कोरोना वायरस: लॉकडाउन में कमाने, खान के संकट से जूझते ट्रांसजेंडर
“हमारे आस-पास खाना नहीं मिल रहा है. घर में बनाने के लिए कुछ नहीं हैं. अगर कहीं रैन बसेरे में मिल भी रहा है तो वो घर से बहुत दूर है. लॉकडाउन में इतनी दूर कैसे जाएं?" नोएडा में सेक्स वर्कर का काम करने वालीं ट्रांसजेंडर आलिया लॉकडाउन के दौरान ऐसी ही कई दिक्कतों से गुज़र ही हैं. उनके पास कमाने का ज़रिया नहीं बचा और अब खाने, किराए की चिंता सता रही है.
“हमारे आस-पास खाना नहीं मिल रहा है. घर में बनाने के लिए कुछ नहीं हैं. अगर कहीं रैन बसेरे में मिल भी रहा है तो वो घर से बहुत दूर है. लॉकडाउन में इतनी दूर कैसे जाएं?”
नोएडा में सेक्स वर्कर का काम करने वालीं ट्रांसजेंडर आलिया लॉकडाउन के दौरान ऐसी ही कई दिक्कतों से गुज़र ही हैं. उनके पास कमाने का ज़रिया नहीं बचा और अब खाने, किराए की चिंता सता रही है.
कोरोना वायरस से संक्रमण के कारण फिलहाल पूरे भारत में 21 दिन का लॉकडाउन लगा हुआ है.
इस बीच मजदूरों और कामगारों की तरह ट्रांसजेंडर कम्युनिटी के सामने भी रोज़ी-रोटी के संकट खड़ा हो गया है. हालांकि उनकी समस्या विकट है.
आलिया बताती हैं, “हमारे काम के बारे में पुलिसवाले जानते हैं. हम बाहर निकलते हैं तो उन्हें लगता है कि अपने काम के लिए ही निकल रहे हैं. इसलिए वो हमें टोक देते हैं. ऐसे में हमारी कमाई बंद हो गई है. हम आपस में पैसे इकट्ठे करके गुज़ारा कर रहे हैं. हमारा किराया ही पांच हजार रूपये है तो अगले कुछ महीनों में उसे कैसे चुकाएंगे?”
पूरे परिवार का पेट भरने की चिंता
बिहार की रहने वाली सोनम टोला बधाई का काम करती हैं. वो हाल में अपने गांव से लौटी हैं. वो कहती हैं कि लॉकडाउन के बाद अब उन्हें अपनी ही नहीं बल्कि पूरे परिवार की चिंता है.
सोनम कहती हैं, “बिहार में मेरे मां-बाप रहते हैं और मैं ही उनका खर्चा चलाती हूं. अभी मैं गांव से होकर आई हूं. वहां काफी खर्चा हो गया. सोचा था यहां आकर कमा लूंगी लेकिन अब तो सब बंद हो गया है. आगे अपने घर में क्या भेजूंगी ये समझ नहीं आता. कुछ पैसे बचे हैं वो दुख-बीमारी के लिए रखे हुए हैं. वरना उसमें हमारी कौन मदद करेगा? कोरोना से मरें ना मरें लेकिन बिना काम के घर पर रहकर ज़रूर मर जाएंगे.”
सोनम कहती हैं कि उन्होंने कोशिश की थी लेकिन राशन कार्ड नहीं बन पाया. इस कारण फिलहाल राशन की सरकारी मदद उन्हें नहीं मिल सकती है. वह अपने दोस्तों से मांगकर गुज़ारा कर रही हैं लेकिन उन्हें डर है कि जब उधार भी नहीं मिला तो वो क्या करेंगी.
परिवार का भी सहारा नहीं
ट्रांसजेंडर्स के लिए काम करने वाली स्वंयसेवी संस्था बसेरा की संयोजक रामकली बताती हैं कि इस वक़्त कई ट्रांसजेंडर्स बेरोज़गारी और खाने की कमी से जूझ रहे हैं.
वो बताती हैं, “मेरे पास मदद के लिए रोज़ कई फोन आते हैं. हमारे समुदाय में ज़्यादातर लोग वहीं हैं जो रोज़ कमाते और खाते हैं. अब उनकी कमाई होनी बंद हो गई है तो पैसा कहां से आएगा. उनका अपना घर नहीं है. वो किराए पर रहते हैं तो किराया भी चुकाना ही होगा.”
“हम लोगों की सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि हमारे पास ना तो परिवार का सपोर्ट होता है और ना ही प्यार. लोगों के पास परिवार का सहारा तो होता है. अपने जेंडर के कारण घर से दुत्कारे जा चुके हैं, समाज से त्यागे जा चुके हैं तो बुरे वक़्त में हमारी मदद कौन करेगा? मजदूर अपने घरों की तरफ जा रहे हैं लेकिन हम कहां जाएं?”
दिल्ली के रहने वाले आकाश पाली ने पहले ट्रांसजेंडर होने का दंश झेला और अब वो लॉकडाउन में लगे प्रतिबंधों की मार झेल रहे हैं.
