नागपुर में नितिन गडकरी के खिलाफ नहीं होगा दोस्ताना मैच, कांग्रेस बनेगी बड़ा रोड़ा
नई दिल्ली। लोकसभा में जिस तरह से केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के काम की सोनिया गांधी और कांग्रेस के तमाम सांसद तारीफ कर रहे थे, उसके साफ तौर पर देखा जा सकता है कि गडकरी के काम से खुद कांग्रेस भी खुश है। लेकिन चुनावी मैदान में यह खुशी बिल्कुल देखने को नहीं मिलेगी। नितिन गडकरी को उनके संसदीय क्षेत्र में हराने के लिए कांग्रेस अपनी पूरी ताकत झोंकने में लगी है, पार्टी 2014 की हार का बदला लेने के लिए अपनी रणनीति बनाने में लगी है।
कड़ी टक्कर देगी कांग्रेस
दरअसल नागपुर आरएसएस का गढ़ है लिहाजा कांग्रेस यहां पर अपनी पूरी ताकत के साथ मैदान में उतरना चाहती है। कांग्रेस के एक नेता का कहना है कि जिस तरह राहुल गांधी और नितिन गडकरी के बीच करीबी देखने को मिली उसके बाद माना जा रहा था कि कांग्रेस उन्हें वॉकओवर दे सकती है, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है पार्टी गडकरी के खिलाफ किसी बाहरी उम्मीदवार को मैदान में उतार सकती है जोकि उन्हें कड़ी टक्कर दे। ऐसा करने से पार्टी के भीतर चल रहा अंतर्रभेद भी खत्म हो सकता है।
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बड़े अंतर से जीते थे गडकरी
बता दें कि 2014 में नितिन गडकरी ने पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा था और इससे पहले वह पूरी उम्र आरएसएस के कार्यकर्ता के तौर पर काम करते रहे थे। 2014 में गडकरी ने सात बार के सांसद विलास मुत्तेमवर को 2.85 लाख वोटों के अंतर से हराया था। मुत्तेमवर चार बार नागपुर के सांसद रह चुके हैं। लेकिन गडकरी की जीत को मोदी लहर की जीत माना जा रहा था। ऐसे में इस बार गडकरी के सामने खुद के दम पर चुनाव जीतने की चुनौती है। हालांकि उनके पास आरएसएस का अभी भी पूरा साथ है और उन्होंने अपने मंत्रालय में काम करके भी दिखाया है।
अहम है वोट समीकरण
वहीं कांग्रेस इस बात पर अधिक निर्भर है कि मोदी की लोकप्रियता कम हुई है, इसके साथ ही वह जाति और समुदाय के समीकरण को साधकर यहां जीत हासिल करना चाहती है। स्थानीय नेता का मानना है कि दलित और मुसलमान कुल मिलाकर तकरकीबन आठ लाख मतदाता हैं, इसके अलावा दो लाख हल्बा वोटर भी हैं जबकि 40000 धांगर वोट हैं। हल्बाद बुनकर समुदाय के लोग हैं, उन्होंने पिछली बार गडकरी के समर्थन में वोट दिया था। उनसे उनकी समस्याओं को खत्म करने का वादा किया गया था। लेकिन इस बार इन लोगों ने भाजपा को सबक सिखाने का फैसला लिया है क्योंकि सरकार ने अपना वादा पूरा नहीं किया है, इसमे बड़ा वादा यह था कि उन्हें शेड्यूल ट्राइब में शामिल करने चाहिए। यहां पर बड़ी संख्या में कुनबी जाती के लोग भी हैं जो मुमकिन है कि वह कांग्रेस को अपना समर्थन दे सकते हैं क्यों कि भाजपा ने सभी अहम पदों पर ब्राह्मणों को मौका दिया है।
भाजपा को दो बार मिली जीत
स्थानीय नेता का कहना है कि वर्ष 2014 में कांग्रेस काफी लंबे समय के बाद चुनाव हारी है। यहां तक कि आपातकाल में भी जंबूवंतराव धोते यहां से चुनाव जीते थे, यहां से भाजपा को सिर्फ दो बार जीत मिली है। पहली बार 1996 में राम मंदिर की हवा में पार्टी को जीत मिली थी और बनवारी ला पुरोहित को यहां से जीत मिली थी। जबकि दूसरी बार 2014 में पार्टी को यह जीत मिली है। हालांकि स्थानीय नेता का मानना है कि हाल में की गई एयर स्ट्राइक कांग्रेस की उम्मीद पर कुठाराघात कर सकती है।
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