Indian Science Congress में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मंच साझा करने इंफाल नहीं गये दलाई लामा
शिमला। आखिर तिब्बतीयों के अध्यात्मिक नेता दलाई लामा शुक्रवार को मणिपुर की राजधानी इंफाल में शुरू हुई 106 वीं इंडियन साईंस कांग्रेस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मंच साझा करने इंफाल नहीं गये। हालांकि इससे पहले दलाई लामा का इंफाल जाने का कार्यक्रम तय था। लेकिन जब इंफाल में कार्यक्रम का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया तो एकाएक दलाई लामा की ओर लोगों का ध्यान गया। तो पता चला कि दलाई लामा धर्मशाला से आज गये ही नहीं। इसके साथ ही रहस्यमयी तरीके से उनके इंफाल के कार्यक्रम को भी वेबसाईट से हटा लिया गया था। आखिर यह सब क्यों हुआ, इसका जवाब ना तो निर्वासित सरकार दे पाई है ना ही दलाई लामा कार्यालय।
लेकिन जानकारों की मानें तो इसके पीछे भी थैंक्यू इंडिया कार्यक्रम में आये बदलाव की तरह ही चीन की खुश करने की निति के तहत भारत सरकार ने इस कार्यक्रम से भी दलाई लामा को दूर रखने का दवाब बनाया। दलाई लामा ने भी भारत सरकार को नाराज करने का जोखिम उठाना नहीं चाहा। दरअसल, डोकलाम विवाद के बाद भारत चीन के रिशतों में आये बदलाव के चलते ही अब भारत सरकार तिब्बत मसले पर चीन से किसी भी विवाद में पडऩे के मूड में नहीं है। यही वजह है कि इन दिनों तिब्बत पर भारत का रवैया बदला बदला नजर आ रहा है। शुक्रवार की यह घटना भी इसी का एक हिस्सा है।
हालांकि इंडियन साइंस कांग्रेस की मेज़बानी कर रहे पूर्वोत्तर के मणिपुर यूनिवर्सिटी में शुरू हुये चार दिवसीय इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दलाई लामा दोनों को बतौर मुख्य अतिथि की सूची में दिखाया जा रहा था। आमतौर पर प्रधानमंत्री इस वार्षिक विज्ञान कांग्रेस का उद्घाटन करते हैं, लेकिन माना जा रहा है कि पीएम मोदी के साथ दलाई लामा मंच साझा करते तो एक बार फिर इन दोनों लोगों के एक ही मंच को साझा करने पर चीन की प्रतिक्रिया आती।
साईंस कांग्रेस को स्थगित भी नहीं किया जा सकता था क्योंकि यह इसी साल जनवरी में आयोजित किया जाना था लेकिन उस समय उस्मानिया यूनिवर्सिटी ने सुरक्षा कारणों से इसकी मेज़बानी में असमर्थता ज़ाहिर की थी. साइंस कांग्रेस के 105 साल के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था। माना जा रहा है कि तिब्बती नेतृत्व को भारत की इस दुविधा का अहसास हो गया था और उन्होंने अंतिम समय में दलाई लामा को इस कार्यक्रम से दूर रखना ही बेहतर समझा। लेकिन इस घटनाक्रम से आम तिब्बती नाखुश दिखाई दे रहा है और निर्वासित सरकार भी सहमी है। तिब्बती अंदोलन के भविष्य पर भी अब सवाल उठने लगे हैं।
गौरतलब है कि इस सबकी शुरुआत नए विदेश सचिव विजय गोखले के एक नोट के साथ हुई, जो इस उच्च पद को हासिल करने से पहले बीजिंग में भारत के राजदूत रह चुके हैं। विदेश सचिव ने अपने नोट में कैबिनेट सचिव से सभी सरकारी प्रतिनिधियों के लिए तिब्बतियों के आयोजित कार्यक्रमों से दूर रहने के लिए एक निर्देश जारी करने का अनुरोध किया था। विदेश सचिव ने 22 फऱवरी को यह नोट लिखा, जो कि, विदेश सचिव के रूप में 28 फऱवरी को उनकी पहली चीन यात्रा से ठीक एक हफ़्ते पहले लिखा गया था। उसी के बाद भारत की तिब्बत निति में बड़ा बदलाव आया है।