कोरोना संकट: गरीब कल्याण पैकेज क्या है? जानिए, राहत राशि कहां और कैसे खर्च करेगी सरकार?
बेंगलुरू। कोरोना वायरस संक्रमण के खतरे के चलते 21 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा का सबसे अधिक असर विशेष रूप से गरीब घरों और छोटे व्यवसायी पर पड़ा है, जिसके चलते उनमें पैसों की किल्लत का संकट पैदा हुआ है। नोवल कोरोनो वायरस के चलते राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन ने दिहाड़ी मजदूर श्रमिकों और अनौपचारिक क्षेत्र के उद्यमियों की कमाई ही नहीं, उनकी अन्य गतिविधियों पर रुकावट बनकर खड़ी हो गई है।
गत गुरुवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने COVID-19 महामारी से निपटने के बड़े सार्वजनिक हित को ध्यान में रखते हुए लॉकडाउन में घरों पर रहने को मजबूर मजूदरों और श्रमिकों की मदद करने के लिए 'प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना' के तहत 1.70 लाख करोड़ रुपए की राहत पैकेज की घोषणा की।
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मौजूदा स्थिति को देखते हुए निः संदेह गरीब दिहाड़ी मजदूर और श्रमिकों के कल्याण के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा घोषित 1.70 लाख करोड़ रुपए का राहत पैकेज एक महत्वपूर्ण घटक है, जिसमें सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से बढ़ी हुई मात्रा में खाद्यान्नों की आपूर्ति करना एक बड़ा कदम है, लेकिन 21 दिनों के कंप्लीट लॉकडाउन को देखते हुए क्या यह पर्याप्त है?
माना जाता है कि एक पांच वयस्क सदस्यों वाले सामान्य गरीब परिवार द्वारा प्रत्येक महीने 50-55 किलोग्राम अनाज और 4-5 किलोग्राम दाल का उपभोग किया जाता है। वर्तमान में पीडीएस प्रति व्यक्ति को प्रति माह 5 किलोग्राम अनाज प्रति माह (2 किग्रा गेहूं और 3 किग्रा चावल) प्रदान करता है।
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पांच सदस्यों वाले एक परिवार के लिए यह राशन संभवतः 25 किलो होगा। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना राहत पैकेज के तहत प्रति व्यक्ति को प्रति माह 5 किलो अतिरिक्त गेहूं या चावल मुफ्त दिया जाएगा, जो अगले तीन महीनों के लिए प्रभावी है।
अनुमान है कि 5 किग्रा अतिरिक्त अनाज परिवार की संपूर्ण अनाज की आवश्यकता को पूरा करेगा। मोटे तौर पर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत कवर की गई 80 करोड़ आबादी या कह लीजिए भारत की दो-तिहाई आबादी इससे लाभ होगा।
लॉकडाउन से सबसे ज्यादा प्रभावित ऐसे गरीब या निम्न मध्यम वर्ग के लोगों को अब बाजार से कोई गेहूं या चावल खरीदने की जरूरत नहीं होगी। इसके अलावा अगले तीन महीने उन्हें प्रति माह प्रति परिवार 1 किलो दाल भी मिलेगी। यह उनकी कुल आवश्यकता का 20-25% पूरा करेगी।
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जमीनी स्तर पर कितना प्रभावी होगा राहत पैकेज?
माना जा रहा है कि केरल, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे प्रदेशों में सरकार की यह योजना कारगर हो सकती है, जहां पीडीएस बेहतर काम करती है, लेकिन उत्तर प्रदेश या बिहार में यह कितना प्रभावी होगा, कुछ कहा नहीं जा सकता है। भारतीय खाद्य निगम (FCI) ने 2019-20 में प्रति किलो गेहूं की खरीद और वितरण के लिए 26.80 रुपए और चावल के लिए 37.48 रुपए प्रति किलो खर्च किया है।
गेहूं और चावल दोनों अनाज का औसत खर्च 30 रुपए प्रति किग्रा होगा
गेहूं और चावल अगर दोनों अनाज खर्च का औसत 30 रुपए किग्रा मान लिया जाए तो 80 करोड़ व्यक्तियों को 15 किलोग्राम मुफ्त अनाज प्रदान संभावित तीन महीने तक प्रदान किया गया तो इस मद में 36,000 करोड़ रुपए अतिरिक्त खर्च होगा। हालांकि इसमें बचत भी हैं, क्योंकि आर्थिक लागत में गोदामों में अतिरिक्त स्टॉक रखने और बरकरार रखने में एफसीआई के खर्च शामिल नहीं हैं।
3 माह में 120 लाख टन अनाज वितरण में 6,700 करोड़ खर्च का अनुमान