आकाश पाली ने अपना जेंडर बदलकर खुद को एक पुरुष की पहचान दी थी. वो एक पार्लर में काम करते थे लेकिन कुछ दिनों पहले ही उनकी नौकरी छिन गई.
आकाश पाली ने बताया, “जब मेरे ऑफिस वालों को पता चला कि मैं ट्रांसजेंडर हूं तो मुझे नौकरी से निकाल दिया गया. ये लॉकडाउन से कुछ ही दिन पहले हुआ था. तब मैं कहीं बाहर गया था. जब लौटा तो कुछ दिन बाद लॉकडाउन ही लग गया. अब वो कंपनी वाले मेरे बचे हुए पैसे भी नहीं दे रहे हैं.”
“मेरे पास कमाने का कोई और ज़रिया भी नहीं. कुछ पैसे मैंने जमा किए थे लेकिन घरवालों को ज़रूरत पड़ी तो उन्हें दे दिए. मुझे लगा था कि शायद मेरी मदद के बाद वो मुझे अपना लेंगे. लेकिन, ऐसा नहीं हुआ. अब मैं अकेला रह गया हूं और घर चलाने के लिए उधार मांग रहा हूं. मकान मालिक भी किराया मांगने के लिए आया था.”
दिल्ली सरकार ने बेघरों के लिए रैन बसेरा और कई स्कूलों में खाने की व्यवस्था की है. कई लोग वहां जाकर मदद ले रहे हैं.
इस सुविधा को लेकर आकाश कहते हैं कि सरकार ने सुविधा तो दी है लेकिन हमारा वहां पहुंचकर खाना आसान नहीं है. लोग हमें अच्छी निगाह से नहीं देखते. कुछ दिन पहले बाहर निकलने पर पुलिस टोकने लगी कि तुम लोग अब कहां जा रहे हो. खान खाने जाओ तो बहुत लंबी लाइन होती है और फिर लोग हमें ही घूरकर देखते हैं.
राशन कार्ड नहीं, कैसे मिले सरकारी सुविधा
रामकली कहती हैं कि ट्रांसजेडर्स के साथ एक बड़ी समस्या ये है कि उनके अपने समुदाय के बाहर बहुत ही कम दोस्त होते हैं. जब इस समुदाय के कई लोग खुद बेरोज़गार हो गए हैं तो वो एक-दूसरे की मदद करें कैसे.
वह कहती हैं कि परिवार से अलग होने के कारण उनके पूरे दस्तावेज़ नहीं होते, जैसे आधार कार्ड, राशन कार्ड और कुछ के पास तो वोटर कार्ड भी नहीं होते.
समुदाय के कई लोग टोला बधाई का काम करते हैं जिसमें वो लोग किसी के घर में शादी, बच्चा होने या कोई शुभ काम होने पर गाने-बजाने के लिए जाते हैं. इस तरह के आयोजनों से ही उनकी आय होती है.
हैदराबाद की फिज़ा जान भी टोला बधाई का काम करती हैं. वो अपने टोला की गुरु हैं. फिलहाल सभी के सामने कमाने का संकट बना हुआ है.
फिज़ा जान कहती हैं, “हमारा पूरा टोला खाली बैठा है. हमारे पास ना खाने को कुछ है और ना किराया देने के लिए पैसे हैं. पहले तो हमें कई बार आटा-चावल मिलता था तो हम ज़रूरतमंदों में बांट देते थे. अब तो हमें खुद ज़रूरत पड़ गई है. कुछ लोग कहते भी हैं कि हमारी मदद करेंगे पर फिर कुछ नहीं होता.”
रामकली बताती हैं कि कुछ दिनों पहले एक राजनीतिक पार्टी से जुड़े एक शख़्स ने ट्रांसजेंडर्स के लिए राशन देने का वादा किया था. उन्होंने संस्था से जुड़े सभी लोगों को बता भी दिया कि मदद आने वाली है लेकिन उस शख़्स ने अभी तक कोई मदद नहीं की है.
वह सवाल करती हैं कि कोरोना वायरस महामारी की मुश्किल घड़ी में अलग-अलग वर्गों के बारे में सोचा जा रहा है तो हमारे लिए क्यों नहीं.
2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में ट्रांसजेंडर्स की संख्या 49 लाख के करीब है. पिछले साल उनके अधिकारों को ध्यान में रखते हुए ट्रांसजेंडर पर्सन्स (प्रोटेक्शन ऑफ़ राइट्स) एक्ट, 2019 बनाया गया था. हालांकि, ट्रांसजेंडर कम्यूनिटी की इस क़ानून के प्रवाधानओं पर कई आपत्तियां हैं.
ट्रांसजेंडर इस समुदाय की मांग रही है कि उन्हें अपनी पहचान तय करने की आज़ादी हो और अन्य लोगों की तरह ही सम्मान व अधिकार मिलें.
वहीं, भारत में कोरोना वायरस के मामले भी बढ़ते जा रहे हैं. यहां कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या एक हज़ार से ज़्यादा हो चुकी है और 27 लोगों की मौत हो चुकी है.