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'आज़ाद कोल्हान' के झंडाबरदार रामो बिरुवा की 'कैद' में मौत

ख़ुद को अलग कोल्हान ईस्टेट का 'खेवटदार नंबर एक' (शासक) घोषित करके सुर्ख़ियों में रह चुके रामो बिरुवा की गुरुवार को झारखंड की चाईबासा जेल में मौत हो गई. वह 87 साल के थे.

पुलिस ने रामो बिरुवा को बीते एक जून को देशद्रोह के आरोप में गिरफ़्तार किया था और वह तब से न्यायिक हिरासत में थे.

पुलिस का कहना है कि 21 जून की सुबह तबीयत ख़राब होने पर उन्हें सदर अस्पताल ले जाया गया, 

By BBC News हिन्दी
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प्रशासनिक अधिकारी रहे रामो बिरुवा कोल्हान क्षेत्र का भारत से अलग स्वतंत्र अस्तित्व होने की वकालत करते थे. Death in Capture of Azad Kolharna Ramo Biruwa

ख़ुद को अलग कोल्हान ईस्टेट का 'खेवटदार नंबर एक' (शासक) घोषित करके सुर्ख़ियों में रह चुके रामो बिरुवा की गुरुवार को झारखंड की चाईबासा जेल में मौत हो गई. वह 87 साल के थे.

पुलिस ने रामो बिरुवा को बीते एक जून को देशद्रोह के आरोप में गिरफ़्तार किया था और वह तब से न्यायिक हिरासत में थे.

पुलिस का कहना है कि 21 जून की सुबह तबीयत ख़राब होने पर उन्हें सदर अस्पताल ले जाया गया, जहां पहुंचने के पहले ही उऩकी मौत हो चुकी थी. मगर रामो बिरुवा के परिजनों को पुलिस के दावे पर यकीन नहीं है.

कौन थे रामो बिरुवा

कोल्हान प्रमंडल के पश्चिमी सिंहभूम जिले का एक गांव है 'भागाबिला.' मंझारी प्रखंड के इस गांव में जन्मे रामो बिरुवा बिहार सरकार में प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रहे थे.

इस दौरान उन्होंने कई महत्वपूर्ण पदों पर काम किया. साल 1991 में रिटायर होने के बाद वह अपनी पत्नी जानकी बिरुवा के साथ पैतृक गांव में रह रहे थे.

इस दौरान उन्होंने ब्रिटिश शासन काल में लागू विल्किंसन का हवाला देते हुए कोल्हान क्षेत्र के स्वतंत्र अस्तित्व की वकालत की. उन्होंने दावा किया कि यह क्षेत्र भारतीय गणतंत्र का हिस्सा नहीं हो सकता.

उन्होंने ब्रिटेन की महारानी और भारत के राष्ट्रपति को चिट्ठियां भी लिखीं और वहां से मिली पावती के आधार पर ख़ुद को कोल्हान क्षेत्र(झारखंड के पूर्वी व पश्चिमी सिंहभूम और सरायकेला खरसांवा ज़िले) का खेवटदार नंबर एक (शासक) घोषित कर दिया.

उन्होंने अपनी शासकीय व्यवस्था के संचालन के लिए एक टीम भी बनाई थी, जिसमें शामिल कुछ लोग अभी भी जेल में हैं.

'कोल्हान देश' का झंडा

दैनिक हिंदुस्तान के जमशेदपुर स्थित संपादक मनोरंजन सिंह कहते हैं कि रामो बिरुवा ने चाईबासा के डिप्टी कमिश्नर और दूसरे अधिकारियों को भी चिट्ठियां लिखी थीं. उनके द्वारा मालगुज़ारी वसूले जाने की शिकायतों के बाद अप्रैल 2017 में उनके ख़िलाफ़ पुलिस रिपोर्ट दर्ज हुई और उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया. कुछ दिनों बाद उन्हें ज़मानत मिल गई.