वर्ष 2019 -20 के अनुमान के मुताबिक अनाजों के रख-रखाव (ब्याज और भंडारण शुल्क) में 5.61 रुपए प्रति किलोग्राम का खर्च होता है। इस तरह 120 लाख टन अनाज पर (80 करोड़ लोगों के लिए 15 किलो अनाज) यह खर्च 6,700 करोड़ रुपए से अधिक होगा। हालांकि सरकारी खजाने में शुद्ध खर्च 30,000 करोड़ से कम होगा। इसमे अगर 20 करोड़ परिवारों को 3 किलो दाल मुफ्त देने में होने वाले खर्च 4,000 करोड़ रुपए और जोड़ दिए जाएं तो प्रति किग्रा अनाज की अनुमानित लागत 60-70 रुपए बैठती है।
FCI और NAFED के पास है जरूरत से साढ़े तीन गुना अधिक अनाज
अनाज वितरण में सरकार का कुल व्यय लगभग 35,000 करोड़ रुपए से अधिक नहीं होगा। FCI और नेशनल एग्रीकल्चरल कोऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया की क्रमशः 77.6 मीट्रिक टन अनाजों ( जरूरत से 3.5 गुना अधिक) और 2.2 मीट्रिक टन दालों के अतिरिक्त स्टॉक को निपटाने का यह एक प्रभावी तरीका भी हो होगा।
प्रति माह तीन सिलेंडर देने पर 19,200 करोड़ रुपए होगी वित्तीय लागत
केंद्रीय वित्त मंत्री सीतारमण की घोषणा के मुताबिक अगले तीन महीनों के लिए 8 करोड़ गरीब परिवारों को मुफ्त में एलपीजी गैस सिलेंडर वितरित किए जाएंगे। इन परिवारों के लिए प्रत्येक महीने में गैर-सब्सिडी वाले सिलेंडर की औसत कीमत 800 रुपए है और तीन महीने में तीन सिलेंडर देने पर वित्तीय लागत 19,200 करोड़ रुपए होगी। यह इसलिए प्रभावी होगी, क्योंकि लॉकडाउन की सबसे बुरी मार झेल रहे गरीब परिवार की दाल, रोटी और खाना पकाने के ईंधन जैसी बुनियादी जरूरत को पूरा करेगी।
क्या मनरेगा दिहाड़ी में 20 रुपए वृद्धि काफी है?
लॉकडाउन जैसी परिस्थिति के लिहाज से दैनिक मजदूरी में 20 की वृद्धि मामूली कही जा सकती है, क्योंकि लॉकडाउन में मनरेगा कार्यों की गुंजाइश थोड़ी कम है। मौजूदा समय में करीब 13.65 करोड़ मनरेगा परिवार हैं, जिनमें से केवल 8.22 करोड़ सक्रिय हैं। आदर्श स्थिति यह होती कि सरकार बेरोजगारी भत्ते का ऐलान करती। वित्त मंत्री ने दावा किया कि 20 रुपए की मजदूरी दर में वृद्धि से एक प्रति मनरेगा परिवार को 2,000 रुपए की अतिरिक्त आय होगी।
लॉकडाउन में दिहाड़ी मजदूरों को घरों पर रहना है तो लाभ कैसे मिलेगा?
यह एक सैद्धांतिक गणना है, सभी जॉब कार्ड धारकों को योजना के तहत 100 दिनों की गारंटीकृत मजदूरी रोजगार प्रदान करने का अनुमान है। जब दिहाड़ी मजदूरों को उनके घरों पर रहना है, तो मनरेगा के तहत उन्हें मुआवजा देने का एकमात्र तरीका बेरोजगारी भत्ता ही है। हालांकि, मनरेगा अधिनियम के तहत भुगतान करने का अधिकार राज्य सरकारों पर है। इसलिए ऐसी संभावना नहीं दिखती है कि राज्य इसके लिए आवश्यक बजटीय प्रावधान करेंगे।
महिलाओं के खाते में तीन माह तक 500 रुपए जमा करेगी सरकार
प्रधानमंत्री जन धन योजना के तहत महिलाओं से संबंधित कुल 20.4 करोड़ बैंक खातों में प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) के माध्यम से सरकार द्वारा अगले तीन महीने प्रति माह 500 रुपए जमा किए जाने हैं। जो उनके लिए मुआवजा बिल्कुल नहीं हैं, जिन्हें मजूबरी में काम के लिए घर से निकलना पड़ता है।
8.7 करोड़ किसानों को अतिरिक्त 2000 रुपए का भुगतान का ऐलान
प्रधान मंत्री किसान सम्मान निधि के तहत 8.7 करोड़ किसानों को 2000 रुपए का भुगतान का ऐलान किया गया है, क्योंकि इस योजना के तहत किसानों को पहले से ही 6,000 रुपए की वार्षिक आय हो रही है, 2020-21 के लिए जिसकी पहली किस्त 2,000 रुपए का अप्रैल में किया जाना है। ऐसे समय में जब किसानों पर कोरोनो वायरस के चलते दोतरफा मार पड़ी हो, तो 2000 रुपए की अतिरिक्त वित्तीय मदद का निहितार्थ समझ से परे है।
लॉकडाउन के दौरान गरीब की मुख्य समस्या है कैश की किल्लत !
लॉकडाउन के कारण वर्तमान में गरीब और कमजोर परिवारों के लिए मुख्य समस्या कैश की किल्लत है। बड़े व्यापारियों या वेतनभोगी मध्यम वर्ग के विपरीत, ऐसे परिवार बिना बैलेंस शीट, रिजर्व या बैंक बैलेंस वाले होते हैं। उनके लिए हर दिन काम के नुकसान का मतलब है कि बुनियादी खपत में कटौती करना और कर्ज में गहराई तक जाना है। मुफ्त अनाज उन्हें मदद कर सकता है, लेकिन उनके वास्तविक संकट को संबोधित नहीं करता है, जो कि पैसे की तरलता का है, क्योंकि उन्हें भोजन के अलावा अन्य आवश्यक चीजें खरीदने के लिए नकदी की जरूरत होती है।