजरात में बीजेपी को जीत दिला पाएगा?

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अहमदाबाद। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के विधानसभा चुनाव प्रचार में अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हैं और वह लगातार एक के बाद एक ताबड़तोड़ रैलियां कर रहे हैं। पीएृम मोदी अपनी रैलियों में कांग्रेस पर काफी तीखे हमले बोलते हैं और वह खुद के अपमान को गुजरात की अस्मिता से जोड़ते हैं। सोमवार को भुज की रैली में लोगों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि मैं इस मिट्टी का बेटा हूं, आज मैं जो भी हूं उसे गुजरात के लोगों ने बनाया है, यह मैं कभी नहीं भूलुंगा। लेकिन देखिए किस तरह के हमले कांग्रेस ने मुझपर किए है, गुजरात के लोग इन लोगों को कभी माफ नहीं करेंगे।

भावुक रूप से जोड़ने की कोशिश

भावुक रूप से जोड़ने की कोशिश

यह पहली बार नहीं है जब प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों को भावुक रुप से खुद से जोड़ने की कोशिश की है, इससे पहले भी 2012 में बतौर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान केंद्र की तत्कालीन यूपीए सरकार पर बड़ा आरोप लगाया था। उन्होंने दावा किया था कि यूपीए सरकार सर क्रीक जोकि कच्छ शहर में भारत- पाकिस्तान के बीच का ज्वार मुहाना है को पाकिस्तान को देने की तैयारी में है। इस बाबत नरेंद्र मोदी ने गुजरात में वोटिंग से ठीक एक दिन पहले बाकायदा मनममोहन सिंह को एक पत्र भी लिखा था।

कांग्रेस पर लगाया था गंभीर आरोप

कांग्रेस पर लगाया था गंभीर आरोप

नरेंद्र मोदी के इस पत्र का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से कहा गया था कि यह दावा बिल्कुल झूठ, निराधारा और भ्रामक है। लेकिन जबतक नरेंद्र मोदी के इस आरोप का पीएमओ कार्यालय से जवाब आता तबतक मतदान हो चुका था और यूपीए को इसका काफी नुकसान भी पहुंच चुका था। 2012 में भाजपा ने गुजरात विधानसभा चुनाव बहुत ही आसानी से जीत लिए और इसी परिणाम के आधार पर नरेंद्र मोदी ने भाजपा के भीतर खुद को सबसे ताकतवर नेता के रूप में प्रस्तुत करते हुए प्रधानमंत्री पद के दावेदार का दावा ठोंक दिया था।

गुजरात की अस्मिता को उठाया

गुजरात की अस्मिता को उठाया

पीएम मोदी गुजरात की तमाम रैलियों में लोगों से भावुक अपील करते हैं, उन्होंने कांग्रेस को गुजरात विरोधी करार देते हुए कहा कि कांग्रेस सरदार बल्लभभाई पटेल से लेकर मोरारजी देसाई तक से नफरत करती है, उन्होने कहा कि पार्टी के भीतर उन्हें वह सम्मान नहीं दिया गया जिसके वह हकदार थे। प्रधानमंत्री ने दो भावुक मुद्दों राष्ट्रीयता और गुजरात की अस्मिता को आपस में जोड़कर अपना गुजरात अभियान सोमवार से शुरू किया है। गुजरात में दो चरण में मतदान होना है, पहला चरण 9 दिसंबर तो दूसरा चरण 14 दिसंबर को होगा।

सरदार पटेल और नेहरू की बात पुरानी

सरदार पटेल और नेहरू की बात पुरानी

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि प्रधानमंत्री का रवैया अब बदल गया है, इसकी बड़ी वजह है कि अब केंद्र और राज्य दोनों ही जगह भाजपा की सरकार है, लेकिन पीएम मोदी की यह तरकीब अब खास काम नहीं कर रही है क्योंकि वह हमेशा पंडित नेहरू और बल्लभभाई की बात करते हैं जोकि दशकों पुरानी बात है। लोगों को अब इस बात की उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नोटबंदी, जीएसटी जैसे मुद्दों पर अपनी राय रखे और इसके लिए अपनी पूरी जिम्मेदारी को स्वीकार करे, बजाए इसके कि वह लगातार सिर्फ यह बात करें कि कांग्रेस ने गुजरात और गुजरातियों के साथ क्या व्यवहार किया।

क्या है आरोपों की हकीकत

क्या है आरोपों की हकीकत

प्रधानमंत्री मोदी ने राजकोट की रैली में कहा कि गुजरात में चार पाटीदार मुख्यमंत्रियों की कुर्सी जाने के लिए कांग्रेस जिम्मेदार है, कांग्रेस की वजह से ही बाबूभाई जसभाई पटेल से लेकर आनंदीबेन पटेल की कुर्सी गई। लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बाबूभाई जसभाई की सरकार कांग्रेस की वजह से नहीं गिरी थी, बल्कि जनसंघ के विधायकों की वजह से गिरी थी। प्रधानमंत्री अपनी रैलियों में गुजरात के मुद्दों को नहीं उठा रहे हैं, वह लगातार नेहरू और सरदार पटेल को लेकर कांग्रेस पर निशाना साधते हैं, पाकिस्तान और चीन की बात करते हैं।

क्या चलेगा पुराना दांव

क्या चलेगा पुराना दांव

बतौर गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने विपक्ष पर निशाना साधने के लिए विक्टिम कार्ड खेला था, कुछ इसी तरह से 2014 के लोकसभा चूनाव में भी मोदी ने चायवाला और बाहरवाला के मुद्दे पर कांग्रेस को घेरते हुए विक्टिम कार्ड का इस्तेमाल किया और लोगों के साथ भावुक रूप से जुड़ने में सफल हुए थे। हालांकि नरेंद्र मोदी के लिए यह विक्टिम कार्ड और भावुक अपील 2012 व 2014 में काफी कारगर साबित हुई थी, लेकिन बड़ी बात यह है कि क्या यह तकनीक इस बार भी पीएम मोदी के लिए कारगर साबित होगी।

इसे भी पढ़ें- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गुजरात में रैली और आधी से ज्यादा कुर्सियां खाली

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English summary
Decoding the Narendra Modi strategy for Gujarat assembly election 2017. Will he able to succeed once again with emotional and victim card?
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