मनोरंजन सिंह के मुताबिक, "जेल से बाहर आने के बाद दिसंबर 2017 की 18 तारीख को उन्होंने पश्चिमी सिंहभूम ज़िले के खूंटपानी इलाक़े में अलग कोल्हान देश का झंडा फहराने की घोषणा की और उसे 'बीसवां रक्तहीन वापसी दिवस' का नाम दिया."

मनोरंजन सिंह ने कहा, "पुलिस फिर सक्रिय हुई और बिरुवा समेत कई दर्जन लोगों के ख़िलाफ़ देशद्रोह का मामला दर्ज कर लिया गया. पुलिस की मुस्तैदी के कारण वे घोषित तारीख़ को खूंटपानी में झंडा नहीं फहरा सके, लेकिन जमशेदपुर के पास कुछ लोगों ने यह झंडा फहरा दिया. बागबेड़ा थाने ने कथित झंडे को ज़ब्त कर एक रिपोर्ट भी दर्ज की. इसके बाद वह भूमिगत हो गए."

अपनी बेलख़ुद ग्रांट की

पुलिस ने जब रामो बिरुवा को एक जून को देशद्रोह के आरोप में चाईबासा से गिरफ़्तार किया, तब वह अपनी पत्नी के साथ थे.

स्थानीय पत्रकारों ने बताया कि पुलिस द्वारा गिरफ़्तार किए जाने के बाद उन्होंने कागज़ मंगाया और बतौर कोल्हान शासक खुद ही अपनी बेल ग्रांट की. फिर उन्होंने टोपी (शासक की पहचान) पहनी, तब पुलिस वाले उन्हें ले जा सके.

यह उनकी दूसरी गिरफ़्तारी थी और इसके बाद से वह चाईबासा जेल में बंद थे. इसी दौरान पुलिस के मुताबिक़ बीमारी के कारण उनकी मौत हो गई.

मौत पर परिवार को शक

चाईबासा जेल के सुपरिटेंडेंट जीतेंद्र कुमार ने बीबीसी को बताया ,"रामो बिरुवा बीमार थे. जेल में डॉक्टरों का एक बोर्ड उनका इलाज कर रहा था. बीते 17 जून को सीने में दर्द होने पर उन्हें सदर अस्पताल ले जाया गया. अस्पताल में डॉक्टरों ने उन्हें दवाइयां दीं और स्थिति सामान्य होने पर उन्हें वापस जेल ले आया गया. गुरुवार सुबह बेहोश होने पर हमलोग उन्हें सदर अस्पताल ले जा रहे थे, तभी रास्ते में उनकी मौत हो गई."

रामो बिरुवा की बेटी सुमित्रा इसे सामान्य मौत नहीं मानतीं. उन्होंने प्रशासनिक अधिकारियों पर लापरवाही का आरोप लगाया.

सुमित्रा ने कहा कि उनके पिताजी को झूठे आरोपों मे पकड़ा गया था और इस कारण पुलिस अभी तक उन आरोपों की पुष्टि नहीं कर सकी है.

उन्होंने बीबीसी से कहा, "सरकार और प्रशासन ने साज़िश करके उनकी हत्या करा दी है क्योंकि मेरे पिता कोल्हान क्षेत्र के आदिवासियों के हक़ की बात करते थे. इससे प्रशासन को दिक्कत थी."

सुमित्रा आगे कहती हैं, "अगर वो सच में बीमार थे तो जेल प्रशासन को हमारे परिवार को इसकी सूचना देनी चाहिए थी. उनकी बीमारी की बात हमसे क्यों छिपाई गई? जब वह 17 तारीख़ को बीमार हुए, तभी हमें इस बारे मे बताया जाना चाहिए था."

रामो बिरुवा के बेटे बबलू बिरुवा ने का कहना है कि सरकार को उनके पिता के ख़िलाफ़ दर्ज मामले वापस लेने चाहिए.

बबलू ने कहा, "मेरे पिता जेल में मर गए. हम लोग अंतिम वक्त में उनके साथ नहीं रहे. इससे बड़ा दुख और नहीं हो सकता. सरकार अब तो उन्हें झूठे आरोपों से मुक्त कर दे."

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English summary
Death in Capture of Azad Kolharna Ramo Biruwa
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